लेखाशास्त्र (Accountancy)
Chapter 1
लेखांकन- एक परिचय
(Introduction to Accounting)
- लेखांकन का अर्थ (Meaning of Accounting): लेखांकन संगठन की आर्थिक घटनाओं को पहचानने, मापने और लिखकर रखने की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से सूचना से संबंधित आंकड़े उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित किए जा सकते हैं।
- एक भाषा के रूप में: इसे व्यवसाय की भाषा माना गया है जिसे व्यवसाय से संबधित सूचना को संप्रेषित करने के उपयोग में लाया जाता है।
- कला के रूप में: लेखांकन व्यवसाय के लेखे एवं घटनाओं को, मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।
- विज्ञान के रूप में: लेखांकन एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विषय-वस्तु का क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। लेखांकन के अपने सिद्धांत व नियम हैं।
- लेखांकन की प्रकृति को समझने के लिए हमें निम्नलिखित शब्दों को समझना आवश्यक है:
- आर्थिक घटनाएँ
- पहचान, मापन, अभिलेखन एवं संप्रेषण
- संगठन
- सूचना से संबंधित उपयोगकर्ता

लेखांकन प्रक्रिया
- आर्थिक घटनाएँ:
लेखांकन में आर्थिक घटना से तात्पर्य किसी व्यावसायिक संगठन में होने वाले ऐसे आर्थिक लेन-देन से है जिसके परिणामों को मुद्रा रूप में मापा जा सकता हो।
माल का क्रय, मशीनरी का क्रय, वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री इत्यादि आर्थिक घटनाएँ हैं।
इन घटनाओं को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
आंतरिक घटना एक ऐसी आर्थिक घटना है जो किसी संगठन के आंतरिक विभागों के बीच घटित होती है।
बाह्य घटना एक ऐसी आर्थिक घटना है जो संगठन एवं किसी बाहर के व्यक्ति अथवा किसी बाहरी संगठन के बीच घटित होती है।
- पहचान, मापन, अभिलेखन एवं संप्रेषण
लेखांकन द्वारा सर्वप्रथम आर्थिक घटनाओं की पहचान की जाती है। इसमें संगठन से संबंधित सभी क्रियाओं का अवलोकन कर केवल उन्हीं क्रियाओं का चयन किया जाता है जो वित्तीय प्रकृति की होती हैं।
आर्थिक घटनाओं के परिणामों को मुद्रा के रूप में मापा जाता है। यदि किसी घटना का मौद्रिक रूप में प्रमापीकरण संभव नहीं है तो इसका वित्तीय लेखों में लेखन नहीं किया जाता।
जब एक बार आर्थिक घटनाओं की पहचान व मापन वित्त रूप में हो जाता है तो इन्हें मौद्रिक इकाइयों में लेखा-पुस्तकों में कालक्रमानुसार अभिलिखित कर लिया जाता है। अभिलेखन इस प्रकार से किया जाता है कि आवश्यक वित्तीय सूचना का स्थापित परंपरा के अनुसार सारांश निकाला जा सके एवं जब भी आवश्यकता हो उसे उपलब्ध किया जा सके।
आर्थिक घटनाओं की पहचान की जाती है, उन्हें मापा जाता है एवं उनका अभिलेखन किया जाता है जिससे प्रसंगानुकूल सूचना तैयार होती है एवं इसका प्रबंधकों एवं दूसरे आंतरिक एवं बाह्य उपयोगकर्ताओं को, एक विशिष्ट रूप में सम्प्रेषण होता है। सूचना को लेखा प्रलेखों के माध्यम से नियमित रूप से संप्रेषित किया जाता है। इन प्रलेखों द्वारा दी गई सूचना उन विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं के लिए उपयोगी होती है जो उद्यम की वित्तीय स्थिति एवं प्रदर्शन के आकलन, व्यावसायिक क्रियाओं के नियोजन एवं नियंत्रण तथा समय-समय पर आवश्यक निर्णय लेने में रुचि रखते हैं।
- संगठन:
संगठन से अभिप्राय किसी व्यावसायिक उद्यम से है जिनका उद्देश्य लाभ कमाना होता है। हालाँकि, अलाभकारी संस्थाओं को भी लेखांकन की आवश्यकता होती है|
- सूचना से संबंधित उपयोगकर्ता:
अनेक उपयोगकर्त्ताओं को महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए वित्तीय सूचना की आवश्यकता होती है।
