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Class 12th व्यष्टि अर्थशास्त्र (Microeconomics)
Chapter 2
उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत (Theory of Consumer Behaviour)
उपभोक्ता उस व्यक्ति को कहते है, जो विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करता है। एक उपभोक्ता उन वस्तुओं को खरीदने की इच्छा रखता है जो उसे “सर्वाधिक संतोष” प्रदान कर सकें।
यह निर्णय दो बातों पर निर्भर करता है-
एक वस्तु की उपयोगिता (Utility), उसकी किसी आवश्यकता अथवा इच्छा को संतुष्ट करने की क्षमता है। एक उपभोक्ता को किसी वस्तु से कितनी उपयोगिता प्राप्त होगी, यह दो बातों पर निर्भर करता है- आवश्यकता और इच्छा। एक उपभोक्ता को किसी वस्तु की जितनी अधिक आवश्यकता होगी अथवा उस वस्तु को प्राप्त करने की जितनी अधिक इच्छा होगी, वह वस्तु उसके लिए उतनी ही अधिक उपयोगी होगी।
उपयोगिता के मापन से संबंधित दो दृष्टिकोण हैं-
पहले हम गणनावाचक दृष्टिकोण के अंतर्गत उपभोक्ता के व्यवहार के बारे में चर्चा करेंगे-
MU5= TU5 - TU4 = 30-28 = 2.
MUn= TUn-TUn-1, जहाँ पर n का अर्थ वस्तु की nवीं इकाई है।
जब हम वस्तुओं के ऐसे विभिन्न संयोगों (Combinations), जिन पर उपभोक्ता के संतुष्टि (Satisfaction) का स्तर समान होता है, ग्राफ (Graph) पर एक वक्र द्वारा दर्शाते हैं, तब उसे अनधिमान वक्र (Indifference Curve) कहते हैं। अनधिमान वक्र की अवधारणा क्रमवाचक उपयोगिता विश्लेषण पर आधारित है।
यह एक काल्पनिक उदाहरण है जिससे आपको अनधिमान वक्र को बेहतर ढंग से समझने में आसानी होगी:
उपभोक्ता के पास एक बंडल (1,15) है, जिसमें केले की 1 इकाई है और आम की 15 इकाइयाँ हैं। अब, हम उपभोक्ता से पूछते हैं कि केले की एक अतिरिक्त इकाई के बदले वह आम की कितनी इकाइयाँ देने को तैयार है ताकि उसकी संतुष्टि का स्तर अपरिवर्तित रहे। उपभोक्ता केले की एक अतिरिक्त इकाई के लिए आम की 3 इकाइयों को देने के लिए सहमत है। इसलिए, अब उसके पास केले और आम के दो ऐसे बंडल हैं जो उपभोक्ता को समान संतुष्टि देते हैं:
- केले की 1 इकाई और आम की 15 इकाइयाँ
- केले की 2 इकाइयाँ और आम की 12 इकाइयाँ
ग्राफ पर सभी बंडलों की चित्रमय प्रस्तुति जो उपभोक्ता को समान स्तर की संतुष्टि देती है, अनधिमान वक्र कहलाती है। इस वक्र पर सभी बंडल (A,B,C,D सहित अन्य सभी बिंदु) उपभोक्ता को समान संतुष्टि देते हैं।
अर्थशास्त्र में हम प्रतिस्थापन की सीमान्त दर के निरपेक्ष मान को महत्त्व देते हैं:MRS= | ∆Y / ∆X |
अनधिमान वक्र की आकृति:-
अनधिमान वक्र की आकृति सीमांत प्रतिस्थापन दर पर निर्भर करती है-
जब प्रतिस्थापन की सीमांत दर निरंतर गिर रही हो (ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम)-
1. जब प्रतिस्थापन की सीमांत दर स्थिर हो (पूर्ण स्थानापन्न वस्तु की स्थिति में)-
2. जब प्रतिस्थापन की सीमांत दर बढ़ रही हो-
अनधिमान मानचित्र (Indifference Map):-
सभी बंडलों पर उपभोक्ता के अधिमानों को अनधिमान वक्र-समूहों द्वारा दर्शाया जा सकता है। इन्हें संयुक्त रूप से उपभोक्ता का अनधिमान मानचित्र कहते हैं।
