Class 12th व्यवसाय अध्ययन (Business Studies)

Chapter 1 - प्रबंध की प्रकृति एवं महत्व (Nature and Importance of Management)

  • प्रबंध की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Definitions of Management):

“प्रबंध एक ऐसा पर्यावरण तैयार करने एवं उसे बनाए रखने की प्रक्रिया है जिसमें लोग समूह में कार्य  करते हुए लक्ष्यों को कुशलता से प्राप्त करते हैं।"   हैरल्ड कून्ट्ज एवं हींज व्हरिक

"Management is the process of designing and maintaining an environment in which individuals, working together in groups, efficiently accomplish selected aims." Harold Koontz and Heinz Weihrich

"प्रबंध को परिभाषित किया गया है कि यह संगठन के परिचालन के नियोजन, संगठन एवं नियंत्रण की प्रक्रिया है जो उद्देश्यों को प्रभावी एवं कुशलता से पूरा करने के लिए मानव एवं भौतिक संसाधनों में समन्वय के लिए की जाती है।" रॉबर्ट एल ट्रिवैली एवं एम. जैनी न्यूपोर्ट

“Management is defined as the process of planning, organising, actuating and controlling  an organisation's operations in order to achieve coordination of the human and material resources essential in the effective and efficient attainment of objectives." Robert L. Trewelly and M. Gene Newport

"प्रबंध परिवर्तनशील पर्यावरण में सीमित संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुए संगठन के उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए दूसरों से मिलकर एवं उनके माध्यम से कार्य करने की प्रक्रिया है।" क्रीटनर

"Management is the process of working with and through others to effectively achieve organisational objectives by efficiently using limited resources in the changing environment."  Kreitner

  • प्रबंध की अवधारणा (Concept of Management):

प्रबंध उद्देश्यों को प्रभावी ढंग (Effectively) से एवं कुशलता (Efficiently) से प्राप्त करने हेतु कार्यों को पूरा कराने की प्रक्रिया (Process) है। इस परिभाषा के कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका विस्तार से वर्णन करना आवश्यक है। ये शब्द हैं:-