इन उपयोगकर्त्ताओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
- आंतरिक उपयोगकर्ता: आंतरिक उपयोगकर्त्ता में सम्मिलित हैंः मुख्य कार्यकारी अधिकारी, वित्तीय प्राधिकारी, उपप्रधान, व्यावसायिक इकाई प्रबन्धक, संयन्त्र प्रबन्धक, स्टोर प्रबन्धक, लाइन पर्यवेक्षक आदि।
- बाह्य उपयोगकर्ता: वर्तमान एवं भावी निवेशक (शेयर धारक), लेनदार (बैंक, एवं अन्य वित्तीय संस्थान, ऋण-पत्र धारक एवं दूसरे ऋण दाता), कर अधिकारी, नियमन एजेन्सी (कंपनी मामलों का विभाग, कंपनी रजिस्ट्रार, भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड, श्रम संगठन, व्यापारिक संघ, स्टॉक एक्सचेंज, एवं ग्राहक आदि)।
- लेखांकन सूचना की गुणात्मक विशेषताएँ (Qualitative Characteristics of Accounting Information) इस प्रकार हैं:
- विश्वसनीयता (Reliability): लेखांकन सूचना की पहली गुणात्मक विशेषता विश्वसनीयता है। विश्वसनीयता का अर्थ है कि उपयोगकर्ता सूचना पर निर्भर रह सके। विश्वसनीय सूचना अनावश्यक अशुद्धि, व्यक्तिगत आग्रह से मुक्त होनी चाहिए तथा उसे विश्वसनीय रूप से वही दर्शाना चाहिए जो उससे अपेक्षित है।
- प्रासंगिकता (Relevance): लेखांकन सूचना की दूसरी गुणात्मक विशेषता प्रासंगिकता है। एक प्रासंगिक जानकारी वह जानकारी होती है जो कि समय पर उपलब्ध होती है, पूर्वानुमान और प्रत्युत्तर में मदद करने के लिए और उपयोगकर्ताओं के निर्णयों को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करने में सक्षम होती है।
- बोधगम्यता (Understandability): बोधगम्यता लेखांकन सूचना की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण गुणात्मक विशेषता है। बोधगम्यता से आशय है कि जो लोग निर्णय लेते हैं उन्हें लेखांकन सूचना को उसी संदर्भ में समझना चाहिए जिस संदर्भ में उन्हें तैयार किया गया है एवं प्रस्तुत किया गया है। किसी संदेश की वे विशेषताएँ जो अच्छे अथवा बुरे संदेश में भेद कराती हैं, संदेश की बोधगम्यता का आधार हैं। संदेश तभी संप्रेषित माना जाता है जब वह प्रेषणी द्वारा उसी अर्थ में समझा जाए जिस अर्थ में भेजा गया है। लेखाकारों को सूचना को बिना प्रासंगिकता एवं विश्वसनीयता को खोये इस प्रकार से प्रस्तुत करना चाहिए कि वह बोधगम्य हो।
- तुलनात्मकता (Comparability): लेखांकन सूचना की अंतिम गुणात्मक विशेषता तुलनात्मकता है। यह माना जाता है कि यह पर्याप्त नहीं है कि वित्तीय जानकारी किसी विशेष परिस्थिति में या किसी विशेष रिपोर्टिंग इकाई के लिए प्रासंगिक और विश्वसनीय है। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है की सूचना के उपयोगकर्ता साधारण उद्देश्य के लिए प्रस्तुत व्यवसाय के वित्तीय लेखों में प्रदर्शित विभिन्न आयामों को अन्य व्यावसायिक इकाइयों से परस्पर तुलना कर सकें। लेखांकन प्रलेखों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि उनका संबंध समान अवधि व समान मापन इकाई व समान प्रारूप में किया गया हो।
- विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की लेखांकन पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। इन्हें लेखांकन के प्रकार कहा जाता है।
उद्देश्य के आधार पर लेखांकन के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:
- वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting): वित्तीय लेखांकन वित्तीय लेन-देनों के व्यवस्थित अभिलेखन एवं वित्तीय विवरणों को बनाने एवं प्रस्तुतीकरण में सहायता करता है जिससे कि संगठनात्मक सफलता एवं वित्तीय सुदृढ़ता को मापा जा सके। इसका संबंध बीते हुए समय से होता है। प्राथमिक रूप से यह संरक्षणता का कार्य करता है और साथ ही इसकी प्रकृति मौद्रिक है। इसका कार्य सभी हितार्थयों को वित्तीय सूचना प्रदान करना है।