अनधिमान वक्र का ढलान दो वस्तुओं के बीच प्रतिस्थापन की दर को दर्शाता है, अर्थात् वह दर जिस पर कोई उपभोक्ता वस्तु X2 की अधिक मात्रा प्राप्त करने के लिए वस्तु X1 की कुछ मात्रा को छोड़ने को तैयार है। यदि हम यह मान लें कि उपभोक्ता को दोनों वस्तुएँ पसंद हैं, तो उसे वस्तु X2 की मात्रा में वृद्धि के लिए वस्तु X1 की कुछ मात्रा को त्यागना पड़ेगा (और इसलिए वक्र आगे बढ़ने के साथ-साथ नीचे की और जाता जाएगा), ताकि संतुष्टि का समान स्तर बना रहे। क्योंकि X1 और X2 अक्ष वस्तु X1 और वस्तु X2 की मात्रा को क्रमश: दर्शा रहे हैं, इसीलिए अनधिमान वक्र दाएँ से बाएँ नीचे की ओर ढलवाँ होता है।
3. दो अनधिमान वक्र एक दूसरे को कभी नहीं काटते-
p1x1+ p2x2 ≤ M,
जहाँ p1 = पहली वस्तु की एक इकाई की कीमत
p2 = दूसरी वस्तु की एक इकाई की कीमत
M = उस व्यक्ति की आय
क्षैतिज अवरोधन = M/P1= 20/5 = 4 (जब उपभोक्ता केले खरीदने के लिए अपना सारा पैसा खर्च करता है, तो आम की मात्रा = 0)
ऊर्ध्वाधर अवरोधन = M/P2= 20/4 = 5 (जब उपभोक्ता अपना सारा पैसा केवल आम खरीदने के लिए खर्च करता है, तो केले की मात्रा = 0) इन दोनों बिंदुओं (M/P1, M/P2) को मिलाने पर बजट रेखा प्राप्त होती है।
इस रेखा पर वे सभी बंडल A, B, C आदि शामिल हैं, जिनको खरीदने में उपभोक्ता की पूरी आय (M) समाप्त हो रही है। बजट रेखा के नीचे के बिंदु D, E, F आदि उन बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जिन को खरीदने में उपभोक्ता की आय (M) पूरी तरह से समाप्त नहीं हो रही है। उपभोक्ता के पास उपलब्ध इन सभी बंडलों के सेट को बजट सेट कहा जाता है।
इस प्रकार, बजट सेट उन सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता वर्तमान बाजार कीमतों पर अपनी आय से खरीद सकता है।
इस समीकरण को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है:
a. तब नयी बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित होगा:
p1x1 + p2x2 = M’
b. इस समीकरण को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है:
महत्वपूर्ण: नई बजट रेखा की प्रवणता (-p1/p2) उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होने से पहले की बजट रेखा की प्रवणता (-p1/p2) के समान ही होगी। उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा।
विवरण: आय में बदलाव के कारण ऊर्ध्वाधर अंत:खंड और समस्तरीय अंत:खंड दोनों बदल जाते हैं।
बजट रेखा का समीकरण:
p1x1 + p2x2 = M
इस समीकरण को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है:
p’1x1 + p2x2 = M
b. इस समीकरण को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है:
महत्वपूर्ण: पहली वस्तु की कीमत में परिवर्तन के पश्चात, बजट रेखा की प्रवणता तथा क्षैतिज अंत:खंड में बदलाव आता है, परंतु बजट रेखा के ऊर्ध्वाधर अंत:खंड में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
विवरण:
p1x1 + p’2x2 = M
महत्वपूर्ण: दूसरी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के पश्चात्, बजट रेखा की प्रवणता तथा ऊर्ध्वाधर अंत:खंड में बदलाव आता है परंतु बजट रेखा के क्षैतिज अंत:खंड में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
विवरण: यदि दूसरी वस्तु की कीमत बढ़ती है, अर्थात यदि p'2 > p2, तो बजट रेखा की प्रवणता का निरपेक्ष मान घट जाता है और इस प्रकार बजट रेखा अधिक प्रवण हो जाती है। यदि दूसरी वस्तु की कीमत घट जाती है, अर्थात यदि p'2 < p2 होता है, तो बजट रेखा की प्रवणता का निरपेक्ष मान बढ़ जाता है और इस प्रकार बजट रेखा अधिक सपाट हो जाती है।
उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उपभोक्ता के इष्टतम चयन से है। यह तब प्राप्त होता है जब उपभोक्ता अधिकतम संभव संतुष्टि प्राप्त करता है। तटस्थता वक्र विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता अपना संतुलन तब प्राप्त करता है जब:
(क) IC का ढलान (सीमांत प्रतिस्थापन दर) = बजट रेखा का ढलान
(ख) तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है। (इस स्थिति को हम तटस्थता वक्र पढ़ते वक्त स्थापित कर चुके हैं।)
अब इन्हें विस्तृत रूप से समझते हैं:-
(क) MRSxy = Px / Pyसीमांत प्रतिस्थापन दर से तात्पर्य वस्तु Y की उस मात्रा से है, जो उपभोक्ता वस्तु X की प्रत्येक अगली इकाई के लिए देने को तैयार है। यदि
MRSxy > Px / Py, तो उपभोक्ता के लिए यह वांछनीय है कि वह वस्तु X की मात्रा बढ़ाए तथा वस्तु Y की मात्रा कम करे। दूसरी ओर यदि
MRSxy < Px / Py, तो उपभोक्ता के लिए वांछनीय है कि वह वस्तु Y की मात्रा बढ़ाए तथा वस्तु X की मात्रा कम करे। यह तब तक होगा जब तक
MRSxy = Px / Py न हो।
(ख) संतुलन बिंदु पर तटस्थता वक्र उन्नतोदर होना चाहिए। इसका कारण यह है कि तटस्थता वक्र का उन्नतोदर होना घटती हुई सीमांत प्रतिस्थापन दर (MRS) को व्यक्त करता है। उपभोक्ता वस्तु X कि प्रत्येक अगली इकाई के लिए वस्तु Y की कम से कम मात्रा त्यागने को इच्छुक होता है। उपभोक्ता संतुलन को ऊपर एक रेखाचित्र के माध्यम से दिखाया गया है। चित्र से स्पष्ट होता है कि किस प्रकार उपभोक्ता संतुष्टि के अधिकतमकरण के रूप में अपना संतुलन प्राप्त करता है। यह माना जाता है कि उपभोक्ता अपनी दी हुई आय को केवल वस्तु X तथा वस्तु Y पर खर्च करता है। Px तथा Py बाजार में दिए हुए हैं। उपभोक्ता बिंदु ‘E’ पर संतुलन में है, जहाँ उपभोक्ता संतुलन की दोनों शर्तें पूर्ण हो रही हैं, अर्थात:
(i)
MRSxy = Px / Py
(ii) तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
माँग-
Qd = f(p)
जहाँ, Qd = वस्तु की मांगे जाने वाली मात्रा और
p = वस्तु की कीमत है।
माँग वक्र-
माँग फलन का ग्राफीय चित्रण माँग वक्र कहलाता है।
ऊपर दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर ढलवाँ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उपभोक्ता की आय, अन्य वस्तुओं की कीमत तथा उपभोक्ता की रूचियों एवं अधिमानों को स्थिर रखते हुए, किसी वस्तु की कीमत एवं माँग की गई मात्रा में ऋणात्मक संबंध होता है। इसे माँग का नियम कहते हैं।
(वर्धमान फलन का एक ग्राफीय उदहारण)
B. यदि x के मान में वृद्धि के साथ y का मान कम होता जाता है, तो ऐसा फलन y = f (x) एक ह्रासमान फलन (decreasing function) है।
(उदहारण: माँग वक्र)
ऊपर वाले चित्र का ऊपरी पैनल मूल्य प्रभाव दिखाता है जहाँ वस्तु X एक सामान्य वस्तु है। AB प्रारंभिक बजट रेखा है।
उपभोक्ता की आय में वृद्धि के कारण उपभोक्ता द्वारा सामान्य वस्तुओं की माँग में बढ़ोतरी -
उपभोक्ता की आय में ह्रास के कारण उपभोक्ता द्वारा सामान्य वस्तुओं की माँग में गिरावट
माँग की कीमत लोच को मापने की निम्नलिखित विधियाँ हैं:-
1. आनुपातिक या प्रतिशत विधि (Percentage Method)
2. कुल व्यय विधि (Total Expenditure Method)
3. ज्यामिति अथवा बिंदु विधि (Geometric or Point Method)
eD = बिंदु से नीचे का हिस्सा / बिंदु से ऊपर का हिस्सा
यदि माँग वक्र एक सीधी रेखा न होकर वक्र की आकृति में होता है तो जिस बिंदु पर माँग की कीमत लोच ज्ञात करनी होती है उस बिंदु से स्पर्श रेखा खींच कर उपरोक्त विधि से माँग की लोच ज्ञात कर लेते हैं।
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