Class 12th लेखाशास्त्र (Accountancy)

Chapter 5 - साझेदारी फर्म का विघटन 

(Dissolution of a Partnership Firm)

  • फर्म का विघटन (Dissolution of Firm):

साझेदारी अधिनियम 1932 (Partnership Act 1932 )की धारा 39 के अनुसार सभी साझेदारों के मध्य साझेदारी के विघटन को फर्म का विघटन (Dissolution of Firm) कहते हैं। इससे आशय है कि अधिनियम समस्त साझेदारों के मध्य और कुछ साझेदारों के मध्य संबंध विच्छेद (breaking of relationship) में भेद करता है तथा समस्त साझेदारों के बीच संबंधों के समापन को साझेदारी फर्म का विघटन (Dissolution of Partnership Firm) कहा जाता है। इस तरह फर्म का अस्तित्व समाप्त हो जाता है तथा विघटन के पश्चात फर्म पुस्तकों को बंद करने की गतिविधियों के अतिरिक्त कोई और कार्य नहीं किया जाता। फर्म के विघटन के पश्चात समस्त परिसंपत्तियों को बेचा तथा सभी दायित्वों का भुगतान कर दिया जाता है।

  • साझेदारी का विघटन (Dissolution of Partnership) : साझेदारी का विघटन निम्न प्रकार से हो सकता हैः
  1. साझेदारों के मध्य लाभ विभाजन अनुपात में परिवर्तन (Change in existing profit sharing ratio among the partners);
  2. नए साझेदार का प्रवेश (Admission of a new partner);
  3. साझेदार का अवकाश ग्रहण करना (Retirement of a partner);
  4. साझेदार की मृत्यु (Death of a Partner);
  5. साझेदार का दिवालिया होना (Insolvency of a partner);
  6. निर्दिष्ट कार्य का समापन, यदि साझेदारी इसी के लिए गठित की गई हो (Completion of venture, if partnership is formed for that); तथा
  7. साझेदारी की अवधि का समापन यदि साझेदारी एक निर्धारित समय अवधि के लिए की गई थी (Expiry of the period of partnership)।

  • फर्म का विघटन (Dissolution of Firm) : भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 39 से 44 तक फर्म के विघटन की विभिन्न रीतियों का उल्लेख है। जो निम्नलिखित है-

  1. समझौते द्वारा विघटन (Dissolution by Agreement) : फर्म का विघटन निम्न परिस्थितियों में हो सकता हैः
  1.  सभी साझेदारों की सहमति द्वारा;
  2.  साझेदारों के मध्य अनुबंध (contract) के अनुसार।

  1. अनिवार्य विघटन (Compulsory Dissolution) : फर्म का अनिवार्य विघटन निम्न परिस्थितियों में होता हैः
  1. जब कोई एक साझेदार या सभी साझेदार दिवालिया हो जाए या किसी अनुबंध को करने में अक्षम हो जाए |
  2. जब फर्म का व्यवसाय गैर-कानूनी हो जाए; अथवा
  3. जब कोई ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि साझेदारी फर्म का व्यवसाय गैर-कानूनी हो जाए, उदाहरणार्थ जब एक साझेदार ऐसे देश का नागरिक हो जिसका भारत के साथ युद्ध घोषित हो जाए।

  1. अनिश्चितता की स्थिति में (On the happening of certain contingencies) : साझेदारों के बीच अनुबंध की स्थिति में फर्म का विघटन :
  1. यदि एक निर्धारित अवधि के लिए गठित है तो उस अवधि के समापन पर;
  2. यदि एक या अधिक उपक्रम के लिए गठित है तो उसके पूरा होने पर;
  3. साझेदार की मृत्यु पर; अथवा
  4. साझेदार के दिवालिया घोषित होने पर होता है।

  1. सूचना द्वारा विघटन (Dissolution by Notice) : स्वैच्छिक साझेदारी की स्थिति में यदि एक साझेदार अन्य साझेदारों को लिखित सूचना देकर साझेदारी फर्म के विघटन की इच्छा व्यक्त करता है।