- लागत लेखांकन (Cost Accounting): लागत लेखांकन वित्तीय लेखा पद्धति की सहायक है। लागत लेखांकन किसी वस्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित व वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है। इसके द्वारा वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है। इसके द्वारा लागत पर नियंत्रण भी किया जाता है। यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है।
- प्रबंध लेखांकन (Management Accounting): यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है। जब कोई लेखा विधि प्रबंध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, तब इसे प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है। प्रबंध लेखांकन का उद्देश्य संगठन में कार्यरत लोगों को आवश्यक लेखांकन सूचना प्रदान करना है जिससे कि वे व्यवसायी कार्यों के संबंध में निर्णय ले सकें, योजना बना सकें एवं नियंत्रण कर सकें। प्रबंध लेखांकन के लिए सूचना मुख्यतः वित्तीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन से प्राप्त होती है जो प्रबंधकों को बजट बनाने, लाभ प्रदत्त का आकलन करने, मूल्य निर्धारण करने, पूँजीगत व्यय के संबंध में निर्णय लेने आदि में सहायक होता है।
- लेखांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
- लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों का पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से लेखा करना है। सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल की संभावना बहुत कम हो जाती है और शुद्ध परिणाम प्राप्त होता है।
- लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात करना है।
- लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्थिति के संबंध में जानकारी प्राप्त करना है। इससे तुलन-पत्र को बनाने में सहायता मिलती है।
- लेखांकन का एक कार्य वित्तीय सूचनाएँ प्रदान करना है जिससे प्रबंधकों को निर्णय लेने में सुविधा हो और साथ ही सही निर्णय लिये जा सकें। इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखांकन उपलब्ध कराता है। व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते हैं, जैसे कर्मचारी वर्ग, प्रबंधक, लेनदार, विनियोजक आदि। व्यवसाय में हित रखने वाले विभिन्न पक्षों को उनसे संबंधित सूचनाएँ उपलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है।
- लेखांकन के फायदे निम्नलिखित हैं:-
- कोई भी व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, सभी बातों को स्मरण नहीं रख सकता है। व्यापार में प्रतिदिन सैकड़ों लेन-देन होते हैं, वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। ये नकद और उधार दोनों हो सकते हैं। मजदूरी, वेतन, कमीशन, आदि के रूप में भुगतान होते हैं। इन सभी को याद रखना कठिन है। लेखांकन इस समस्या को दूर कर देता है।
- लेखांकन से व्यवसाय से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं जैसे : लाभ-हानि की जानकारी, सम्पत्ति तथा दायित्व की जानकारी, कितना रुपया लेना है और कितना रुपया देना है, व्यवसाय की आर्थिक स्थिति कैसी है आदि।
- अन्य व्यापारियों से झगड़े होने की स्थिति में लेखांकन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। न्यायालय प्रस्तुत किये लेखांकन को मान्यता प्रदान करता है।
