Class 12th व्यवसाय अध्ययन

(Business Studies)

Chapter 10

वित्त बाजार (Financial Markets)

  • वित्त बाजार (Financial Markets) : वित्तीय बाज़ार वित्तीय सम्पत्तियों जैसे अश, बाण्ड आदि के सृजन एवं विनिमय करने वाला बाज़ार होता है।

  • वित्तीय बाजार के प्रकार्य (Functions of Financial Market):

  1. बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें अधिकाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करना (Mobilisation of Savings and their Channelisation into more Productive Uses): वित्त बाज़ार बचतकर्ता से बचतों को निवेशकों तक अंतरित करने को सुसाध्य (सुविधापूर्ण) बनाते हैं। यह बचतकर्ताओं को विभिन्न निवेशकों का चुनाव (विकल्प) देते हैं और इस प्रकार से अधिशेष निधियों को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करते हैं ।

  1. मूल्य खोज को सुसाध्य बनाना (Facilitates Price Discovery)- जैसा कि आप सभी जानते हैं कि माँग एवं आपूर्ति की ताकतें बाज़ार में किसी सामान या सेवा की एक कीमत स्थापित करने में मदद करती हैं। वित्त बाजार में भी घरों की (हाउसहोल्ड) निधियों के आपूर्तिकर्ता तथा व्यावसायिक फर्मे माँग का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन दोनों के बीच परस्पर क्रिया उस वित्तीय परिसंपत्ति की कीमत या मूल्य तय करने में मदद करती है जिसका उस विशिष्ट बाजार में व्यापार किया जाना है।

  1. वित्तीय परिसंपत्तियों हेतु द्रवता उपलब्ध कराना (Provided Liquid to Financial Assets)- वित्तीय बाज़ार एक वित्तीय परिसंपत्ति को आसानी से बेचने व खरीदने को सुकर बनाता है। ऐसा करते हुए वे वित्तीय परिसंपत्तियों को द्रवता प्रदान करते हैं ताकि उन्हें आवश्यकतानुसार आसानी से रोकड़ (नकद) में परिवर्तित किया जा सके। परिसंपत्तियों के धारक वित्तीय बाज़ार के प्रक्रम के माध्यम से अपनी वित्तीय परिसपंत्ति को हाथों-हाथ (त्वरित) आसानी से बेच सकें।

  1. लेन-देन की लागत को घटाना (Reduces the Cost of Transactions)- वित्तीय बाज़ार में व्यापार की जाने वाली प्रतिभूतियों के बारे में बहुमूल्य सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं। यह एक वित्तीय परिसंपत्ति के क्रय एवं विक्रय में खरीदने तथा बेचने वाले दोनों ही के समय, प्रयासों एवं धन को बचाता है, अन्यथा उन्हें प्रयास करने व खोजने पर खर्चा करना पड़ता। इस प्रकार से वित्तीय बाज़ार वह साझा या सामान्य मंच है जहाँ यता एवं विक्रेता अपनी वैयक्तिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।

  • वित्तीय बाजार का वर्गीकरण (Categorisation of Financial Market):
  • मुद्रा बाज़ार (Money Market) : द्रव्य या मुद्रा बाज़ार एक छोटी अवधि की निधियों का बाजार है जो ऐसे द्रव्य संपत्तियों का निपटान करता है जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक की होती है। ये परिसंपत्तियां द्रव्य के लिए निकट विकल्प होती हैं। यह ऐसा बाजार है जहाँ कम जोखिम, आरक्षित तथा लघुकालिक ऋण प्रपत्र होते हैं जो कि उच्च तरल दैनिक निर्गमित तथा सक्रिय तिजारती (व्यापार योग्य) होते हैं। इनकी कोई भौतिक स्थानिकता नहीं होती है परंतु यह ऐसी क्रियाविधि है जो टेलीफोन (दूरभाष) व इंटरनेट के माध्यम से संपादित की जाती है। यह अस्थायी रोकड़ की कमी एवं देनदारियों के निपटाने की जरूरतों को पूरा करने हेतु अल्पकालिक निधि उगाहने में सक्षम होती हैं तथा आय वापसी के लिए अधिक या बेशी निधियों के अस्थाई फैलाव के लिए उपयुक्त होते हैं। बाज़ार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, कमर्शियल बैंक, गैर बैंकिंग वित्त कंपनियां, राज्य सरकारें, वृहद औद्योगिक घराने तथा म्युचुअल फंड आदि हैं।