  1. प्रक्रिया (Process):- परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है प्राथमिक कार्य अथवा क्रियाएँ जिन्हें प्रबंध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। ये कार्य हैं:- नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियंत्रण 
  1. प्रभावी ढंग से (Effectiveness):- प्रभावी अथवा कार्य को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभिप्राय दिए गए कार्य को समय पर संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, इसका कार्य अंतिम परिणाम को समय पर प्राप्त करना है।
  1. कुशलता से (Efficiency):- कुशलता का अर्थ है कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। प्रबंध का संबंध संसाधनों के कुशल प्रयोग से है क्योंकि इससे लागत कम होती है एवं अन्त में लाभ में वृद्धि होती है।
  • प्रभावपूर्णता बनाम् कुशलता (Effectiveness versus Efficiency):
  • प्रबंध की विशेषताएँ (Characteristics of Management):-
  1. प्रबंध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है (Management is a Goal-Oriented Process):- किसी भी संगठन के कुछ मूलाधार उद्देश्य होते हैं। प्रबंध, संगठन के विभिन्न लोगों द्वारा किए गए कार्यों को संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक सूत्र में बाँधता है।
  1. प्रबंध सर्वव्यापी है (Management is All Pervasive):- प्रबंध सर्वव्यापी है जो सभी प्रकार के संगठनों जैसे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सभी के लिए समान और आवश्यक है।
  1. प्रबंध बहुआयामी है (Management is Multidimensional):- प्रबंध एक बहुआयामी गतिविधि है जो कार्य, लोग एवं परिचालन के प्रबंध से संबंधित होती है। प्रत्येक संगठन कुछ कार्यों की पूर्ति के लिए स्थापित किया जाता है। प्रबंध लोगों से कार्य करवाने की एक कला है।
  1. प्रबंध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है (Management is a continuos process):- प्रबंध कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिसे हमेशा के लिए एक बार में कर लिया जा सकता है अपितु यह एक निरंतर प्रक्रिया है। प्रबंध के कार्य जैसे नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन व नियंत्रण की आवश्यकता संगठन में लगातार होती है।
  1. प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है (Management is a Group Activity):- संगठन भिन्न-भिन्न आवश्यकता वाले अलग-अलग प्रकार के लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक व्यक्ति संगठन में किसी न किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं। इसके लिए एक टीम के रूप में कार्य करना होता है।
  1. प्रबंध एक गतिशील कार्य है (Management is a Dynamic Function):- प्रबंध एक गतिशील कार्य है जो व्यावसायिक वातावरण में हो रहे परिवर्तन के अनुरूप कार्य करता है। संगठन बाह्य पर्यावरण के संपर्क में आता है जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक तत्व सम्मिलित होते हैं। सफलता के लिए किसी भी संगठन को अपने उद्देश्यों को पर्यावरण के अनुरूप बदलना होता है। उदाहरण के लिए मैकडोनल्स ने भारतीय बाज़ार में टिके रहने के लिए अपनी खान-पान सूची (Menu) में भारी परिवर्तन किए।
  1. प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है (Management is an Intangible Force):- प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है जो दिखाई नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कार्यों के रूप में जिसकी उपस्थिति को अनुभव किया जा सकता है।
  • प्रबंध के उद्देश्य (Objectives of Management):-
  1. संगठनात्मक उद्देश्य (Organisational Objectives):- इसका अभिप्राय संगठन में उपलब्ध मानवीय व भौतिक संसाधनों का उपयोग सभी हितार्थियों के हित में करने से है। इन उद्देश्यों का निर्धारण करते समय प्रबंधन द्वारा व्यवसाय में हित रखने वाले सभी पक्षों (जैसे- स्वामी, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार, आदि) का ध्यान रखा जाता है। इससे व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्य भी पूरे होते हैं। ये हैं - जीवित रहना, लाभ एवं विकास।
  1. जीवित रहना (Survival):- किसी भी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्तित्व को बनाए रखना होता है। प्रबंध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए।
  2. लाभ अर्जित करना (Profit) ताकि लागतों एवं जोखिमों को पूरा किया जा सकें।
  3. बढ़ोतरी (Growth):- दीर्घ अवधि में संगठन का विकास करना ताकि भविष्य में संगठन और अच्छे कार्य कर सकें। विकास को बिक्री आवर्त, कर्मचारी की संख्या, पूँजी विनियोग एवं उत्पादों की संख्या से मापा जा सकता है।
  1. सामाजिक उद्देश्य (Social Objectives):- इसका अभिप्राय प्रबंधकीय क्रियाओं के दौरान सामाजिक हितों का ध्यान रखने और सामाजिक दायित्वों को पूरा करने से है। इसमें निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं:-
  1. उचित कीमत पर गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति करना।
  2. उत्पादन के पर्यावरण भिन्न पद्धति अपनाना।
  3. रोज़गार के अवसर प्रदान करना।
  4. कर्मचारियों के लिए विद्यालय, शिशुगृह जैसी सुविधाएँ प्रदान करना।
  1. कर्मचारीगण उद्देश्य (Personnel Objectives):- इसका अभिप्राय कर्मचारियों के संदर्भ में निश्चित किए जाने वाले उद्देश्यों से है। संगठन उन लोगों से मिलकर बनता है जो अपनी विविध आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु संगठन का अंग बनते हैं। प्रबंध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों का संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है।
  • प्रबंध का महत्व (Importance of Management):
  1. प्रबंध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है (Management helps in achieving group goals):- प्रबंध कर्मचारियों में टीम भावना और समन्वय का निर्माण करता है जिससे संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। प्रबंध संगठन के कुल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयत्नों को समान दिशा देता है।
  1. प्रबंध क्षमता में वृद्धि करता है (Management increases efficiency):- प्रबंध कार्य क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। प्रबंध द्वारा संसाधनों का कुशलतापूर्ण उपयोग संभव हो पाता है जिससे लागते कम होती है तथा उत्पादकता बढ़ती है।
  1. प्रबंध गतिशील संगठन का निर्माण करता है (Management creates a dynamic organisation):- प्रबंध संगठन में परिवर्तन से होने वाले लाभों को कर्मचारियों से अवगत कराकर विरोध को समाप्त करते हैं।
  1. प्रबंध व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है (Management helps in achieving personal objectives):- प्रबंध अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व के माध्यम से  कर्मचारियों में समूह भावना का विकास करता है तथा व्यक्तिगत उद्देश्य एवं संगठनात्मक उद्देश्यों में तालमेल बिठाता है। इससे प्रत्येक सदस्य संगठन के उद्देश्यों में योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं।
  1. प्रबंध समाज के विकास में सहायक होता है (Management helps in the development of society):- प्रबंध अच्छी गुणवत्ता वाले माल एवं सेवाओं को प्रदान करके, रोजगार के अवसर सृजित करके उत्पादन की नई तकनीके अपनाकर समाज के विकास में सहायता प्रदान करता है।
  • प्रबन्ध की प्रकृति (Nature of Management) 