- वित्तीय लेखांकन से कर्मचारियों के वेतन, बोनस, भत्ते, आदि से संबंधित समस्याओं के निर्धारण में मदद मिलती है।
- लेखांकन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं:-
- लेखांकन सूचनाओं को मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है: गैर मौद्रिक घटनाओं अथवा लेन-देनों को पूरी तरह से छोड़ दिया जाता है।
- स्थायी परिसम्पतियों का अभिलेखन मूल लागत पर किया जाता है: भवन, मशीन आदि परिसम्पत्तियों पर वास्तविक व्यय तथा उस पर आनुसंगिक (incidental) व्यय का अभिलेखन किया जाता है। अत: मूल्य वृद्धि के लिए कोई प्रावधान नहीं होता। परिणामस्वरूप लेखांकन से प्राप्त विवरण व्यवसाय की सही स्थिति को नहीं बताता।
- लेखांकन सूचना कभी-कभी अनुमानों पर आधारित होती है: अनुमान कभी-कभी गलत भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अवक्षरण (Erosion/Depreciation) निर्धारण के लिए सम्पत्ति के वास्तविक जीवन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
- लेखांकन सूचना को प्रबंधन निष्पादन (Management Performance) के एकमात्र परीक्षण मापदंड के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है: प्रबंधन द्वारा एक वर्ष के लाभ को कुछ व्यय जैसे कि विज्ञापन, अनुसंधान, विकास अवक्षयण आदि व्ययों को दिखाकर सरलता से हेर-फेर की जा सकती है, अर्थात लाभ कम करके दिखाया जा सकता है।
- लेखांकन सूचनाएँ निष्पक्ष नहीं होती: लेखाकार आय का निर्धारण व्यय पर आगम के आधिक्य के रूप में करते हैं। लेकिन वे व्यवसाय के लाभ को ज्ञात करने के लिए आगम एवं व्यय की चुनी हुई मदों को ध्यान में रखते हैं। वे इसमें सामाजिक लागत जैसे कि जल, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण को समाहित नहीं करते। वे स्टाक अथवा अवक्षरण के मूल्याँकन की विभिन्न पद्धतियों को अपनाते हैं।
- लेखांकन की विभिन्न भूमिकाएँ:-
- व्यावसायिक लेन-देनों की पहचान करना (Identification): इसका अभिप्राय है कि पहचान करना कि किन लेन-देनों का लेखा किया जाए| अर्थात् उन घटनाओ की पहचान करना जिनका अभिलेखन किया जाना है।
- लेन-देनों का मापन (Measurement): लेखा पुस्तकों में उन्हीं लेन-देनों का अभिलेखन किया जाता है, जिनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में संभव है। उदाहरण के लिए, माल की आपूर्ति हेतु आदेश देना, कर्मचारियों की नियुक्ति महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं, पर इनका लेखा नहीं किया जाता है क्योंकि ये मुद्रा के रूप में मापनीय नहीं हैं।
- अभिलेखन (Recording): लेखा-पुस्तकों में वित्तीय स्वभाव के लेन-देनों का लेखा तिथिवार नियमानुसार किया जाता है। अभिलेखन इस प्रकार किया जाता है कि परंपरा के अनुसार इनका सारांश तैयार किया जा सके।
- वर्गीकरण एवं संक्षिप्तीकरण (Classification and Summarisation): लेखांकन का यह आधारभूत कार्य है। इस कार्य के अंतर्गत व्यवसाय की प्रारंभिक पुस्तकों में क्रमबद्ध लेखे करना, उनकों उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना अर्थात् उनसे खाते तैयार करना और तलपट बनाने के कार्य शामिल हैं।
- विश्लेषण एवं व्याख्या (Analysis and Interpretation): इसके अंतर्गत लेखांकन सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन का विश्लेषण एवं व्याख्या शामिल है। तृतीय पक्ष एवं प्रबंधकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है।
