Class 11 व्यावसायिक अध्ययन (Business Studies)
Chapter 1 - व्यवसाय की प्रकृति एवं उद्देश्य (Nature and Purpose of Business)
- व्यवसाय की अवधारणा (Concept of Business):-
व्यवसाय का अर्थ ऐसे किसी भी धंधे से है जिसमें लाभार्जन हेतु व्यक्ति विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में नियमित रूप से संलग्न रहते हैं। वे क्रियाएँ अन्य लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु वस्तुओं के उत्पादन, क्रय-विक्रय या विनिमय और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित हो सकती हैं।
शाब्दिक रूप में Business = Busy होने से संबंधित है l
- व्यावसायिक क्रियाओं की विशेषताएँ (Features of Business Activities):-
- यह एक आर्थिक क्रिया (Economic Activity) है क्योंकि यह लाभ कमाने के उद्देश्य से या जीवन यापन के लिए किया जाता है।
- वस्तुओं को उपभोक्ताओं के उपभोग के लिए सुलभ कराने से पूर्व व्यावसायिक इकाइयों द्वारा या तो इनका उत्पादन किया जाता है या फिर इनका क्रय किया जाता है।
- प्रत्यक्ष (Directly) या अप्रत्यक्ष (Indirectly) रूप से व्यवसाय में मूल्य के बदले वस्तुओं और सेवाओं का हस्तांतरण व विनिमय सम्मिलित होता है। इसमें नियमित रूप से वस्तुओं और सेवाओं का लेन-देन होता है।
- प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया लाभ के रूप में आय अर्जित करने के उद्देश्य से की जाती है।
- जोखिम एक अनिश्चितता है जो व्यावसायिक हानि की ओर इंगित करती है । कोई भी व्यवसाय जोखिमों से अछूता नहीं रह सकता हैं।
- व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में तुलना :-
आर्थिक क्रियाओं को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- व्यवसाय (Business), पेशा (Profession), और रोजगार (Employment)।

व्यावसायिक क्रियाओं का वर्गीकरण (Classification of Business Studies):-
- व्यावसायिक क्रियाओं को दो विस्तृत वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
I. उद्योग (Industry), ii. वाणिज्य (Commerce) - उद्योग से तात्पर्य उन आर्थिक क्रियाओं से है, जिनका सम्बन्ध संसाधनों को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करने से होता है।
- वाणिज्य के अंतर्गत दो प्रकार की क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं:
- व्यापार: जो माल की बिक्री अथवा विनिमय के लिए की जाती हैं|
- ऐसी विभिन्न क्रियाएँ जो व्यापार में सहायक होती हैं, जैसे: परिवहन, बैंकिंग, बीमा, दूरसंचार, विज्ञापन, पैकेजिंग, गोदाम व्यवस्था आदि|
उद्योगों को तीन व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- प्राथमिक उद्योग, द्वितीयक या माध्यमिक उद्योग एवं तृतीयक या सेवा उद्योग।
- प्राथमिक उद्योग (Primary Industry):-
इन उद्योगों में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनका संबंध प्राकृतिक संसाधनों के खनन एवं उत्पादन तथा पशु एवं वनस्पति के विकास से है। इन उद्योगों को पुनः इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है-
- निष्कर्षण उद्योग (Extractive Industries) :- इन उद्योगों के उत्पादों को दूसरे विनिर्माण उद्योगों द्वारा बहुत-सी उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है।