कुछ विद्वान प्रबन्ध को कला बताते है क्योंकि प्रबन्ध ज्ञान एवं कौशल के व्यावहारिक प्रयोग से सम्बन्ध रखता है। जबकि कुछ विद्वान इसे विज्ञान मानते है क्योंकि यह उचित रूप से जाँचे गये सिद्धान्तो का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ इसे पेशा भी मानते हैं।

  1. प्रबन्ध एक कला के रूप में (Management as an Art):- 

कला का आशय इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगत एवं दक्षतापूर्ण उपयोग से है। कला की कुछ विशेषताएँ होती है जो की निम्नलिखित है:

  1. सैद्धान्तिक ज्ञान का होना (Existence of Theoretical Knowledge):- कला यह मानकर चलती है कि कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से है। विशेषज्ञों ने अपने-अपने क्षेत्रों में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जो एक विशेष प्रकार की कला में प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए नृत्य, जन संबोधन/भाषण, कला अथवा संगीत पर साहित्य सर्वमान्य है।
  1. व्यक्तिगत योग्यतानुसार उपयोग (Personalised Application):- मूलभूत सैद्धांतिक ज्ञान का उपयोग हर व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होता है। कला, इसीलिए अत्यंत व्यक्तिगत अवधारणा है। उदाहरण के लिए दो नर्तक, दो वक्ता, दो कलाकार अथवा दो लेखकों की अपनी कला के प्रदर्शन में भिन्नता होगी।
  1. व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारित (Based on Practice and Creativity):- कला वर्तमान सिद्धांतों के ज्ञान का रचनात्मक उपयोग है। हम जानते हैं कि संगीत सात सुरों पर आधारित है। लेकिन किसी संगीतकार की संगीत रचना विशिष्ट अथवा भिन्न होती है| यह इस बात पर निर्भर करती है कि इन सुरों का किस प्रकार से संगीत सृजन में प्रयोग किया गया है जो कि उसकी अपनी व्याख्या होती है।

प्रबन्ध में कला की ऊपर बताई गई सभी विशेषताएँ समाहित होती है। प्रबंध में व्यवसाय के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान व कुशलता का उपयोग निहित होता है। अतः इसे कला माना जा सकता है।

  1.  प्रबन्ध एक विज्ञान के रूप में (Management as Science):-

विज्ञान किसी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान होता है जो सही निष्कर्ष वाले निश्चित सिद्धांतों पर आधारित होता है जिसकी जाँच की जा सकती है। विज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है:

  1. क्रमबद्ध ज्ञान समूह (Systemised body of Knowledge): विज्ञान ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है जो सिद्धांतों, अभ्यासों एवं प्रयोगों पर आधारित होता है। विज्ञान में सभी चरो का कारण एवं प्रभाव सबंध होता है।
  1. परीक्षण पर आधारित सिद्धांत (Principles based on Experimentation): वैज्ञानिक सिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है और फिर नियंत्रित परिस्थितियों में बार-बार परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है।
  1. व्यापक वैधता (Universal Validity): विज्ञान में सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत सिद्धांत होते हैं जिन्हें कहीं भी तथा कभी भी सिद्ध किया जा सकता है।

प्रबन्ध में भी सिद्धांतों एवं नियमों का क्रमबद्ध रूप विद्यमान होता है जो संगठनात्मक अभ्यासों को समझने में सहायक होते है। प्रबन्ध के अपने सिद्धान्त है जो कारण एवं प्रभाव सम्बन्ध स्थापित करते है, परन्तु विज्ञान की तरह ये सिद्धान्त निश्चित नहीं होते। इनमें परिस्थिति के अनुसार सुधार किया जा सकता है। प्रबंध में विज्ञान की कुछ विशेषताएँ समाहित है। अतः हम यह मान सकते हैं कि प्रबंध एक विज्ञान है परंतु संपूर्ण रूप से नहीं।

  1. पेशे के रूप प्रबन्ध (Management as a Profession):-

जब एक व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके समाज को अपनी सेवाएँ देता है तथा बदले में पेशेवर फीस प्राप्त करता है तो उसे पेशा कहते हैं। पेशे की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है:

  1. भली-भाँति परिभाषित ज्ञान का समूह (Well-Defined Body of Knowledge):- सभी पेशे भली-भाँति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते है जिसे शिक्षा से अर्जित किया जाता है।
  1. अवरोधित प्रवेश (Restricted Entry):- प्रत्येक पेशे में परीशा अथवा शैक्षणिक योग्यता के आधार पर प्रवेश होता है। उदाहरण के लिए भारत में यदि किसी को चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना है तो उसे भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेष परीक्षा को पास करना होगा।
  1. पेशागत परिषद (Professional Association):- सभी पेशे किसी न किसी परिषद सभा से जुड़े होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं, कार्य करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करते हैं एवं आधार संहिता तैयार करते हैं तथा इसको लागू करते हैं। भारत में वकालत करने के लिए वकीलों को बार काउंसिल का सदस्य बनना होता है जो उनके कार्यों का नियमन एवं नियंत्रण करता है।
  1. नैतिक आचार संहिता (Ethical Code of Conduct):- सभी पेशे किसी न किसी पेशेवर संघ से जुड़े होते है जो इनमे प्रवेश का नियमन करते है। उदाहरण के लिए जब डॉक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपने कार्य नैतिकता की शपथ लेते हैं।
  1. सेवा उद्देश्य (Service Motive):- प्रत्येक पेशे का मुख्य उद्देश्य अपने ग्राहकों की सेवा करना होता है।

प्रबन्धक के लिए किसी विशिष्ट डिग्री या लाइसेंस का होना अनिवार्य नहीं है और न ही किसी आचार संहिता का पालन करना पड़ता है। प्रबन्ध पेशे की सभी विशेषताओं को संतुष्ट नही करता है। अतः इसे एक पूर्ण रूप से पेश नहीं माना जा सकता है।

  • प्रबन्ध के स्तर (Levels of Management):

प्रबंधकीय स्तर

  1. उच्च स्तरीय प्रबन्ध (Top Level Management):- 

यह संगठन के वरिष्ठतम कार्यकारी, अधिकारी होते हैं जिसमें सामान्य: चेयरमैन, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मुख्य प्रचालन अधिकारी, प्रधान, उपप्रधान आदि शामिल होते हैं। उच्च स्तरीय प्रबंध के कार्य:-

  1. उनका मूल कार्य संगठन के कुल उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तत्वों में एकता एवं विभिन्न विभागों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना है।
  2. ये संगठन के कल्याण एवं निरंतरता के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  3. ये व्यवसाय के पर्यावरण एवं उसके प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।
  4. व्यवसाय के सभी कार्यों एवं उनके समाज पर प्रभाव के लिए ये ही उत्तरदायी होते हैं।
  1. मध्य स्तरीय प्रबन्ध (Middle level Management):- 

प्ये उच्च प्रबंधकों एवं नीचे स्तर के बीच की कड़ी होते हैं। ये उच्च प्रबंधन के अधीनस्थ एवं प्रथम रेखीय प्रबंधकों के प्रधान होते हैं। इन्हें सामान्यतः विभाग प्रमुख कहते हैं। इनके मुख्य कार्य:

  1. उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाई में महत्वपूर्ण भूमि गई योजना की व्याख्या करते हैं;
  2. अपने विभाग के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों को सुनिश्चित करते हैं;
  3. उन्हें आवश्यक कार्य एवं दायित्व हैं। इन्हीं के प्रति सौंपते हैं;
  4. इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अन्य विभागों से सहयोग करते हैं।
  5. इसके साथ-साथ वे प्रथम पंक्ति के प्रबंधकों के कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  1. परिचालन प्रबंध (Supervisory or Operational Management):- 

संगठन की अधिकार पंक्ति में फोरमैन एवं पर्यवेक्षक निम्न स्तर पर आते हैं। इनके अधिकार एवं कर्त्तव्य उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाई गई योजनाओं द्वारा निर्धारित होती हैं। इनके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:-