- संप्रेषण (Communication): लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा जाता है। जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करती है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय की वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएँ उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक हैं।
- लेखांकन के आधारभूत पारिभाषिक शब्द:
- इकाई (Entity): यहाँ इकाई से अभिप्राय एक ऐसी वस्तु से है जिसका एक निश्चित अस्तित्व हो। व्यावसायिक इकाई से अभिप्राय विशेष रूप से पहचान किए गये व्यावसायिक उद्यम से है जैसे: सुपर बाजार, हायर ज्वैलर्स, आई.टी.सी.लि. आदि। एक लेखांकन प्रणाली को सदा विशिष्ट व्यावसायिक अस्तित्व के लिए तैयार किया जाता है (इसे लेखांकन इकाई भी कहते हैं)।
- लेन-देन (Transaction): दो या दो से अधिक इकाइयों के बीच कोई घटना जिसका कुछ मूल्य होता है, लेन-देन कहलाता है। यह माल का क्रय, धन की प्राप्ति, लेनदार को भुगतान, व्यय आदि हो सकती है। यह एक नकद अथवा उधार सौदा हो सकता है।
- परिसम्पत्तियाँ (Assets): परिसंपत्तियों से आशय उद्यम के आर्थिक स्रोतों से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापार के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिसम्पत्तियाँ वे स्रोत हैं जो व्यवसाय को भविष्य में लाभ पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक, आदि।
इस तरह सम्पत्तियाँ व्यवसाय के मूल्यवान साधन हैं जिन पर व्यवसाय का स्वामित्व है तथा जिन्हें मुद्रा में मापी जाने वाली लागत पर प्राप्त किया गया है।
परिसम्पत्तियों के निम्नलिखित प्रकार है :-
- स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets): स्थायी संपत्तियों से आशय उन संपत्तियों से है जो व्यवसाय में दीर्घकाल तक रखी जाती हैं और जो पुनः विक्रय के लिए नहीं हैं। उदाहरण: भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर (Equipments) आदि।
- चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets): चालू सम्पत्तियाँ से आशय उन संपत्तियों से है जो व्यवसाय में पुनः विक्रय के लिए या अल्पावधि में रोकड़ में परिवर्तित करने के लिए रखी जाती हैं। इन्हें चक्रीय सम्पत्तियाँ और परिवर्तनशील सम्पत्तियाँ भी कहा जाता है। उदाहरण: देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल, आदि।
- अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets): अमूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता है, किन्तु मौद्रिक मूल्य होता है। उदाहरण: ख्याति, ट्रेड मार्क, पेटेण्ट्स, इत्यादि।
- मूर्त सम्पत्तियाँ (Tangible Assets): मूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें देखा तथा छुआ जा सकता हो अर्थात् जिनका भौतिक अस्तित्व हो। उदाहरण: भूमि, भवन, मशीन, संयंत्र, उपस्कर, स्टॉक, आदि।

- देयताएँ (Liability): यह वे देनदारियाँ या ऋण हैं जिनका भुगतान व्यावसायिक इकाई द्वारा भविष्य में किसी समय करना है। यह लेनदारों का फर्म की परिसंपत्तियों पर दावे का प्रतिनिध्त्वि करती हैं। व्यवसाय चाहे छोटा हो या बड़ा, कभी-न-कभी उसे धन उधार लेने और उधार पर वस्तुएँ खरीदने की आवश्यकता पड़ती है।उदाहरण के लिए, 25 मार्च, 2019 को सुपर बाजार ने फास्ट फूड प्रोडक्ट्स कंपनी से 10,000 रु. का माल उधार क्रय किया। यदि 31 मार्च, 2019 को सुपर बाजार का तुलन-पत्र तैयार किया जाए तो फास्ट फूड प्रोडक्ट्स कंपनी को उसके स्थिति विवरण के देयता पक्ष में लेनदार (खाते देय) के रूप में दर्शाया जायेगा। यदि सुपर बाजार दिल्ली स्टेट कोऑपरेटिव बैंक लि. से तीन वर्ष की अवधि के लिए ऋण लेती है तो इसे भी सुपर बाजार के तुलन-पत्र में देनदारी के रूप में दर्शाया जायेगा। देयताओं को दो वर्गों में बाँटा जाता है: चालू व गैर चालू देयताएँ।

