Class 12th प्रारंभिक व्यष्टि अर्थशास्त्र (Introductory Microeconomics)

Chapter 5

बाजार संतुलन (Market Equilibrium)

  • उपभोक्ताओं का उद्देश्य अपने अपने अधिमान को अधिकतम करना तथा फर्मों का उद्देश्य अपने-अपने लाभ को अधिकतम करना है।
  • संतुलन की स्थिति में जिस कुल मात्रा का विक्रय करने की सभी फर्में इच्छुक हैं वह उस मात्रा के बराबर होता है जिसे बाजार में सभी उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, बाजार पूर्ति बाजार माँग के बराबर (Market Demand = Market Supply) होती है। ऐसी स्थिति में बाजार रिक्त हो जाता है और न ही फर्म और न ही उपभोक्ता इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव करने के लिए इच्छुक होते हैं।
  • जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है उसे संतुलन कीमत (Equilibrium Price) कहते हैं तथा इस कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा संतुलन मात्रा (Equilibrium Quantity) कहलाती है।
  • यदि किसी कीमत पर बाजार पूर्ति, बाजार माँग से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिपूर्ति (Excess Supply) होती है तथा यदि किसी कीमत पर बाजार माँग बाजार पूर्ति से अधिक है, तो उस कीमत पर बाजार में अधिमाँग (Excess Demand) होती है।
  • पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन को वैकल्पिक रूप में शून्य अधिमाँग- शून्य अधिपूर्ति (Zero Excess Demand- Zero Excess Supply) की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • जब कभी बाजार पूर्ति बाजार माँग के समान नहीं हो और बाजार संतुलन में नहीं होता तो कीमत में परिवर्तन की प्रवृत्ति होगी। जब भी बाजार में असंतुलन होता है तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक अदृश्य हाथ’ (Invisible Hand) कीमतों में परिवर्तन कर देता है। यह माना जाता है कि अदृश्य हाथ, अधिमाँग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी करेगा।

  • बाजार संतुलन: फर्मों की स्थिर संख्या :- बाजार माँग वक्र DD तथा बाजार पूर्ति वक्र SS प्रतिच्छेदन बिंदु संतुलन दर्शाता है। संतुलन मात्रा q* है तथा संतुलन कीमत p* है।

  1. यदि प्रचलित कीमत p1 है तो बाजार माँग q1 है  जबकि बाजार पूर्ति q'1 है। अतः बाजार में q'1 q1 के बराबर अधिमाँग है। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में या तो पूर्ण रूप से असमर्थ है अथवा इसे अपर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर पाते हैं, वे p1 से अधिक कीमत चुकाने को तत्पर होंगे। बाजार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी| अन्य बातें समान रहने पर जैसे-जैसे कीमत में वृद्धि होगी, माँग की मात्रा में गिरावट होती रहेगी, पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होगी तथा बाजार एक ऐसे बिंदु की ओर अग्रसर होगा, जहाँ फर्म द्वारा विक्रय करने के लिए इच्छित मात्रा उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली इच्छित मात्रा के बराबर हो जाएगी।

  1. यदि प्रचलित कीमत p2 है, तो उस कीमत पर बाजार पूर्ति q2 और बाजार माँग q'2 है| अतः बाजार में q2q'2 के बराबर अधिपूर्ति होगी। ऐसी स्थिति में कुछ फर्मे अपनी इच्छित मात्रा के अनुरूप विक्रय करने में असमर्थ होंगी। अतः वे अपनी कीमत घटाएँगी। अन्य बातें समान रहने पर, जैसे-जैसे कीमत घटती है, वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है, पूर्ति की मात्रा घटती है तथा बाजार एक ऐसे बिंदु की ओर अग्रसर होता है जहाँ फर्म द्वारा विक्रय करने के लिए इच्छित मात्रा उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली इच्छित मात्रा के बराबर होती है।

  • फर्मों की संख्या स्थिर होने पर माँग वक्र में शिफ्ट का बाजार संतुलन पर प्रभाव :-
  1. आरंभ में बाजार संतुलन E पर है जहाँ बाजार माँग वक्र DD0 तथा बाजार पूर्ति वक्र SS0 एक दूसरे को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि q0 तथा pक्रमश संतुलन मात्रा तथा संतुलन कीमत को दर्शाते हैं।