  • मुद्रा बाज़ार के प्रपत्र (Money Market Instruments):

  1. ट्रेजरी (राजकोष) बिल (Treasury Bills):- यह मूलतः एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले भारत सरकार के द्वारा ऋणदाता के रूप में दिया जाने वाला एक लघुकालिक प्रपत्र होता है। इन्हें शून्य कूपन बंधपत्र के नाम से भी जाना जाता है जिन्हें केंद्रीय सरकार के पक्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निधि की लघुकालिक जरूरतों के लिए जारी किया जाता है। ये राजकोष बिल एक वचन पत्र के स्वरूप में जारी किया जाता है। ये उच्च तरल तथा सुनिश्चित वापसी या लब्धि प्राप्ति युक्त तथा अदायगी के जोखिम से नगण्य हैं।

इन्हें ऐसे मूल्य पर जारी किया जाता है, जो अपने अंकित मूल्य से कम के होते हैं और इनका भुगतान उसके बराबर तक किया जाता है। जिस मूल्य पर राजकोष बिल जारी हुआ है तथा उस पर प्राप्य ब्याज के साथ उसका मोचन मूल्य के बीच अंतर होता है जिसे बट्टा (डिस्काउंट) कहते हैं। राजकोष बिल 25000 रु. के न्यूनतम मूल्य और इसके बाद बहु गुणन में प्राप्त होते हैं।

उदाहरण- मान लीजिए एक निवेशक 91 दिनों के लिए । 00,000 रु. अंकित मूल्य के राजकोष बिल 96,000 रु. में खरीदता है। परिपक्वता तिथि तक अपने पास रखने के बाद निवेशक बिल के बदले 1,00,000 रु. प्राप्त करता है। यहाँ भुगतान की गई राशि तथा परिपक्वता के बाद प्राप्त की गई राशि के बीच 4000 रु. का अंतर है। यह राशि बिल की खरीद पर निवेशक को ब्याज के रूप में प्राप्ति का प्रतिनिधित्व करती है।

  1. वाणिज्यिक (या तिजारती) पत्र (Commercial Paper) - वाणिज्यिक पत्र एक अल्पकालिक, आरक्षित वचन पत्र होता है जो बेचान के द्वारा अंतरणीय एवं परक्राम्य (बेचनीय) है तथा परिपक्व अवधि के बाद एक सुनिश्चित (स्थिर) अंतरण या सुपुर्दगी होती है। यह विशाल एवं उधार पात्रता कंपनियों द्वारा अल्पकालिक बाज़ार दर से कम दर पर निधि उगाहने के लिए जारी करती हैं इनकी परिपक्वता अवधि प्रायः 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है। बड़ी कंपनियों के लिए वाणिज्यिक पत्रों का प्रचालन बैंक से उधार लेने की अपेक्षा एक विकल्प है जिन्हें सामान्यतः वित्तीय रूप से सुदृढ़ माना जाता है। इसे बट्टे के साथ बेचा एवं सममूल्य पर मोचित किया जाता है । वाणिज्यिक पत्रों का वास्तविक उद्देश्य अल्पकालिक मौसमी एवं कार्य पूँजी की जरूरतों हेतु निधि उपलब्ध कराना था।

उदाहरण के लिए कंपनियां इस प्रपत्र को सेतु वित्तीयता (ब्रिजोफाइनेंस) जैसे उद्देश्य के लिए उपयोग करती हैं।