  1. पर्यवेक्षक कार्यबल के कार्यों का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करते हैं ।
  2. यह सीधे वास्तविक कार्यबल से संवाद करते हैं एवं मध्य स्तरीय प्रबंधकों के दिशा-निर्देशों को कर्मचारियों तक पहुँचाते हैं।
  3. उत्पाद की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए, माल की हानि को न्यूनतम रखने के लिए एवं सुरक्षा के स्तर को बनाए रखने के लिए प्रयत्न करते हैं।
  • प्रबन्ध के कार्य (Functions of Management):
  1. नियोजन (Planning):- क्या करना है, कैसे करना है और किसके द्वारा किया जाएगा इसके बारे में पहले से निर्णय करना नियोजन कहलाता है। इसका अर्थ है उद्देश्यों को पहले से ही निश्चित करना एवं दक्षता से एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए मार्ग निर्धारित करना।
  1. संगठन (Organising):- नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें कार्यान्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है। संगठन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत निर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपा जाता है, कार्यों को समूहों में बाँटा जाता है, अधिकार निश्चित किए जाते हैं एवं संसाधनों के आवंटन के कार्य का प्रबंधन किया जाता है।
  1. कर्मचारी नियुक्तिकरण (Staffing):- इसका अभिप्राय भर्ती करने, प्रवर्तन, वृद्धि इत्यादि का निर्णय करने, कार्य का निष्पादन, मूल्यांकन एवं कर्मचारियों का व्यक्तिगत रिकॉर्ड बनाए रखने से है जिसमे प्रशिक्षण भी शामिल है।
  1. निर्देशन (Directing):- नियुक्ति के पश्चात कर्मचारियों को सूचना प्रदान करना, मार्गदर्शन देना, प्रेरित करना, पर्यवेक्षण करना तथा उनके साथ सम्प्रेषण करना निर्देशन कहलाता है।
  1. नियंत्रण (Controlling):- वास्तविक कार्य निष्पादन को नियोजित कार्य निष्पादन के साथ मेल करना तथा अंतर (यदि है तो) के कारणों का पता लगाकर शोधक मापों का सुझाव देना नियंत्रण कहलाता है। इसका उद्देश्य वास्तविक परिणामों को इच्छित परिणामों के नज़दीक लाना है।
  • समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination):

किसी व्यवसाय के विभिन्न लोगो द्वारा की जाने वाली गतिविधियों में सामजस्य स्थापित करना समन्वय कहलाता है। एक व्यावसायिक उपक्रम के संदर्भ में, समन्वय का अर्थ व्यवसाय की विभिन्न क्रियाओं (क्रय, विक्रय, उत्पादन, वित्त, सेविवर्गीय आदि) को संतुलित करना है ताकि व्यवसाय के उद्देश्य को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

  • समन्वय प्रबन्ध का सार है (Coordination is the essence of Management):-

समन्वय वह शक्ती है जो प्रबंध के सभी कार्यों को एक दूसरे से बाँधती है। समन्वय प्रबंध का कोई अलग कार्य नहीं होता बल्कि यह प्रबंध का सार है क्योंकि यह सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किए गए व्यक्तिगत प्रयत्नों में एकता लाता है।