  1. माँग वक्र का दायीं ओर शिफ्ट:-
  1. यदि बाजार माँग वक्र पूर्ति वक्र के SS0 पर स्थिर रहने पर दायीं ओर DD2 पर शिफ्ट हो जाता है। इस स्थिति में p0 कीमत पर अब बाजार में q0q''के बराबर अधिमाँग है।
  1. इस अधिमाँग के कारण कुछ व्यक्ति ऊँची कीमत पर भुगतान करने को तैयार होंगे और कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी।
  1. बाजार पूर्ति में वृद्धि होगी, नया संतुलन G बिंदु पर होगा जहाँ संतुलित मात्रा q2, q0 से अधिक है और संतुलन कीमत p2,  p0 से अधिक है।

  1. माँग वक्र का बायीं ओर शिफ्ट:-
  1. यदि माँग वक्र DD1 पर बायीं ओर शिफ्ट हो जाता है तो किसी भी कीमत पर माँग की मात्रा शिफ्ट से पहले की तुलना में कम होगी।
  1. अतः आरंभिक संतुलन कीमत p0 पर अब बाजार में क्यों q'0q0 के बराबर अधिपूर्ति है, जिसके कारण कुछ फर्म अपनी वस्तु की कीमत कम कर देंगे ताकि वह वस्तु की इच्छित मात्रा का विक्रय कर सकें।
  1. नया संतुलन बिंदु F पर है, जिस पर माँग वक्र DD1 तथा पूर्ति वक्र SS0 परस्पर प्रतिच्छेद करते हैं तथा परिणामस्वरुप संतुलन कीमत p1, pकी तुलना में कम है एवं मात्रा q1, q0 से कम है।

  • फर्मों की संख्या स्थिर होने पर पूर्ति वक्र में शिफ्ट का बाजार संतुलन पर प्रभाव :-
  1. आरंभ में बाजार संतुलन E पर है, जहाँ बाजार माँग वक्र DD0 तथा बाजार पूर्ति वक्र SS0 एक दूसरे को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि q0 तथा p0 क्रमश संतुलन मात्रा तथा संतुलन कीमत को दर्शाते हैं।

  1. पूर्ति वक्र का बायीं ओर शिफ्ट:-
  1. मान लीजिए कि किसी कारण बाजार पूर्ति वक्र SS2 पर बायीं ओर शिफ्ट होता है और माँग वक्र अपरिवर्तित रहता है।
  1. इस शिफ्ट के कारण प्रचलित कीमत पर बाजार में q"0q0 के बराबर अधिमाँग होगी। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, अधिक कीमत भुगतान करने के इच्छुक होंगे तथा बाजार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। 
  1. बिन्दु G पर नया संतुलन प्राप्त होगा, जहाँ पूर्ति वक्र SS2 माँग वक्र DD0 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करता है कि pकीमत पर q2 मात्रा खरीदी तथा बेची जाएगी।

  1. पूर्ति वक्र का दायीं ओर शिफ्ट:-
  1. पूर्ति वक्र दाँयी ओर SS1 पर शिफ्ट होती है जहाँ कीमत p0 पर बाजार में q'0q0 के बराबर अधिपूर्ति है।
  1. इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्में अपनी वस्तु की कीमत गिरा देंगी तथा F पर नया संतुलन होगा, जहाँ पूर्ति वक्र SS1 माँग वक्र DD0 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि नई बाजार कीमत p1 है, जिस पर q1 मात्रा खरीदी व बेची जाती है।

  • माँग तथा पूर्ति का एक साथ शिफ्ट:-

जब माँग तथा पूर्ति वक्रों में एक साथ शिफ्ट होता है, तब चार संभावित प्रकार से हो सकता हैः

  1. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का दायीं ओर शिफ्ट
  2. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का बायीं ओर शिफ्ट
  3. पूर्ति वक्र का बायीं ओर तथा माँग वक्र का दायीं ओर शिफ्ट
  4. पूर्ति वक्र का दायीं ओर तथा माँग वक्र का बायीं ओर शिफ्ट

एक साथ माँग तथा पूर्ति वक्र के शिफ्ट का बाजार संतुलन पर प्रभाव:-


  • बाजार संतुलन: निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन (Free Entry and Exit):-

प्रवेश तथा बहिर्गमन की मान्यता (Assumption of Entry and Exit) से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न अधिसामान्य लाभ (Super Normal Profits) अर्जित करती है और न हानि उठाती है। दूसरे शब्दों में, संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत (Minimum Average Cost) के बराबर होगी।