  1. न्यायालय द्वारा विघटन (Dissolution by Court) : एक साझेदार की याचिका पर, निम्न स्थितियों में न्यायालय फर्म के विघटन का आदेश दे सकता हैः
  1. जब कोई साझेदार मानसिक संतुलन खो दे;
  2. जब कोई साझेदार स्थायी रूप से साझेदार के कर्त्तव्यों का पालन करने में अक्षम हो;
  3. जब कोई साझेदार कुप्रबंधन का दोषी हो जिससे कि फर्म के व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका हो;
  4. जब कोई साझेदार जानबूझ कर बार-बार साझेदारी अनुबंध का उल्लंघन करता है;
  5. जब कोई साझेदार फर्म में अपना संपूर्ण हित किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दे;
  6. जब फर्म को व्यवसाय चलाने से हानि के अतिरिक्त कुछ न हो; अथवा
  7. जब न्यायालय फर्म के विघटन को ठीक व न्यायसंगत समझे।

  • साझेदारी का विघटन और साझेदारी फर्म का विघटन में अंतर:

  • खातों का निपटारा (Settlement of Accounts) :

फर्म का विघटन होने पर, फर्म अपना व्यवसाय बंद कर देती है और खातों का निर्धारण कर दिया जाता है। इसके लिए फर्म अपनी परिसंपत्तियों का निपटारा, अपने विरुद्ध सभी दायित्वों का भुगतान कर देती है। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि साझेदारों के मध्य समझौते के आधार पर साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 48 के अनुसार निम्न नियम लागू होंगेः

  1. हानियों का व्यवहार (Treatment of losses) : हानि (पूँजी में कमी सहित) देय होंगेः

  1. प्रथम लाभ में से;
  2. इसके पश्चात साझेदारों की पूँजी में से; तथा
  3. अंततः यदि आवश्यक हो तो साझेदारों द्वारा उनके लाभ-विभाजन अनुपात में व्यक्तिगत रूप में।

  1. परिसंपत्तियों का उपयोग (Application of assets) :

फर्म की परिसंपत्तियाँ, साझेदारों द्वारा पूँजी में कमी को पूरा करने के लिए किए गए अंशदान सहित

निम्न प्रकार तथा क्रम से प्रयुक्त होगी :-

  1. फर्म के ऋण का अन्य पक्षों को भुगतान;
  2. साझेदारों द्वारा फर्म को दिए गए अग्रिम (advances) जो कि पूँजी से भिन्न है (उदाहरणार्थ, साझेदार से ऋण) को प्रत्येक साझेदार को आनुपातिक भुगतान;
  3. पूँजी खाते में जो साझेदारों को देय हैं, प्रत्येक साझेदार का आनुपातिक भुगतान होगा; तथा
  4. शेष राशि यदि कोई है, सभी साझेदारों में उनके लाभ विभाजन अनुपात में विभाजित होगी।

  • व्यक्तिगत ऋण तथा फर्म के ऋण (Private Debts and Firm’s Debts): जब साझेदारों के व्यक्तिगत ऋण तथा फर्म के ऋण साथ-साथ होते हैं वहाँ अधिनियम की धारा 49 के निम्न नियम लागू होंगेः

  1. फर्म की परिसंपत्तियों का प्रयोग सर्वप्रथम फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए किया जाएगा तथा आधिक्य राशि, यदि कोई हो तो, साझेदारों में उनके दावों के अनुसार विभाजित होगी जिसका उपयोग अनेक निजी दायित्वों के भुगतान के लिए किया जाएगा।

  1. साझेदार की निजी परिसंपत्तियों का उपयोग सर्वप्रथम उसके निजी ऋणों के भुगतान के लिए किया जाएगा तथा शेष राशि यदि कोई है तो उसका उपयोग फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए उस स्थिति में होगा यदि फर्म के दायित्व फर्म की परिसंपत्तियों से अधिक है।

  1. साझेदारों की निजी परिसंपत्तियों में उसकी पत्नी और बच्चों की निजी परिसंपत्तियों को शामिल नहीं किया जाएगा। अतः यदि फर्म की परिसंपत्तियाँ फर्म के दायित्वों का भुगतान करने के लिए पर्याप्त नहीं है तो साझेदारों को अपनी निवल निजी परिसंपत्तियों (निजी परिसंपत्तियों में से निजी दायित्वों को घटाकर) को अभिदान करना पड़ेगा।