उदाहरण- मान लीजिए एक निधि कंपनी को मशीन खरीदने के लिए दीर्घकालिक वित्त की आवश्यकता है। पूंजी बाज़ार से दीर्घकालिक निधि उगाहने के क्रम में कंपनी को फ्लोटेशन कॉस्ट (चल पूँजी) उठानी पड़ेगी। (इस लागत में एक चल पूँजी के निगर्मन जैसे ब्रोकरेज (दलाली) कमीशन, आवेदन पत्रों की छपाई तथा विज्ञापन आदि के खर्च आते हैं)। वाणिज्यिक पत्रों के माध्यम से अस्थायी पूँजी उगाह करके प्लांट की लागत जुटाई जाती है। इसे सेतु वित्तीयता (ब्रिजफाइनेंस) कहते हैं।

  1. शीघ्रावधि द्रव्य (Call Money) - शीघ्रावधि द्रव्य एक लघुकालिक माँग पर पुर्नभुगतान वित्त है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है तथा अंतर बैंक अंतरण के लिए उपयोग किया जाता है। वाणिज्यिक बैंकों को एक न्यूनतम रोकड़ शेष अनुरक्षित करना होता है जिसे रोकड़/नकदी आरक्षण या नकदी रिजर्व अनुपात कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर नकदी रिजर्व अनुपात परिवर्तित करता रहता है जो बदले में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की उपलब्ध निधियों को प्रभावित करता है। शीघ्रावधि द्रव्य वह उपाय है जिसके द्वारा एक दूसरे से नकदी उधार लेकर नकदी आरक्षण अनुपात अनुरक्षित रखने में सक्षम होते हैं। शीघ्रावधि ऋण पर चुकाया जाने वाले ब्याज को शीघ्रावधि दर के नाम से जानते हैं। यह दर बहुत ही चंचल (अस्थिर) होती है दिन प्रतिदिन और कभी-कभी घंटों के अनुसार बदलती है यहाँ पर शीघ्रावधि दर (काल रेट्स) और मुद्रा बाज़ार से अन्य अल्प कालिक प्रपत्रों जैसे कि बचत प्रमाणपत्र तथा वाणिज्यिक पत्र आदि के बीच बिल्कुल विपरीत संबंध होता है। शीघ्रावधि द्रव्य में वृद्धि अन्य स्रोतों से वित्त जैसे कि वाणिज्यिक पत्रों या बचत प्रमाण पत्रों से जुटाते हैं। इन स्रोतों की निधि बैंक द्वारा पैदा की गई निधियों की अपेक्षा सस्ती होती हैं।

  1. बचत प्रमाण पत्र (Certificate of Deposits) - बचत प्रमाण पत्र (सी. डी.) अरक्षित, पारक्रम्य (बेचनीय). धारक रूप में लघुकालिक प्रपत्र आदि वाणिज्यिक बैंकों तथा विकास वित्त संस्थानों द्वारा जारी किए जाते हैं। यह वैयक्तिक रूप से उद्यमों निगमों तथा कंपनियों को उनकी कठिन द्रवता की अवधि के दौरान तब जारी किए जा सकते हैं जब बैंकों में बचत दर मंद हो, लेकिन कर्ज के लिए माँग उच्च हो। यह लघु अवधि के लिए भारी मात्रा में द्रव्य संचारित करने में सहायक होते हैं।

  1. वाणिज्यिक बिल (Commercial Bill) - वाणिज्यिक विल विनिमय का एक बिल है जो व्यावसायिक फर्मों की कार्य पूँजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है यह एक लघुकालिक, पारक्रम्य (बेचनीय) स्वयं द्रवीकृत प्रपत्र है जो एक फर्म की उधार बिक्री को वित्तीयन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जब माल को साख (उधारी) पर बेचा जाता है तब खरीददार देनदार बन जाता है जिसे भविष्य में एक निश्चित तिथि पर भुगतान करना है। विक्रेता उस विशिष्ट ( या निश्चित) तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है या विनिमय के एक बिल का उपयोग करें। माल का विक्रेता (आदेशक या आहरक) बिल का आहरण करता है और खरीददार (अदाकर्ता/आदेशिती) इसे स्वीकार करता है। स्वीकार किए जाने पर यह बिल एक पण्य या विक्रय (मार्केटेबल) प्रपत्र बन जाता है और इसे व्यापारिक बिल कहा जाता है। यदि विक्रेता को बिल के परिपक्व होने से पहले निधियों की जरूरत पड़ती है तो एक बैंक द्वारा ये बिल बट्टा कटा (डिस्काउंटेड) कर लिए जा सकते हैं। जब एक व्यापारिक बिल बैंक द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो इसे एक वाणिज्यिक बिल के नाम से जाना जाता है।

