Class 11th NCERT Text Book

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Indian Economic Development)

Chapter 10

भारत और इसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव

(Comparative Development Experience of India with its Neighbours)

  • परिचय:

वैश्वीकरण की प्रक्रिया आरंभ होने के बाद से विकासशील देश अपने आस-पास के देशों की विकास प्रक्रियाओं और नीतियों को समझने के लिए उत्सुक है। इसका कारण यही है कि उन्हें अब केवल विकसित देशों से ही नहीं वरन अपने जैसे अनेक विकासशील देशों से भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

  • विकास पथ: एक चित्रांकन:
  • भारत, पाकिस्तान और चीन तीनों राष्ट्रों ने विकास पथ पर एक ही समय चलना प्रारंभ किया है। भारत और पाकिस्तान 1947 में स्वतंत्र हुए जबकि चीन गणराज्य की स्थापना 1949 में हुई।
  • तीनों देशों ने एक ही प्रकार से अपनी विकास नीतियाँ तैयार करना शुरू किया था। भारत ने 1951-56 में प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की और पाकिस्तान ने 1956 में अपनी प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की थी, जिसे मध्यकालिक विकास योजना भी कहा जाता था। चीन ने 1953 में अपनी प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की।
  • भारत और पाकिस्तान में समान नीतियाँ अपनाई जैसे, वृहत सार्वजनिक क्षेत्रक का सृजन और सामाजिक विकास पर सार्वजनिक व्यय।
  • 1980 के दशक तक तीनों देशों की संवृद्धि दर और प्रतिव्यक्ति आय समान थी।

  1. चीन की विकास रणनीतियाँ:

एक दलीय शासन के अंतर्गत चीन गणराज्य की स्थापना के बाद अर्थव्यवस्था सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रकों, उद्यमों तथा भूमि, जिनका स्वामित्व और संचालन व्यक्तियों द्वारा किया जाता था, को सरकारी नियंत्रण में लाया गया।

चीन की कुछ विकास रणनीतियों की चर्चा नीचे की गई है

  • 1998 में ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड अभियान शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर देश का औद्योगीकरण करना था। लोगों को अपने घर के पिछवाड़े में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में कम्यून प्रारंभ किए गए। कम्यून पद्धति के अंतर्गत लोग सामूहिक रूप से खेती करते थे।
  • 1965 में माओ ने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का आरंभ किया (1966-76)। छात्रों और विशेषज्ञों को ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने और अध्ययन करने के लिए भेजा गया।
  • 1978 के बाद से, चीन में सुधार चरणों में शुरू किया गया। प्रारंभिक चरण में कृषि, विदेशी व्यापार तथा निवेश क्षेत्रकों में सुधार किए गये। उदाहरण के लिए, कृषि क्षेत्रक में कम्यून भूमि को छोटे-छोटे भूखंडों में बाँट दिया गया जिन्हें अलग-अलग परिवारों को आवंटित किया गया (प्रयोग के लिए न कि स्वामित्व के लिए)। वे प्रकल्पित कर देने के बाद भूमि से होने वाली समस्त आय को अपने पास रख सकते थे। बाद के चरण में औद्योगिक क्षेत्र में सुधार आरंभ किए गये।

सामान्य, नगरीय तथा ग्रामीण उद्यमों की निजी क्षेत्रक की उन फर्मों को वस्तुएँ उत्पादित करने की अनुमति थी, जो स्थानीय लोगों के स्वामित्व और संचालन के अधीन थे।

इस अवस्था में उद्यमों को जिन पर सरकार का स्वामित्व था, (जिन्हें राज्य के उद्यम एस.ओ.ई. के नाम से जाना जाता है) और जिन्हें हम भारत में सार्वजनिक क्षेत्रक के उद्यम कहते हैं, उनको प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। सुधार प्रक्रिया में दोहरी कीमत निर्धारण पद्धति लागू थी। इसका अर्थ यह है कि कीमत का निर्धारण दो प्रकार से किया जाता था। किसानों और औद्योगिक इकाइयों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे सरकार द्वारा निधार्रित की गई कीमतों के आधार पर आगतों एवं निर्गतों की निधार्रित मात्राएँ खरीदेंगे और बेचेंगे और शेष वस्तुएँ बाजार कीमतों पर खरीदी और बेची जाती थीं।

गत वर्षों के दौरान उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ बाजार में बेची और खरीदी गई वस्तुओं या आगतों के अनुपात में भी वृद्धि हुई। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित

किये गये।

 