- जननिक उद्योग (Genetic Industries) - इन उद्योगों का मुख्य कार्य पशु-पक्षियों का प्रजनन एवं पालन तथा वनस्पति उगाना है। पौधों के प्रजनन के लिए 'बीज तथा पौधा संवर्धन (नर्सरी) कंपनियाँ' जननिक उद्योग के सामान्य उदाहरण हैं।
- द्वितीयक या माध्यमिक उद्योग (Secondary Industries):-
इन उद्योगों में खनन उद्योगों द्वारा निष्कर्षित माल को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों द्वारा निर्मित माल अंतिम उपभोग के लिए उपयोग में लाया जाता है।
- विनिर्माण उद्योग (Manufacturing Industries) :- इन उद्योगों द्वारा कच्चे माल को प्रक्रिया में लेकर उन्हें अधिक उपयोगी बनाया जाता है।
- निर्माण उद्योग (Construction Industries) :- इन उद्योगों में अभियांत्रिकी (Engineering) तथा वास्तुकलात्मक चातुर्य (Architectural Skill) महत्वपूर्ण अंग होते हैं। यह उद्योग भवन, सडक़, आदि निर्माण मे सलंग्न होते हैं।
- तृतीयक या सेवा उद्योग (Tertiary Industries):-
इस प्रकार के उद्योग प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों को सहायक सेवाएँ सुलभ कराने में संलग्न होते हैं तथा व्यापारिक क्रियाकलापों को संपन्न कराते हैं।
- वाणिज्य में दो प्रकार की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। पहली वे जो माल की बिक्री अथवा विनिमय के लिए की जाती हैं | इन्हें व्यापार (Trade) कहते हैं। दूसरी वे विभिन्न क्रियाएँ जो व्यापार मे सहायक होती हैं। जैसे- परिवहन, बीमा, दूरसंचार आदि।
- वाणिज्य वे क्रियाएँ हैं, जो विनिमय में आने वाली बाधाओं को दूर करती है। विनिमय संबंधी बाधा को व्यापार दूर करता है, जो वस्तुओं को उत्पादक से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचाता है।
- इसका अर्थ बिक्री, हस्तांतरण अथवा विनिमय से है। यह उत्पादित वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराता है।
- जब वस्तुओं का क्रय-विक्रय भारी मात्रा में किया जाता है, तो उसे थोक व्यापार तथा जब वस्तुओं का क्रय-विक्रय अपेक्षाकृत कम मात्रा में किया जाता है, तो उसे फुटकर व्यापार कहा जाता है।
- वस्तुओं का क्रय दूसरे देश से किया जाता है, तो उसे आयात (Import) व्यापार कहते हैं तथा जब वस्तुओं का विक्रय दूसरे देशों को किया जाता है, तो उसे निर्यात (Export) व्यापार कहते हैं।
- जब वस्तुओं का आयात किसी अन्य देश को निर्यात करने के लिए किया जाता है, तो उसे पुनर्निर्यात या आयात-निर्यात व्यापार कहते हैं।
- व्यापार के सहायक (Auxiliaries of Trade):-
व्यापार में सहायक क्रियाओ को व्यापार का सहायक कहते हैं। इन क्रियाओं को सेवाएँ भी कहते हैं क्योंकि ये उद्योग एवं व्यापार में सहायक होती हैं। सहायक कार्यों का संक्षेप में वर्णन निम्न है~
- परिवहन एवं संप्रेषण (Transport and Communication):- वस्तुओं का उत्पादन कुछ विशिष्ट जगहों पर होता है | लेकिन उपभोग के लिए इन वस्तुओं की आवश्यकता देश के सभी भागों में होती है। स्थान संबंधी बाधा को सड़क परिवहन, रेल परिवहन या तटीय जहाज़रानी द्वारा दूर किया जाता है
- बैंकिंग एवं वित्त (Banking or Finance):- धन के बिना व्यवसाय का संचालन संभव नहीं, क्योंकि धन की आवश्यकता परिसंपत्तियों को क्रय करने तथा नित्य-प्रति के व्ययों (Other Expenses) को पूरा करने के लिए होती है। व्यवसाय आवश्यक धन राशि को बैंक से प्राप्त कर सकते हैं।
- बीमा (Insurance):- व्यवसाय में अनेकों प्रकार के जोखिम होते हैं। कर्मचारियों को भी दुर्घटना अथवा व्यावसायिक जोखिमों से सुरक्षा आवश्यक है। बीमा इन सभी को सुरक्षा प्रदान करता है।