  • पूँजी बाज़ार (Capital Market): पूँजी बाजार को दो भागों में बाँटा जा सकता:-
  1. प्राथमिक बाजार
  2. द्वितीयक बाज़ार

  • प्राथमिक बाजार (Primary Market): प्राथमिक बाजार को नए निर्गमन बाजार के रूप में भी जानते हैं। यह नई प्रतिभूतियों से निपटता है जो कि पहली बार निर्गमित (या जारी) होते हैं एक प्राथमिक बाजार का आवश्यक प्रकार्य बचत कर्ताओं से निवेश योग्य निधियों को नए उद्यम स्थापित करने की जरूरत वाले उद्यमियों तक या फिर जो पहली बार प्रतिभूतियों को जारी करके अपने विद्यमान व्यवसाय का विस्तार करना चाहता है उस तक पहुँचाना है। इस बाज़ार के निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कंपनियाँ, म्युचुअल फंड तथा वैयक्तिक रूप में होते हैं।

प्राथमिक बाजार से एक कंपनी मुद्रा धन को इक्विटी शेयरों, अधिमान (प्रिफेरेंस) शेयरों, ऋणपत्रों, ऋणों तथा बचतों के रूप में उगाह सकती है। इन स्याही गई निधियों को कंपनी नई परियोजनाओं के लगाने विस्तारण, वैविध्यीकरण, विद्यमान परियोजनाओं का नवीनीकरण, विलय तथा अधिकार में लेने (खरीदने) आदि के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं।

  • अस्थायी पूँजी ( फ्लोटेशन) की विधियाँ (Various Methods of Floating Capital): प्राथमिक बाजार में अस्थिर पूँजी (फ्लोटेशन) के नए निर्गमन की विधियाँ:-

  1. विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव (Public Issue):- विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव प्राथमिक बाजार में सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निधि उगाहने की एक सर्वाधिक लोकप्रिय विधि है। इसके अंतर्गत विवरण पत्रिका जारी करने के माध्यम से जनता से अंशदान आमंत्रित करते हैं। एक विवरण पत्रिका पूँजी उगाहने के लिए निवेशकों से प्रत्यक्ष अपील करती है जिसके लिए अखबारों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से विज्ञापन जारी किए जाते हैं। यह निर्गमन हामीदारी (जोखिम अंकन) और कम से कम एक शेयर बाजार में सूचीबद्ध किए जाने की अपेक्षा रखने वाला हो सकता है। विवरण पत्रिका की विषयवस्तु कंपनी अधिनियम तथा सेबी के प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए तथा सेबी की प्रकटन एवं निवेश संरक्षा मार्गदर्शियों से युक्त होना चाहिए।

  1. विक्रय के लिए प्रस्ताव (Offer for Sale)- इस विधि के अंतर्गत प्रतिभूतियों को सीधे जनता से नहीं निर्गमित किया जाता है, बल्कि निर्गमन/जारीकर्ता गृहों या स्टॉक दलाल (ब्रोकर) जैसे माध्यकों के द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तावित किए जाते हैं। इस मामले में प्रभूतियों को एक कंपनी उन ब्रोकर्स को सहमति मूल्य पर खंडों में बेचती है जो आगे इन्हें निवेशक जनता में पुनः विक्रय कर सके।