  1. नियोजन में समन्वय (Coordination while Planning):- नियोजन प्रक्रिया द्वारा  योजनाओं को निर्धारित करने के पश्चात प्रबंधक यह सुनिश्चित करते हैं कि विभिन्न प्रकार की योजनाएँ, नीतियाँ, नियम और प्रक्रियाएँ एक-दूसरे के साथ समन्वय में काम करें ताकि विभिन्न विभाग इन योजनाओं का प्रभावी ढंग से पालन करें।
  1. संगठन में समन्वय (Coordination while Organising):- संगठन में  विशिष्टीकरण का लाभ उठाने के लिए एक मुख्य गतिविधि को विभिन्न उप गतिविधियों में विभाजित किया जाता है और अलग-अलग व्यक्तियों को आवंटित किया जाता है। यदि गतिविधियों को समन्वय के बिना बेतरतीब ढंग से विभाजित किया जाता है तो कुछ गतिविधियाँ सही लोगों को नहीं सौंपी जा सकेंगी और कुछ को किसी व्यक्ति से अधिक सौंपे जाने की संभावना होगी।
  1. नियुक्तिकरण में समन्वय (Coordination while Staffing):- कर्मचारियों के नियुक्तिकरण के दौरान प्रबंधक यह सुनिश्चित करते हैं कि लोगों को उनके कौशल और क्षमताओं के अनुसार विभिन्न पदों पर रखा जाए। सही व्यक्ति को सही काम पर रखने से संगठन की गतिविधियों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है और उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
  1. निर्देशन में समन्वय (Coordination while Directing):- जब कोई प्रबंधक प्रेरणा, नेतृत्व और संचार के माध्यम से अधीनस्थों को निर्देश देता है, तो वह संगठनात्मक गतिविधियों मे समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है।  यह संगठनात्मक लक्ष्यों के साथ व्यक्तिगत लक्ष्यों में सामंजस्य बनाने का भी प्रयास है। 
  1. नियंत्रण में समन्वय (Coordination while Controlling)- नियंत्रित करना सुनिश्चित करता है कि वास्तविक परिणाम नियोजित परिणाम के अनुरूप है या नहीं।  बजट या सूचना प्रणाली के माध्यम से नियंत्रित करने का उद्देश्य विभिन्न संगठनात्मक गतिविधियों मे समन्वय स्थापित करना है।  इस प्रकार, प्रत्येक प्रबंधकीय गतिविधि संगठनात्मक लक्ष्यों की दिशा में योगदान करने के लिए समन्वित होती है।
  • समन्वय की प्रकृति (Characteristics of Coordination):
  1. समन्वय सामूहिक कार्यों में एकात्मकता लाता है (Coordination integrates group efforts):- समन्वय विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों में एकता लाकर उन्हें उद्देश्यपूर्ण गतिविधि के रूप में सामान्य लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है। यह समूह के कार्यों को एक केन्द्र बिंदु प्रदान करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि निष्पादन योजना एवं निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो।
  1. समन्वयक कार्यवाही में एकता लाता है (Coordination ensures unity of action):- समन्वय विभिन्न विभागों को जोड़ने की शक्ति का कार्य करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि सभी क्रियाएँ संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाएँ।
  1. समन्वय निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है (Coordination is a continuous process): समन्वय कोई एक बार का कार्य नहीं है बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह नियोजन से प्रारंभ होती है एवं नियंत्रण तक चलती है।
  1. सभी प्रबंधकों का उत्तरदायित्व है (Coordination is the responsibility of all the managers):- किसी भी संगठन में समन्वय प्रत्येक प्रबंधक का कार्य है। उच्च स्तर के प्रबंधक यह सुनिश्चित करने के लिए कि संगठन की नीतियों का क्रियान्वयन हो, अपने अधीनस्थों के साथ समन्वय करते हैं। मध्य स्तर के प्रबंधक, उच्च स्तर के प्रबंधन एवं प्रथम पंक्ति के प्रबंधकों, दोनों के साथ समन्वय करते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्य योजनाओं के अनुसार किया जाए, प्रचालन स्तर के प्रबंधन अपने कर्मचारियों के कार्यों में समन्वय करते हैं।
  1. समन्वय सर्वव्यापी कार्य है (Coordination is an all pervasive function):- विभिन्न विभागों की क्रियाएँ प्रकृति से एक दूसरे पर निर्भर करती है, इसलिए समन्वय की आवश्यकता प्रबंधन के सभी स्तरों पर होती है।
  1. समन्वय सोचा-समझा कार्य है (Coordination is a deliberate function):- किसी विभाग में सदस्य स्वेच्छा से एक दूसरे से सहयोग करते हुए कार्य करते हैं, समन्वय इस सहयोग की भावना को दिशा- निर्देश देता है। समन्वय के न होने पर सहयोग भी निरर्थक सिद्ध होगा और बिना सहयोग के समन्वय कर्मचारियों में असंतोष को ही जन्म देगा।
  • समन्वय का महत्व (Importance of Coordination):-
  1. संगठन का आकार (Size of the organisation): सभी व्यक्तियों के अपने लक्ष्य हैं जो संगठन के लक्ष्यों की तुलना में उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं। समन्वय विभागीय और संगठनात्मक लक्ष्यों के साथ कर्मचारी के लक्ष्यों को एकीकृत करने में सहायता करता है।
  1. कार्यात्मक विभेदीकरण (Functional Differentiation):- संस्था के विभिन्न विभाग अपने अपने हितो को अधिक महत्व दे सकते है जिससे संगठन में मतभेद उत्पन्न हो जाते है। ऐसे में संस्था के विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करके ही संस्था के हितो को प्राप्त किया जा सकता है और असंतोष उत्पन्न होने से रोका जा सकता है।
  1. विशिष्टीकरण (Specialisation):- आधुनिक संगठन में विशेष विशिष्टीकरण का लाभ उठाने के लिए एक मुख्य गतिविधि को विभिन्न उप गतिविधियों में विभाजित किया जाता है और अलग-अलग व्यक्तियों को आवंटित किया जाता है। ऐसी स्थिति में विभिन्न लोगों द्वारा की जा रही गतिविधियों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए उनके बीच समन्वय स्थापित करना बहुत आवश्यक है।