- भंडारण (Warehousing):- प्रायः वस्तुओं के उत्पादन के तुरंत पश्चात् ही उनका उपयोग या विक्रय नहीं होता। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सुलभ कराने के लिए गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है।
- विज्ञापन (Advertising): - विज्ञापन बाजार में उपलब्ध वस्तुओं के संबंध में सूचना देने एवं उपभोक्ता को वस्तु विशेष को क्रय करने के लिए तत्पर करने में सहायक होता है।
- व्यवसाय के उद्देश्य (Objectives of Business):-
व्यवसाय का संचालन केवल लाभ कमाना होता है। लाभ को विभिन्न कारणों से व्यवसाय का एक आवश्यक उद्देश्य माना जा सकता है। क्योंकि:-
- यह व्यवसायी के लिए आय का स्रोत है।
- यह व्यवसाय के विस्तार के लिए आवश्यक वित्त का स्रोत हो सकता है।
- यह व्यवसाय की कुशल कार्यशैली का द्योतक होता है।
- यह व्यवसाय का समाज के लिए उपयोगी होने की स्वीकारोक्ति (utility) भी हो सकता है।
- यह एक व्यावसायिक इकाई की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है।
- व्यवसाय के बहुमुखी उद्देश्य (Multiple Objectives of Business):-
- बाजार स्थिति (Market Standing): एक उद्यम को अपने उपभोक्ताओं को प्रतियोगी उत्पाद उपलब्ध करवाने तथा उन्हें संतुष्ट रखने के लिए अपने पैरों पर मजबूती से खड़े रहना चाहिए।
- नवप्रवर्तन (Innovation): नवप्रवर्तन से तात्पर्य नए विचारों का समावेश या जिस विधि से कार्य किया जाता है उसमें कुछ नवीनता लाने से है।
- उत्पादकता (Productivity): लंबे समय तक चलते रहने तथा प्रगति के लिए प्रत्येक उद्यम को उपलब्ध स्रोत का अधिकतम सदुपयोग करते हुए विशाल उत्पादकता की ओर लक्ष्य रखना चाहिए।
- लाभार्जन (Earning Profit): लाभार्जन से तात्पर्य विनियोजित पूँजी पर लाभार्जन से है। प्रत्येक व्यवसाय का एक मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
- प्रबंध निष्पादन एवं विकास (Management Performance or Development): प्रत्येक उद्यम की अपने प्रबंधक से यह अपेक्षा रहती है कि वह व्यावसायिक क्रियाओं में उचित आचार संहिता तथा सामंजस्य स्थापित करें।
- कर्मचारी निष्पादन एवं मनोवृत्ति (Workers Performance and Attitude): किसी भी व्यवसाय की उत्पादकता तथा लाभार्जन क्षमता में योगदान की मात्रा कर्मचारियों द्वारा कार्य का निष्पादन एवं उनकी मनोवृत्ति निर्धारित करती है। प्रत्येक व्यवसाय को कर्मचारियों द्वारा किए हुए कार्यो में सुधार लाना और कर्मचारियों के प्रति सकारात्मक व्यवहार का आश्वासन देने का प्रयत्न करना चाहिए।
- सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility): व्यावसायिक उपक्रम को विभिन्न व्यक्तियों तथा समुदायों के हित में अपने उत्तरदायित्व तथा उनकी समृद्धि के लिए अग्रसर रहना चाहिए।
- व्यावसायिक जोखिम (Business Risks):-
व्यावसायिक जोखिम से आशय अपर्याप्त लाभ या फिर हानि होने की उस संभावना से है जो नियंत्रण से बाहर अनिश्चितताओं या आकस्मिक घटनाओं के कारण होती है।
- व्यावसायिक जोखिमों की प्रकृति (Nature of Business Risks):-
- व्यावसायिक जोखिम अनिश्चितताओं के कारण होते हैं।
- जोखिम प्रत्येक व्यवसाय का आवश्यक अंग होता है।
- जोखिम की मात्रा मुख्यत: व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार पर निर्भर करती है।