  1. निजी नियोजन या विनियोग (Private Placement)- निजी विनियोग भी एक कंपनी द्वारा संस्थागत निवेशकों तथा कुछ चयनित वैयक्तिक निवेशकों को प्रतिभूतियों का आवंटन है। यह एक सार्वजनिक निर्गमन की अपेक्षा अधिक तीव्रता से पूँजी उगाहने में मदद करता है। प्राथमिक बाज़ार में पहुँच कई बार अनेक आवश्यक और अनावश्यक खर्चों के खातों (लेखा) पर महँगा हो सकता है। इसलिए कुछ कंपनियाँ एक सार्वजनिक निर्गमन वहन नहीं कर सकती, फलतः वे निजी विनियोग का इस्तेमाल करती हैं।

  1. अधिकार निर्गम (Right Issue)- यह एक विशेषाधिकार है जो विद्यमान शेयर धारकों को कंपनी शर्तों एवं नियमों के अनुसार नए निर्गमों को पूर्व क्रय करने का अवसर देता है। शेयर धारकों को पहले से कब्जे वाले शेयरों के अनुपात में नए शेयरों को खरीदने का अधिकार प्रस्तावित किया जाता है।

  1. इलेक्ट्रॉनिक आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (e- IPOs) - एक कंपनी जब शेयर बाज़ार की ऑन लाइन प्रणाली (सिस्टम) के माध्यम से सार्वजनिक पूँजी निर्गम प्रस्तावित करती है तो उसे शेयर बाज़ार के साथ एक अनुबंध में प्रविष्ट होना पड़ता है। यहाँ पर कंपनी के द्वारा सेबी (SEBI) में पंजीकृत दलालों (ब्रोकर्स) को आवेदन स्वीकारने तथा आदेश नियोजन हेतु नियुक्त करना पड़ता है। निर्गमन हेतु निर्गमक कंपनी को एक रजिस्ट्रार (पंजीयक) को नियुक्त करना चाहिए जो एक्सचेंज के साथ इलेक्ट्रॉनिक संयोजकता (संबद्धता) रखता हो। निर्गमक (जारीकर्ता) कंपनी किसी भी एक्सचेंज में प्रतिभूतियों के सूचीबद्धता हेतु आवेदन कर सकती है जो कि उस एक्सचेंज से भिन्न हो सकता है जिसके माध्यम से उसने अपनी प्रतिभूति प्रस्तावित की हैं। प्रमुख प्रबंधक उन सभी माध्यकों (मध्यस्थों) के साथ समन्वय रखता है जो इस निर्गम से जुड़े होते हैं।

  • द्वितीयक बाज़ार (Secondary Market): द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज या स्टॉक बाज़ार (या शेयर बाज़ार) के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्यमान प्रतिभूतियों के लिए क्रय एवं विक्रय का बाजार है। यह विद्यमान निवेशकों को विनिवेश तथा नए निवेशकों का प्रवेश करने में सहायता प्रदान करता है। इसके साथ ही यह वर्तमान प्रतिभूतियों को द्रव एवं विक्रेता उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही यह निधियों का अधिक उत्पादक देशों में विनिवेश एवं पुनर्निवेश के माध्यम से निधियों को सरणित करके आर्थिक प्रगति में हाथ बँटाता है। प्रतिभूतियों को सेबी (SEBI) द्वारा प्रदिष्ट नियामक ढाँचे के अंतर्गत खरीद- फरोख्त चुकाई या निकासित एवं निपटाया जाता है। सूचना तकनीक की प्रगति ने शेयर बाज़ार स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से ट्रेडिंग टर्मिनलों के द्वारा देश भर में कहीं भी व्यापार के लिए पहुँच को आसान बना दिया है। देश में प्राथमिक बाज़ार की वृद्धि के साथ-साथ, पिछले दस वर्षों के दौरान द्वितीयक बाज़ार भी महत्त्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ा है। आप इस अध्याय में आगे स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजार) के बारे में और अधिक विस्तार से पढ़ें।

  • पूँजी बाज़ार एवं मुद्रा बाज़ार में अंतर (Difference between Capital Market and Money Market):