  1. मान लीजिए प्रचलित बाजार कीमत पर प्रत्येक फर्म अधिसामान्य लाभ अर्जित कर रही है। अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना नई फर्मों को आकर्षित करेगी। जैसे ही कई फर्में बाज़ार में प्रवेश करती हैं, पूर्ति वक्र दाहिने ओर को शिफ्ट हो जाती है, लेकिन माँग अपरिवर्तित रहती है। इसके फलस्वरूप बाजार कीमत गिर जाती है। जैसे हीं कीमतें गिरती हैं, अधिसामान्य लाभ समाप्त हो जाते हैं। इस बिन्दु पर जहाँ सभी फर्में बाजार में सामान्य लाभ अर्जित कर रही है, किसी और फर्म के प्रवेश के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होगा।
  1. यदि प्रचलित कीमत पर फर्में सामान्य से कम लाभ अर्जित कर रही हैं, तो कुछ फर्में बहिर्गमन कर जाएँगी, जिससे कीमत में वृद्धि होगी और प्रत्येक फर्म के लाभ बढ़कर सामान्य लाभ के स्तर पर आ जाएँगे। इस बिन्दु पर और अधिक फर्म बहिर्गमन करने की इच्छुक नहीं होगी क्योंकि यहाँ सभी फर्में सामान्य लाभ अर्जित कर रही होंगी।

अतः प्रवेश तथा बहिर्गमन के द्वारा प्रत्येक फर्म प्रचलित बाजार कीमत पर सदैव सामान्य लाभ (Normal Profits) अर्जित करेगी।

  • फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि बाजार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी, अर्थात् p= न्यूनतम औसत लागत
  • प्रवेश तथा बहिर्गमन सहित कीमत निर्धारणः निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के साथ पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है तथा संतुलन मात्रा बाजार माँग वक्र DD तथा कीमत रेखा p= न्यूनतम औसत लागत के प्रतिच्छेदन पर निर्धारित होती है।

  1. p0 = न्यूनतम औसत लागत पर प्रत्येक फर्म समान मात्रा q0 की पूर्ति करती है। अतः बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर है, जो  निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है।
  1. प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0 मात्रा की पूर्ति करेगी। यदि हम n0 द्वारा फर्मों की संतुलन संख्या को दर्शाते हैं, तो:

  • निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र में शिफ्ट का बाजार संतुलन पर प्रभाव :-
  1. फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि सभी परिस्थितियों में संतुलन कीमत विद्यमान फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। इस स्थिति में, यदि बाजार माँग वक्र किसी भी दिशा में शिफ्ट होता है, तो नये संतुलन पर बाजार उसी कीमत पर इच्छित मात्रा की पूर्ति करेगा।

  1. माँग वक्र का दायीं ओर शिफ्ट:-

उपरोक्त चित्र में DD0 बाजार माँग वक्र है, जो बताता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा कितनी मात्रा माँगी जाएगी तथा p0 उस कीमत को बताता है जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। आरंभिक संतुलन E बिन्दु पर है, जहाँ माँग वक्र  DD0, p0= न्यूनतम औसत लागत रेखा को काटता है तथा माँग तथा पूर्त्ति की कुल मात्रा q0 है। इस स्थिति में फर्मों की संतुलन संख्या n0 है।

  1. मान लीजिए कि माँग वक्र किसी कारणवश दायीं ओर शिफ्ट होती है। कीमत p0 पर वस्तु की अधिमाँग होगी। कुछ असंतुष्ट उपभोक्ता वस्तु की अधिक कीमत देने के इच्छुक होंगे। अतः कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी।
  1. इससे अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना होगी जिससे नई फर्में बाजार में आकर्षित होंगी। इन नई फर्मों का प्रवेश अधिसामान्य लाभ समाप्त कर देगा तथा कीमत पुनः p0 पर पहुँच जायेगी। अब उच्च मात्रा की पूर्ति उसी कीमत पर होगी।  
  1. नया माँग वक्र DD1, p= न्यूनतम औसत लागत रेखा को बिन्दु  F पर प्रतिच्छेदित करती है। इस प्रकार, नया संतुलन (p0, q1) होगा जहाँ q1, p0 की तुलना में अधिक है। 
  1. नयी फर्मों के प्रवेश के कारण फर्मों की नयी संतुलन संख्या n1, n0 से अधिक है।

      III.   माँग वक्र का बायीं ओर शिफ्ट:-

  1. इसी प्रकार, माँग वक्र के DD2 पर बायीं ओर शिफ्ट होने पर p0 कीमत पर अधिपूर्ति होगी।
  2. इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्में जो p0 कीमत पर अपनी वस्तु की इच्छित मात्रा नहीं बेच पाएँगी, अपनी कीमत कम करना चाहेंगी। कीमत के घटने की प्रवृत्ति होगी, परिणामस्वरूप कुछ विद्यमान फर्में बहिर्गमन करेंगी। कीमत पुनः p0 पर आ जायेगी।
  3. अतः नए संतुलन में कम मात्रा की पूर्ति होगी, जो उस कीमत पर घटी हुई माँग के बराबर होगी।
  4. उपरोक्त चित्र में, जहाँ माँग वक्र के DD0 से DD2 पर शिफ्ट होने के कारण माँग तथा पूर्ति की मात्रा घटकर q2 हो जाती है जबकि p0 पर कीमत अपरिवर्तित रहती है।
  5. यहाँ कुछ वर्त्तमान फर्मों के बहिर्गमन के कारण, फर्मों की संतुलन संख्या n2, n0 से कम है।