  • वसूली खाता (Realisation Account)

  1. जब फर्म का विघटन होता है तो फर्म की पुस्तकें बंद कर दी जाती है और परिसंपत्तियों की वसूली तथा दायित्वो के भुगतान के पश्चात होने वाली हानि या लाभ की गणना की जाती है, जिसके लिए वसूली खाता (Realisation Account) तैयार किया जाता है।

  1. इस खाते के माध्यम द्वारा परिसंपत्तियों से वसूली तथा दायित्वों के भुगतान के पश्चात निवल प्रभाव Net effect (लाभ या हानि) का निर्धारण करके साझेदारों के पूँजी खाते में उनके लाभ विभाजन अनुपात में हस्तांतरित किया जाता है |

  1. सभी परिसंपत्तियाँ (हस्तस्थ रोकड़, बैंक शेष तथा काल्पनिक परिसंपत्तियों के अतिरिक्त यदि कोई हो) तथा सभी बाह्य दायित्वों को इस खाते में हस्तांतरित किया जाता है।

  1. यह खाता परिसंपत्तियों की बिक्री, दायित्वों का भुगतान तथा वसूली व्ययों (Realisation Expenses) का अभिलेखन करता है। इस खाते के शेष को वसूली पर लाभ या हानि (Profit or loss on Realisation) कहा जाता है जो कि साझेदारों के पूँजी खाते में उनके लाभ विभाजन अनुपात में हस्तांतरित किया जाता है।

वसूली खाते का प्रारूप

  • रोज़नामचा प्रविष्टियाँ (Journal Entries) :

  1.  परिसंपत्तियों के हस्तांतरण पर (For transfer of assets) :

रोकड़, बैंक और अवास्तविक परिसंपत्तियों के अतिरिक्त सभी परिसंपत्तियों के खाते पुस्तक मूल्य पर वसूली खाते के नाम पक्ष (Debit side) में हस्तांतरित किए जाते हैं। विविध देनदारों (Sundry Debtors) को सकल मूल्य (Gross Value) पर हस्तांतरित किया जाता है और डूबत व संदिग्ध् ऋणों के लिए प्रावधान (Provision for Doubtful Debts) को दायित्वों के साथ वसूली खाते के जमा पक्ष (credit side) में हस्तांतरित किया जाता है। यही प्रक्रिया स्थायी परिसंपत्तियों पर लागू होगी यदि ह्यस के लिए प्रावधान खाता बनाया गया हो।

  1. दायित्वों के हस्तांतरण पर (For transfer of liabilities):

प्रावधान सहित सभी बाह्य दायित्वों को वसूली खाते के जमा पक्ष (credit side) में हस्तांतरित करके बंद किया जाता है।


  1. परिसंपत्तियों की बिक्री पर (For sale of assets):


  1. साझेदार द्वारा ली गई परिसंपत्तियों के लिए (For an asset taken over by a partner):
  1. दायित्वों के भुगतान करने पर (For payment of liabilities):
  1. साझेदार द्वारा दायित्वों का भुगतान करने का उत्तरदायित्व लेने पर (For a liability which a partner takes responsibility to discharge):


  1. परिसंपतियों के हस्तांतरण द्वारा लेनदारों को भुगतान (For settlement with the creditor for transfer of assets): 

जब लेनदार पूर्ण रूप से अपने खाते का भुगतान प्राप्त करने के लिए परिसंपत्ति को स्वीकार करता है तो कोई रोज़नामचा प्रविष्टि नहीं की जाती है, परंतु यदि लेनदार आंशिक रूप में परिसंपत्ति को स्वीकार करता है तब केवल रोकड़ भुगतान की प्रविष्टि की जाएगी।


            हालाँकि जब लेनदार ने परिसंपत्ति स्वीकार कर ली है, जिसका मूल्य देय राशि से अधिक है तो वह अंतर की राशि का फर्म को भुगतान करेगा। इसकी प्रविष्टि इस प्रकार होगीः         

  1. वसूली व्यय के भुगतान पर (For payment of realisation expenses):