  1. भाग लेने वाले (Participants) : पूँजी बाजार में भाग लेने वाले हैं वित्तीय संस्थान, बैंक, निर्गमित इकाइयां, विदेशी निवेश एवं जनता में से साधारण फिटकरी विनियोजक। मुद्रा बाज़ार में अधिकांश भाग लेने वाले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, वित्तीय संस्थान एवं वित्त कंपनियों जैसे संस्थान हैं। यद्यपि व्यक्ति भी निजी तौर पर द्वितीय बाजार से लेन-देन कर सकते है लेकिन सामान्यतः वह ऐसा करते नहीं हैं।

  1. प्रलेख (Instruments) : पूँजी बाजार में जिन प्रलेखों में लेन देन किया जाता है उनमें प्रमुख हैं : मुद्रा बाजार में जिन प्रपत्रों में व्यापार होता है उनमें प्रमुख हैं लघु अवधि के ऋण प्रपत्र जैसे टी.बिल, व्यापार बिल वाणिज्यिक पेपर एवं जमा प्रमाण पत्र।

  1. निवेश राशि (Investment Outlay) : पूँजी बाजार में प्रतिभूतियों में निवेश के लिए बहुत बड़ी मात्रा में वित्त का होना आवश्यक नहीं है। प्रतिभूति की इकाइयों का मूल्य साधारणतया कम ही होता है जैसे 10 रु. या फिर 100 रु। इसी प्रकार से शेयरों के व्यापार के लिए न्यूनतम संख्या छोटी ही रखी जाती है जो 50 अथवा 100 हो सकती है। इससे नियोक्ता अपनी छोटी बचत से इन प्रतिभूतियों को खरीद सकते हैं मुद्रा बाज़ार में सौदों के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है।

  1. अवधि (Duration) : पूँजी बाजार के दीर्घ अवधि एवं मध्य अवधि की प्रतिभूतियों के सौदे होते हैं जैसे समता अंश एवं ऋण पत्र। मुद्रा बाजार में प्रपत्र अधिकतम एक वर्ष के लिए होते हैं। कभी-कभी तो यह एक दिन के लिए भी जारी किए जाते हैं।

  1. तरलता (Liquidity) : पूँजी बाज़ार की प्रतिभूतियों को तरल निवेश माना जाता है क्योंकि इनका स्टॉक एक्सचेंज में क्रय-विक्रय हो सकता है। यह अलग बात है कि कोई शेयर में व्यापार सक्रिय रूप से नहीं हो रहा है अर्थात उसका कोई क्रेता नहीं है। मुद्रा बाज़ार प्रपत्र अधिक तरल होते हैं क्योंकि इसके लिए औपचारिक व्यवस्था की हुई होती है। DFHI की स्थापना का उद्देश्य ही मुद्रा बाजार के प्रपत्रों के लिए तैयार बाज़ार प्रदान करना है।

  1. सुरक्षा (Safety) : पूँजी बाज़ार में प्रपत्रों के मूल्य की वापसी एवं उन पर प्रतिफल दोनों का जोखिम है। निर्गम करने वाली कंपनी हो सकता है कि घोषित योजना के अनुरूप कार्य न कर सके तथा प्रवर्तक निवेशकों के साथ धोखा कर सकते हैं। मुद्रा बाजार कहीं अधिक सुरक्षित है इसमें गड़बड़ी की संभावना न्यूनतम है। इसका कारण निवेश की छोटी अवधि तथा निर्गनकर्ताओं की सुदृढ़ वित्तीय स्थिति का होना है। ये निर्गमनकर्ता हैं सरकार, बैंक एवं उच्च श्रेणी कंपनियां होती हैं।

  1. संभावित प्रतिफल (Expected Return) : पूँजी बाजार में विनियोजित राशि पर नियोजकों को मुद्रा बाजार की तुलना में अधिक ऊँची दर में प्रत्याय मिलता है। ये प्रतिभूतियाँ यदि लंबी अवधि की होंगी तो इन पर आय की संभावना अधिक होती है। प्रथम तो समता अंशों पर पूंजीगत लाभ की संभावना होती है। दूसरे लंबी अवधि में कंपनी की समृद्धि में उच्च लाभांश एवं बोनस निर्गम रूप से शेयरधारकों की भी भागीदारी होती है।