- पूँजी (Capital): उस धनराशि को पूँजी कहा जाता है जिसे व्यवसाय का स्वामी व्यवसाय में लगाता है। इसी राशि से व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है।
पूँजी को दो निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है:
- स्थिर पूँजी (Fixed Capital): संपत्तियों को प्राप्त करने के लिए जो धनराशि लगाई जाती है, वह स्थिर पूँजी कहलाती है, जैसे: मशीनरी तथा संयंत्र का क्रय, भूमि तथा भवन का क्रय।
- कार्यशील पूँजी (Working Capital): पूँजी का वह भाग जो व्यवसाय के दैनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल होता है, कार्यशील पूँजी कहलाता है।
कार्यशील पूँजी = चालू सम्पत्तियाँ - चालू दायित्व
(working capital = current assets - current liabilities)
- विक्रय (Sales): विक्रय, वस्तुओं की बिक्री या सेवाओं की बिक्री या उपयोगकर्त्ताओं को प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्त कुल आगम है। विक्रय नकद भी हो सकता है और उधार भी।
- आगम (Revenue): यह वह धनराशि है जो व्यवसाय को वस्तुओं की बिक्री या उपभोक्ता को प्रदान की गई सेवा से अर्जित होती है। इसे विक्रय आमदनी भी कहा जाता है। आमदनी की अन्य दूसरी मदें जो अधिकांश व्यवसायों में समान रूप से प्रयुक्त होती हैं:- कमीशन, ब्याज, लाभांश, रॉयल्टी, किराया आदि।
- व्यय (Expenses): व्यवसाय में आगम अर्जित करने की प्रक्रिया में आने वाली लागत को व्यय कहते हैं। साधरणतः व्यय का मापन एक लेखांकन अवधि के दौरान उपयोग की गई परिसंपत्तियों या उपयोग की गई सेवाओं के रूप में किया जाता है। व्यय की अधिकांश मदें हैं:- मूल्य ह्रास, किराया, मजदूरी, वेतन, ब्याज, बिजली, पानी, दूरभाष इत्यादि की लागत।
- खर्च (Expenditure): सम्पत्ति, माल अथवा सेवाएँ प्राप्त करने के लिए किया गया कोई भी भुगतान अथवा सम्पत्ति का हस्तांतरण खर्च कहलाता है।
खर्च को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
- पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure): स्थायी संपत्तियों के क्रय अथवा उनके मूल्य में वृद्धि करने के उद्देश्य से किया गया गैर-आवर्ती व्यय पूँजीगत खर्च कहलाता है। उदाहरण: भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर, आदि क्रय करने अथवा इसके निर्माण हेतु किया गया व्यय पूँजीगत व्यय है। पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन लाभ प्रदान करता है।
- आयगत व्यय (Revenue Expenditure): आयगत व्यय वह व्यय है जो आवर्ती प्रकृति का होता है और उसका लाभ एक लेखांकन अवधि में ही प्राप्त हो जाता है। सभी आगत खर्चों को व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाते में डेबिट किया जाता है। आयगत खर्च वर्तमान लाभोपार्जन क्षमता बनाए रखने में सहायक होते हैं।
- लाभ (Profit): लाभ एक लेखांकन वर्ष में व्ययों पर आमदनी का आधिक्य है। इससे स्वामी की पूँजी में वृद्धि होती है।
- अभिवृद्धि (Gain): व्यवसाय की प्रासंगिक घटनाओं अथवा लेन-देन से होने वाले लाभ को अभिवृद्धि कहते हैं। इसके उदाहरण हैं: स्थाई संपत्ति का विक्रय, किसी परिसंपत्ति के मूल्य में वृद्धि, न्यायालय में मुकदमा जीतने पर होने वाला लाभ।
- हानि (Loss): किसी अवधि के संबंधित आगम से व्यय आधिक्य को हानि कहते हैं। इससे स्वामी की पूँजी घटती है। यह मुद्रा अथवा मुद्रा सममूल्य (लागत पर व्यय) में हुई हानि की पुनः वसूली न होने की ओर संकेत करती है। उदाहरण के लिए, चोरी अथवा आग दुर्घटना आदि से रोकड़ अथवा माल का नष्ट होना। इससे स्थाई परिसंपत्ति के विक्रय पर होने वाली हानि भी सम्मिलित है।