  1. पाकिस्तान की विकास रणनीतियाँ:

पाकिस्तान की विकास रणनीतियों का सारांश नीचे दिया गया है:

  • पाकिस्तान में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रकों के सह-अस्तित्व वाली मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल का अनुसरण किया जाता है।
  • 1950 और 1960 के दशकों के अंत में पाकिस्तान के अनेक प्रकार की नियंत्रित नीतियों का प्रारूप लागू किया उद्योगों पर आधारित आयात प्रतिस्थापन। उक्त नीति में उपभोक्ता वस्तुओं के विनिर्माण के लिए प्रशुल्क संरक्षण करना तथा प्रतिस्पर्धी आया तो पर प्रत्यक्ष आयात नियंत्रण करना शामिल था।
  • हरित क्रांति के आने से यंत्रीकरण का युद्ध शुरू हुआ और चुनिंदा क्षेत्रों की आधारित संरचना में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में भी अंततोगत्वा वृद्धि हुई। इसके कारण कृषि भूमि संबंधी संरचना में भी नाटकीय ढंग से परिवर्तन हुआ। 1970 के दशक में पूँजीगत वस्तुओं के उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हुआ। उसके बाद, पाकिस्तान ने 1970 और 1980 के दशकों के अंत में अपनी नीति उस समय बदल दी, जब अ-राष्ट्रीयकरण पर जोर दिया जा रहा था और निजी क्षेत्रक को प्रोत्साहित किया जा रहा था।

इस अवधि के दौरान पाकिस्तान को पश्चिमी राष्ट्रों से भी वित्तीय सहायता प्राप्त हुई और मध्य-पूर्व देशों को जाने वाले प्रवासियों से निरंतर पैसा मिला। इससे देश की आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन मिला। तत्कालीन सरकार ने निजी क्षेत्रक को और भी प्रोत्साहन प्रदान किये। इन सब के कारण नये निवेशों के लिए अनुकूल वातावरण बना। 1988 में देश में सुधार शुरू किए गए।

  • तुलनात्मक अध्ययन:
  1. जनांकिकीय संकेतक: हम भारत में कुछ जनांकिकीय संकेतकों की तुलना करेंगे।
  • पाकिस्तान की जनसंख्या बहुत कम है और वह चीन या भारत की जनसंख्या का लगभग दसवाँ भाग है। यद्यपि इन तीनों में चीन सबसे बड़ा राष्ट्र है तथापि इसका जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है और भौगोलिक रूप से इसका क्षेत्र सबसे बड़ा है।
  • 1970 के दशक के अंत में चीन में जनसंख्या वृद्धि की समस्या की जाँच के लिए एक-संतान नीति शुरू की गई थी। इसके कारण लिंगानुपात में गिरावट आई। परंतु तीनों देशों में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में कम था और पूर्वाग्रह से युक्त था, तीनों देश स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं।

एक-संतान नीति के कारण कुछ दशकों के बाद चीन में वयोवृद्ध लोगों की जनसंख्या का अनुपात युवा लोगों की अपेक्षा अधिक होगा।