  • स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange): प्रतिभूति संपर्क (नियामक) अधिनियम 1956 के अनुसार शेयर बाजार का तात्पर्य व्यवसाय में प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त या निपटान हेतु सहायता, नियमन एवं नियंत्रण उद्देश्य के लिए, एक ऐसे वैयक्तिक निकाय का गठन किया जाना है, फिर चाहे वह निगमित (इनकार्पोरेटेड) हो अथवा नहीं।

  • एक शेयर बाजार के क्रियाकलाप (Activities of Share Market):  एक शेयर बाजार के कुछ महत्त्वपूर्ण क्रियाकलाप निम्नलिखित हैं:

  1. विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विनियोग उपलब्ध कराना (Providing Liquidity and Marketability to the Existing Securities)- एक शेयर बाजार की आधारभूत क्रियाशीलता एक सातव्य बाज़ार तैयार करना है जहां प्रतिभूति लाई और बेची जा सकें। यह निवेशकों का विनिवेश एवं पुनर्निवेश के अवसर देता है। यह बाज़ार में पहले से ही विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं आसान विनियोग या नियोजन दोनों ही उपलब्ध कराता है।

  1. प्रतिभूतियों का मूल्यन (Pricing of Securities)- एक शेयर बाजार में शेयर का मूल्य (या भाव) माँग एवं आपूर्ति की ताकतों के द्वारा निर्धारित होता है। एक शेयर बाजार सतत् मूल्यन या मूल्य निर्धारण का एक प्रक्रम है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों के मूल्य निर्धारित होते हैं। इस प्रकार का मूल्य क्रेता एवं विक्रेता दोनों को ही फटाफट महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराता है ।

  1. लेन-देन की सुरक्षा (Safety of Transactions)- एक शेयर बाजार की सदस्यता बेहतर ढंग से नियंत्रित होती है और इसके कार्य व्यापार (डीलिंग) को विद्यमान कानूनी ढाँचे के अनुसार सुस्पष्टीकृत किया गया है। यह सुनिश्चित कराता है कि निवेशक जनता बाजार में एक सुरक्षित एवं निष्पक्ष लेन-देन (निपटान) पाती है।

  1. आर्थिक प्रगति हेतु भागीदारी (Contributes to Economic Growth) - एक शेयर बाजार ऐसा बाज़ार है. जहाँ विद्यमान प्रतिभूतियों को पुन: बेचा या खरीद-फरोख्त की जाती है। हालाँकि निवेश एवं पुनर्निवेशन की इस प्रक्रिया में बचों को सर्वाधिक उत्पादक निवेश पथों में सरणित किया जाता है। यही पूँजी गठन एवं आर्थिक वृद्धि की ओर अगुवाई करता है।

  1. इक्विटी संप्रदाय का प्रसार (Spreading Equity Cult)- शेयर बाज़ार नए निर्गमों को विनियमित करके बेहतर व्यापार व्यवहारों (आचरणों) तथा जनता को निवेश के बारे में शिक्षित करने हेतु उत्तम प्रभावी चरण उठाने के द्वारा विस्तृत शेयर स्वामित्व को सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

  1. सट्टेबाजी के लिए अवसर उपलब्ध कराना (Providing Scope for Speculation)- शेयर बाजार कानूनी प्रावधान के अंतर्गत प्रतिबंधित एवं नियंत्रित तरीके से सट्टा संबंधी क्रियाकलापों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराता है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि एक निश्चित अंश तक स्वस्थ-सट्टेबाजी आवश्यक है जो शेयर बाजार की द्रवता एवं मूल्य निरंतरता को सुनिश्चित करती है।

  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities Exchange Board of India):

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 अप्रैल 1988 एक अंतरिम प्रशासनिक निकाय के रूप में की गई थी जो प्रतिभूति बाजार के क्रमबद्ध (नियमित) एवं स्वस्थ वृद्धि तथा निवेशकों की संरक्षा को बढ़ावा प्रदान करे। यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन संपूर्ण प्रशासकीय नियंत्रण में कार्यरत था। 30 जनवरी 1992 को सेबी को एक आर्डिनेस (अध्यादेश) के द्वारा वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया। बाद में यह शासनादेश या अध्यादेश से हटाकर संसद के अधिनियम के रूप में, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 में बदला गया।