- जोखिम उठाने का प्रतिफल लाभ होता है।
- व्यावसायिक जोखिमों के कारण (Causes of Business Risks):-
- मानवीय कारणों में कर्मचारियों की बेईमानी, लापरवाही या अज्ञानता को सम्मिलित किया जा सकता है।
- आथिर्क कारण में माल की माँग में अनिश्चितता, प्रतिस्पर्धा, मूल्य, ग्राहकों से देय राशि, तकनीक में परिवर्तन या उत्पादन की विधि में परिवर्तन होता है।
- प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़, भूचाल, बिजली गिरना, भारी वर्षा, अकाल आदि पर मनुष्य का लगभग नहीं के बराबर नियंत्रण है। व्यवसाय में इनसे संपत्ति एवं आय की भारी हानि हो सकती है।
- व्यवसाय का आरंभ- मूल घटक (Starting a Business- A Factor):-
कुछ मूल घटक ऐसे हैं जिनका किसी व्यवसायी को व्यवसाय प्रारम्भ करते समय ध्यान रखना चाहिए। ये निम्नलिखित हैं~
- व्यवसाय के स्वरूप का चयन (Selection of Business Line) - किसी भी उद्यमी को नए व्यवसाय को प्रारंभ करने से पूर्व उसकी प्रकृति तथा प्रकार पर ध्यान देना चाहिए।
- फर्म का आकार (Size of Firm)- व्यवसाय आरम्भ करते समय व्यवसाय का आकार या उसका विस्तार, ऐसा दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
- स्वामित्व के स्वरूप का चुनाव (Choice of Form of Ownership) - स्वामित्व के संबंध में संगठन का रूप एकांकी व्यापार (Sole proprietorship), साझेदारी (Partnership) या संयुक्त पूँजी कंपनी (Joint Stock Company) का हो सकता है।
- उद्यम का स्थान (Location of Business Enterprise)- उद्यम के स्थान का चुनाव करने में कच्चे माल की उपलब्धि, श्रम, बिजली आपूर्ति, बैंकिंग, यातायात, संप्रेषण, भंडारण आदि महत्वपूर्ण विचारणीय घटक हैं।
- प्रस्थापन की वित्त व्यवस्था (Financing the Proposition)- वित्त व्यवस्था से अभिप्राय प्रस्तावित व्यवसाय को प्रारंभ करने तथा उसकी निरंतरता के लिए आवश्यक पूँजी की व्यवस्था करना है। स्थायी संपत्ति तथा चालू संपत्ति के लिए पूंजी की आवश्यकता होती हैं। समूचित वित्तीय योजना- a) पूंजी की आवश्यकता। b) स्त्रोत, जहाँ से पूंजी प्राप्त हो सकेगी। c) फर्म में पूंजी के सर्वोत्तम उपयोग की निश्चित रूपरेखा बनाई जानी चाहिए।
- भौतिक सुविधाएँ (Physical Facilities)- इस घटक का निर्णय व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार, वित्त की उपलब्धता तथा उत्पादन प्रक्रिया पर निर्भर करेगा जिसमे मशीन एवं भवन सहायक सेवाएँ शामिल हैं।
- संयंत्र अभिन्यास (Plant Layout)- उद्यमी को संयंत्र का ऐसा नक्शा बनाना चाहिए, जिसमें सभी आवश्यक सुविधाएँ शामिल हों जैसे -मशीन आदि।
- सक्षम एवं वचनबद्ध कामगार बल (Competent and Committed Workforce)- कोई भी उद्यमी सभी कार्यों को स्वयं नहीं कर सकता | अत: उसे कुशल और सकुशल श्रमिकों तथा प्रबंधकीय कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
- उद्यम प्रवर्तन (Launching of Enterprise)- उपयुक्त घटकों के विषय में निर्णय लेने के उपरांत, एक उद्यमी एक उद्यम के वास्तविक प्रवर्तन के लिए कार्यवाही कर सकता है।
- कर संबंधी योजना (Tax Planning)- विविध कानून व्यवसाय की कार्यविधि के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते हैं। व्यवसाय के प्रवर्तक को विभिन्न कर कानूनों के अंतर्गत कर दायित्व तथा व्यावसायिक निर्णयों पर उनके प्रभाव के संबंध में पहले से सोचकर चलना चाहिए।