  1. जब परिसंपत्तियों की वसूली और दायित्वों के भुगतान की प्रक्रिया में कुछ व्ययों का भुगतान फर्म द्वारा किया जाता हैः
  1. जब फर्म की ओर से वसूली व्ययों का भुगतान एक साझेदार के द्वारा किया गया हैः


  1.  जब एक साझेदार किसी स्वीकृत पारितोषिक पर विघटन कार्य से संबंधित व्ययों को वहन करने

के लिए सहमत होता हैः

  1. जब फर्म द्वारा वसूली व्यय दिया जाता है
  1. यदि साझेदार वसूली व्यय का स्वंय भुगतान करता है तब कोई प्रविष्टि आवश्यक नहीं है।

              नोटः सूचना के अभाव में यह माना जाता है कि व्ययों का निपटान उसी साझेदार ने किया जिसने व्ययों को वहन करने की ज़िम्मेदारी ली है।

     9. साझेदार को पारितोषिक देने पर (For remuneration to a partner):

   10.  किसी भी ख्याति सहित गैर अभिलेखित परिसंपत्तियों की वसूली पर (For realisation of any    

          unrecorded assets including goodwill):

   11. गैर-अभिलेखित दायित्वों के भुगतान पर (For settlement of any unrecorded liability):

   12. साझेदार को फर्म द्वारा ऋण का निपटारा (For settlement of loan by a firm to partner):

   13. वसूली पर लाभ हानि का हस्तांतरण करने पर (For transfer of profit and loss on

         realisation)

  1. वसूली पर लाभ होने पर (In case of profit  on realisation):
  1.  वसूली पर हानि होने पर (In case of loss on realisation):

14. संचित लाभों का हस्तांतरण करने पर जो कि संचय कोष या सामान्य संचय के रूप में है (For

     transfer of accumulated profits in the form of general reserve to partner’s capital

     accounts in their profit sharing ratio):


15.  आभासी परिसंपत्तियों को साझेदारों के पूँजी खाते में उनके लाभ विभाजन अनुपात में हस्तांतरित    

       करने पर (For transfer of fictitious assets, if any, to partner’s capital accounts in

       their profit sharing ratio):


16. साझेदारों से लिए गए ऋणों के भुगतान पर (For payment of loans due to partners):

17. साझेदारों के खातों के भुगतान पर (For settlement of partner’s accounts)

      यदि साझेदार का पूँजी खाता नाम शेष दर्शाता है तथा वह आवश्यक रोकड़ लाता है तो ऐसी स्थिति में प्रविष्टि इस प्रकार होगीः

      जब साझेदार का खाता जमा शेष दर्शाए और राशि का भुगतान कर दिया जाए तब निम्न प्रविष्टि अभिलेखित की जाएगी

      वह कुल राशि जो साझेदारों को अंततः देय है बैंक में उपलब्ध रकम और रोकड़ खाते के बराबर होनी

      चाहिए। अतः विघटन क्रिया पूर्ण होने पर फर्म के सभी खाते स्वतः बंद हो जाते हैं।


उदाहरण 1:- नयना और आरूषी बराबर के साझेदार हैं। 31 मार्च, 2017 को उनका तुलन पत्र नीचे दिया गया है:

इस तिथि को फर्म का विघटन हुआः

  1. नयना ने 50% स्टॉक को पुस्तक मूल्य से 10% कम पर लिया और शेष स्टॉक को 15% लाभ पर बेच दिया गया। फर्नीचर और मशीनरी से क्रमशः 30,000 रुपये व 50,000 रुपये वसूल हुए।

  1. गैर-अभिलेखित विनियोग को 34,000 रुपये में बेचा गया।

  1. देनदारों से 31,500 रुपये (ब्याज सहित) वसूली हुई और 1,200 रुपये पिछले वर्ष अपलिखित डूबत ऋण से प्राप्त हुए।

  1. मरम्मत के बकाया बिल का 2,000 रुपये भुगतान किया गया।

फर्म की पुस्तकों को बंद करने के लिए आवश्यक रोज़नामचा प्रविष्टियों का अभिलेखन करें तथा बही खाते तैयार करें।

हल :-