  • चीन में प्रजनन दर बहुत कम है और पाकिस्तान में बहुत अधिक है।
  • चीन और पाकिस्तान दोनों में ही नगरीकरण अधिक है।
  1. सकल घरेलू उत्पाद एवं क्षेत्रक:
  • चीन का सकल घरेलू उत्पाद 19.8 ट्रिलियन विश्व में दूसरे स्थान पर है।भारत का स.घ. उत्पाद 8.07 ट्रिलियन तथा पाकिस्तान का जीडीपी 0.89 ट्रिलियन डॉलर भारत के जीडीपी के लगभग 12% है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद चीन के सकल घरेलू उत्पाद का 40% है।
  • 1980 के दशक में पाकिस्तान भारत से आगे था। चीन की संवृद्धि दोहरे अंकों में थी और भारत सबसे नीचे था।
  • चीन और पाकिस्तान में भारत की अपेक्षा नगर में रहने वाले लोगों का अनुपात अधिक है।
  • 2011-2015 के दशक में भारत और चीन की संवृद्धि दरों में मामूली गिरावट आई, जबकि पाकिस्तान में 4% की अत्यधिक गिरावट आई। पाकिस्तान में 1988 में प्रारंभ की गई सुधार प्रक्रिया तथा राजनीतिक अस्थिरता इस लंबी अवधि में प्रवृत्ति का मुख्य कारण था।
  • चीन में स्थलाकृति तथा जलवायु दशाओं के कारण कृषि के लिए उपयुक्त क्षेत्र अपेक्षाकृत कम अर्थात कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 10% है। चीन में कुल कृषि योग्य भूमि भारत में कृषि क्षेत्र की 40% है।
  • 1980 के दशक तक चीन में 80% से अधिक लोग जीविका के एकमात्र साधन के रूप में कृषि पर निर्भर थे।
  • सरकार ने लोगों को कृषि कार्य त्यागने और हस्तशिल्प, वाणिज्य तथा परिवहन जैसी गतिविधियाँ अपनाने के लिए प्रेरित किया।
  • 2014-15 में 28% श्रमिकों के साथ कृषि ने चीन में सकल उत्पाद में 9% में योगदान दिया।
  • भारत और पाकिस्तान दोनों में, कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान क्रमशः 17% और 25% था। लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों का अनुपात भारत में अधिक है। पाकिस्तान में, लगभग 42% लोग कृषि कार्य करते हैं; जबकि भारत में यह अनुपात 43% है।
  • उत्पादन और रोजगार में क्षेत्रकवार हिस्सेदारी यह दर्शाती है कि तीनों अर्थव्यवस्थाओं में उद्योग और सेवा क्षेत्रकों में श्रमिकों का अनुपात कम हैं, लेकिन उत्पादन की दृष्टि से उनका योगदान अधिक हैं।
  • चीन में विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रकों से जी.डी.पी. में 43% एवं 48% योगदान होता है जबकि भारत और पाकिस्तान में केवल सेवा क्षेत्र द्वारा ही सबसे अधिक योगदान अर्थात 50% से अधिक होता है। विकास की सामान्य प्रक्रिया के दौरान इन देशों ने सबसे पहले रोजगार और कृषि उत्पादन से संबंधित अपनी नीतियों को बदलकर उन्हें विनिर्माण और उसके बाद सेवाओं की ओर परिवर्तित कर दिया। ऐसे ही चीन में हो रहा है।

भारत और पाकिस्तान में विनिर्माण में लगे श्रमबल का अनुपात बहुत कम अर्थात क्रमश 24% और 27% था।

  • जी.डी.पी. में उद्योगों का योगदान भारत में 30% और पाकिस्तान में 21% है, जिससे यहाँ सीधे सेवा क्षेत्र पर जोर दिया जा रहा है।
  • भारत और पाकिस्तान दोनों में सेवा क्षेत्रक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभर कर आ रहा है। यह जी.डी.पी. में अधिक योगदान कर रहा है और साथ ही यह संभावित नियोक्ता बन रहा है।
  • 1980 के दशक में भारत, चीन तथा पाकिस्तान में सेवा क्षेत्रक में क्रमश: 17, 12, और 27% श्रमबल कार्यरत था। वर्ष 2014 में यह बढ़कर 34, 56 और 54% हो गया है।

  1. मानव विकास के संकेतक:

भारत, चीन और पाकिस्तान ने मानव विकास के चुनिंदा संकेतकों में कैसा निष्पादन हुआ है।

ऊपर दी गई सारणी यह दर्शाती है कि:

  • चीन भारत तथा पाकिस्तान से मानव विकास के संकेतकों के संदर्भ में आगे है।
  • पाकिस्तान निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों का अनुपात कम करने में भारत से आगे हैं। स्वच्छता, शिक्षा और उत्तम पयजल स्रोत के मामलों में भी इसका निष्पादन भारत से बेहतर है।
  • चीन में प्रति एक लाख जन्म पर केवल 27 महिलाओं की मृत्यु होती है, जबकि भारत और पाकिस्तान में यह संख्या 178 एवं 174 के ऊपर हैं।
  • बेहतर स्वच्छता और उत्तम पयजल स्रोत तक पहुँच के संबंध में अन्य दो देशों की तुलना में भारत सबसे खराब स्थिति में है।

  • विकास नीतियाँ: एक मूल्यांकन:
  1. रणनीतियों की सफलता और विफलता:

विकास रणनीतियों से चीन, भारत और पाकिस्तान में संरचनात्मक सुधार आए।

एक-एक करके उनकी सफलता और विफलता को समझेंगे:

  • चीन में संरचनात्मक सुधारों की सफलता:

चीन में संरचनात्मक सुधारों की सफलता है:

  1. शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमि सुधार के क्षेत्रों में आधारिक संरचना की स्थापना की गयी थी।
  2. फलस्वरुप दीर्घकालिक विकेंद्रीकृत योजनाओं और लघु उद्योगों से सुधारोत्तर अवधि में सामाजिक और आय संकेतकों में सुधार हुआ था।
  3. कम्यून प्रणाली के माध्यम से, खाद्यान्नों का समान वितरण हुआ।
  4. ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का बड़े स्तर पर प्रसार हो चुका था। 
  • चीन में संरचनात्मक सुधारों की विफलता

चीन में संरचनात्मक सुधारों की विफलताएँ हैं:

  1. माओवादी शासन के दौरान चीनी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संवृद्धि की धीमी गति और आधुनिकीकरण की कमी थी।
  2. विकेंद्रीकरण, आत्मनिर्भरता और विदेश प्रौद्योगिकी और उत्पादों तथा पूँजी के बहिष्कार पर आधारित आर्थिक विकास माओवादी दृष्टिकोण से विफल रहा है।
  3. व्यापक भूमि सुधारों, सामुदायिकीकरणऔर ग्रेट लीप फॉरवार्ड तथा अन्य पहलों के बावजूद, 1978 में प्रतिव्यक्ति अन्न उत्पादन उतना ही था, जितना 1950 के दशक के मध्य में था।

  • इन क्षेत्रों में चीन भारत से आगे है:

चीनी सुधार प्रक्रिया 80 के दशक के दौरान अधिक व्यापक रूप से शुरू हुई, जब भारत धीमी विकास प्रक्रिया की मध्य-धारा में था।

1978 से 1989 की अवधि के दौरान चीन में ग्रामीण गरीबी में 85% की गिरावट आई। भारत में, इस अवधि के दौरान केवल 50% की गिरावट आई। चीन में अर्थव्यवस्था का वैश्विक प्रसार भारत की तुलना में अत्यधिक व्यापक रहा है।

  • भारत और पाकिस्तान में संरचनात्मक सुधारों की समान सफलताएँ

भारत और पाकिस्तान में संरचनात्मक सुधारों की समान सफलताएँ है:

  1. भारत और पाकिस्तान दोनों ही उच्च जनसंख्या दर के बावजूद अपने देश की प्रतिव्यक्ति आय को दोगुना करने में सफल रहे हैं।
  2. गरीबी में भी काफी कमी आई है। हालांकि, पाकिस्तान में गरीबी का स्तर कम है।
  3. दोनों देशों ने भोजन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है।
  4. दोनों देशों ने अपनी सेवा और उद्योग क्षेत्रों को तीव्र गति से विकसित करने में सफलता प्राप्त की है।
  5. दोनों देशों में आधुनिक तकनीक के उपयोग में सुधार हो रहा है।

  • भारत और पाकिस्तान में संरचनात्मक सुधारों की समान विफलताएँ

भारत और पाकिस्तान में संरचनात्मक सुधारों की समान विफलताएँ हैं:

  1. 1990 के दशक में जी.डी.पी. और उसके क्षेत्रीय घटकों की विकास दर गिर गई है।
  2. गरीबी और बेरोजगारी दोनों देशों में अभी भी प्रमुख चिंता का क्षेत्र है।

  • इन क्षेत्रों में पाकिस्तान भारत से आगे है:

भारत और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगभग समान स्तर से शुरू हुई, परंतु पाकिस्तान ने इन क्षेत्रों में बेहतर परिणाम हासिल किए हैं:

  1. कृषि से उद्योग क्षेत्रकों में कर्मचारियों का प्रवसन
  2. ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में लोगों का प्रवास।
  3. उत्तम पयजल स्रोतों तक पहुँच।
  4. गरीबी रेखा से नीचे की आबादी में कमी।

  • इन क्षेत्रों में भारत पाकिस्तान से आगे है:

कुशल जन-शक्ति और अनुसंधान और विकास संस्थानों के क्षेत्र में भारत को पाकिस्तान से बेहतर स्थान दिया गया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने रक्षा प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान, इलेक्ट्रॉनिक्स और हवाई जहाज, आनुवंशिक विज्ञान, दूरसंचार, आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है। हर साल विज्ञान और इंजीनियरिंग में भारत द्वारा उत्पादित पी.एच.डी. की संख्या (लगभग 5000) पाकिस्तान के पूरे देश के पी.एच.डी. से अधिक है। भारत में विशेष रूप से सामान्य और शिशु मृत्यु दर में स्वास्थ्य सुविधाओं के मुद्दों को बेहतर तरीके से संबोधित किया जाता है।