- बट्टा (Discount): विक्रय की गई वस्तुओं के मूल्य में कटौती को बट्टा कहते हैं। यह दो प्रकार से दी जाती है। एक ढंग है वस्तुओं के विक्रय पर सूची मूल्य पर तय प्रतिशत कटौती। ऐसी छूट को व्यापारिक बट्टा कहते हैं। यह साधरणतया विनिर्माताओं द्वारा थोक व्यापारियों को एवं थोक व्यापारियों द्वारा फुटकर विक्रेताओं को दी जाती है।
वस्तुओं के उधार विक्रय पर देनदार यदि भुगतान तिथि अथवा उससे पहले देय राशि का भुगतान कर देते हैं तो उन्हें देय राशि पर कुछ छूट दी जा सकती है। यह कटौती देय राशि पर भुगतान कटौती के समय दी जाती है। इसीलिए इसे नकद कटौती कहते हैं। नकद कटौती एक ऐसा प्रोत्साहन है जो देनदारों को शीघ्र भुगतान के लिए प्रेरित करता है।
- प्रमाणक (Voucher): किसी लेन-देन के समर्थन में विलेख के रूप में प्रमाण को प्रमाणक कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम माल नकद खरीदते हैं तो हमें कैश-मेमो (cash memo) मिलता है| यदि हम इसे उधार पर खरीदते हैं तो हमे बीजक (invoice) मिलता है| जब हम भुगतान करते हैं तो हमें रसीद (Receipt) प्राप्त होती है।
- माल (Goods): वह उत्पाद जिनसे व्यवसायी कारोबार करता है, माल कहलाता है। अर्थात् जिनका वह क्रय एवं विक्रय अथवा उत्पादन एवं विक्रय कर रहा है। जिन वस्तुओं को व्यवसाय में उपयोग के लिए खरीदा जाता है, उन्हें माल नहीं कहते हैं। उदाहरण के लिए फर्नीचर विक्रेता यदि मेज एवं कुर्सियाँ खरीदता है तो यह माल है, लेकिन दूसरों के लिए यह फर्नीचर परिसंपत्ति माना जाता है। इसी प्रकार से स्टेशनरी का कारोबार करने वाले के लिए स्टेशनरी माल है, जबकि दूसरों के लिये यह व्यय की एक मद है (यह क्रय नहीं है)।
- क्रय (Purchases): क्रय एक व्यवसाय द्वारा नकद या उधार प्राप्त वस्तुओं का कुल मूल्य है जिन्हें विक्रय करने के लिए प्राप्त किया गया है। एक व्यापारिक इकाई में माल को उसी रूप में या विनिर्माण प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बाद विक्रय किया जाता है। एक उत्पादन इकाई में कच्चा माल क्रय किया जाता है। फिर उसे तैयार माल में परिवर्तित करके बेचा जाता है। क्रय नकद भी हो सकता है और उधार भी।
- आहरण (Drawings): व्यवसाय में स्वामी द्वारा अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए निकाली गई नकद धनराशि या वस्तुएँ आहरण हैं। आहरण स्वामियों की पूँजी को घटाता है।
- स्टॉक (Stock): किसी भी व्यवसाय में जो वस्तुएँ, अतिरिक्त पुर्जे व अन्य मदें हाथ में होती हैं, उनका मापन रहतिया (स्टॉक) कहलाता है। इसे हस्तस्थ रहतिया (Stock in hand) भी कहते हैं। एक व्यापारिक इकाई में स्टॉक से अभिप्राय उस माल से है जो लेखांकन वर्ष के अंतिम दिन बिना बिका रह गया है। इसे अंतिम स्टॉक या अंतिम स्कंध भी कहते हैं। एक उत्पादन कंपनी के अंतिम स्टॉक में अंतिम दिन का कच्चा माल, अर्धनिर्मित व निर्मित स्टॉक वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं। इसी प्रकार प्रारंभिक स्टॉक किसी लेखांकन वर्ष की प्रारंभिक स्टॉक राशि है।
- लेनदार (Creditor): व्यक्ति, संस्था, फर्म, कम्पनी या निगम, आदि को उधार क्रय के लिए या ऋण के लिए व्यापारी द्वारा धन देय होता है, वे व्यापारी के लेनदार (Creditors) कहे जाते हैं।
- देनदार (Debtor): वे व्यक्ति, संस्था, फर्म, कम्पनी या निगम, आदि जिनसे धन वसूलना रहता है अथवा जिनके पास संस्था की राशि देय है, उन्हें देनदार (Debtors) कहा जाता है।