  • सेबी के उद्देश्य (Objectives of SEBI):

  1. शेयर बाजार तथा प्रतिभूति उद्योग को विनियमित करना ताकि क्रमबद्ध ढंग से उनकी क्रियाशीलता को बढ़ावा मिले।
  2. निवेशकों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना विशेष रूप से वैयक्तिक निवेशकों को तथा उन्हें मार्गदर्शित एवं शिक्षित करना।
  3. व्यापार कदाचारों (दुराचारों) को रोकना तथा प्रतिभूति उद्योग के स्व नियामन द्वारा एवं इसके वैधानिक नियम के बीच एक संतुलन प्राप्त करना।
  4. मध्यस्थों जैसे कि दलाल (ब्रोकर्स), मर्चेट (श्रेष्ठी) बैंकर्स आदि के द्वारा एक आचार संहिता एवं निष्पक्ष व्यवहार को, उन्हें प्रतियोगी एवं व्यावसायिक बनाने के दृष्टिकोण के साथ विकसित एवं विनियमित करना।

  • सेबी के कार्य (Functions of SEBI): इसके तीन प्रकार के कार्य हैं:
  1. सुरक्षात्मक (Protective)
  2. नियमनकर्ता (Regulatory) और
  3. विकासपूर्ण (Developmental)

  • सुरक्षात्मक कार्य (Protective Functions):

  1. सेबी प्रतिभूति बाजार में धोखा-धड़ी एवं अनुचित कार्यों पर प्रतिबंध लगाती है।
  2. सेबी शेयरों के भीतरी व्यापार पर रोक लगा रखी है। आंतरिक व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो कंपनी से जुड़ा होता है। उसे कंपनी को प्रतिभूतियों के प्रभावित करने वाली सूचना प्राप्त होती हैं जो जन साधारण को प्राप्त नहीं होती है।
  3. सेबी निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाती है।
  4. प्रतिभूति बाजार में उचित कार्यों एवं आधार संहिता को बढ़ावा देती है।

  • नियमन कर्ता कार्य (Regulatory Functions):

  1. दलालों एवं उपदलालों तथा बाज़ार के अन्य खिलाड़ियों का पंजीकरण ।
  2. सामूहिक निवेश योजनाओं तथा म्युचुअल फंडों का पंजीकरण।
  3. शेयर दलालों तथा पोर्टफोलियो एक्सचेंजेस (फाइल विनिमय) तथा मर्चेंट बैंकर्स का पंजीकरण।
  4. धोखेबाजी एवं अनुचित व्यापारों को रोकथाम।
  5. आंतरिक व्यापार एवं नियंत्रणकारी बोलियों पर नियंत्रण तथा ऐसे व्यवहारों के ऊपर दंड लगाना।
  6. उद्यमों में पर्यवेक्षण करना, जाँच-पड़ताल आयोजित करने के द्वारा जानकारी (सूचना) माँगना और शेयर बाजारों तथा मध्यस्थों की लेखा परीक्षा करना।
  7. अधिनियम के उद्देश्यों के बाहर किए जाने वाली गतिविधियों पर अधिशुल्क या कोई अन्य प्रभार लगाना।
  8. एस.सी.आर. अधिनियम 1956 के तहत दिए गए अधिकारों को निष्पादित एवं क्रियान्वित करना, जैसा कि भारत सरकार द्वारा सौंपे जा सकते हैं।

  • विकास पूर्ण कार्य (Developmental Functions)

  1. निवेशक शिक्षा
  2. मध्यस्थों को प्रशिक्षण
  3. उचित आचरणों (व्यवहारों) तथा सभी एस आर ओज के लिए सहिता को बढ़ावा देना।
  4. अनुसंधान आयोजित करना तथा बाजार के सभी भागीदारों के लिए उपयोगी सूचनाओं का प्रकाशन