        अतः माँग में दायीं (बाँयीं) ओर शिफ्ट के कारण, संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होगी

        जबकि संतुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी।

  • उच्चतम निर्धारित कीमत (Price Ceiling):-
  1. सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं। साधारणतः आवश्यक वस्तुओं जैसे, गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल, चीनी के लिए ऐसी कीमत तय की जाती है तथा यह बाजार निर्धारित कीमत से कम होती हैं, क्योंकि बाजार निर्धारित कीमत पर इन सभी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए जनसंख्या का कुछ भाग समर्थ नहीं होगा।

  1. गेहूँ की संतुलन कीमत एवं मात्रा क्रमश: p* तथा q* है। गेहूँ बाजार में जब सरकार pc पर उच्चतम कीमत निर्धारित करती है जो संतुलन कीमत स्तर से कम है, तो इस कीमत पर बाजार में गेहूँ की अधिमाँग होगी। उपभोक्ता qc किलोग्राम गेहूँ की माँग करते हैं, जबकि फर्मों द्वारा पूर्ति केवल q'c किलोग्राम है। यद्यपि सरकार की मंशा उपभोक्ताओं की मदद करना था, लेकिन इसके द्वारा गेहूँ की कमी हो जाएगी। तब गेहूँ की मात्रा q'c को राशन व्यवस्था के द्वारा सभी उपभोक्ताओं में वितरित किया जा सकता है। उपभोक्ताओं को राशन कूपन जारी किए जाते है, ताकि कोई भी व्यक्ति-विशेष एक निश्चित मात्रा से अधिक गेहूँ न खरीद सके और गेहूँ की यह अनुबद्ध मात्रा राशन की दुकानों द्वारा बेची जाती है, जिन्हें उचित कीमत की दुकानें भी कहते हैं।
  1. साधारणत: राशन के साथ वस्तु की उच्चतम कीमत के उपभोक्ताओं पर निम्न प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं:
  1. प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
  2. क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाजार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

  • निम्नतम निर्धारित कीमत (Price Floor):-
  1. कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में एक स्तर विशेष से नीचे गिरावट वांछनीय नहीं होती। अत: सरकार इन वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए न्यूनतम कीमत निर्धारित करती है। सरकार द्वारा किसी वस्तु अथवा सेवा के लिए निर्धारित न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं।
  1. निम्नतम निर्धारित कीमत के सुपरिचित उदाहरण कृषि समर्थन, कीमत कार्यक्रम तथा न्यूनतम मजदूरी विधान हैं।
  1. कृषि समर्थन कीमत कार्यक्रम द्वारा सरकार कुछ कृषि पदार्थां के लिए क्रय कीमत की न्यूनतम सीमा तय कर देती है और यह साधारणत: इन वस्तुओं की बाजार-निर्धारित कीमत से ऊँचे स्तर पर तय की जाती है।
  2. न्यूनतम मजदूरी विधान द्वारा सरकार यह सुनिश्चित करती है कि श्रमिकों की मजदूरी दर एक विशेष स्तर से नीचे न गिरे। यहाँ भी न्यूनतम मजदूरी दर को संतुलन मजदूरी दर से अधिक रखा जाता है।

  1. उपरोक्त चित्र एक ऐसी वस्तु के बाजार पूर्ति तथा बाजार माँग वक्र को दर्शाता है, जिसकी कीमत निम्नतम निर्धारित की गई है। यहाँ बाजार संतुलन कीमत p* तथा मात्रा q* है। परंतु जब सरकार निम्नतम कीमत सीमा pf संतुलित कीमत p* से अधिक पर निर्धारित करती है, बाजार माँग qf हो जाती है जबकि फर्में q'f मात्रा की पूर्ति करना चाहती है, जिसके कारण qfq'f के बराबर बाजार में अधिपूर्ति होती है। कृषि समर्थन के अंतर्गत अधिपूर्ति के कारण कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार को पूर्व-निर्धारित कीमत पर अधिशेष (Surplus) को खरीदना पड़ता है।