Class 12th व्यवसाय अध्ययन
(Business Studies)
Chapter 11
विपणन प्रबंध (Marketing Management)
- बाजार क्या है? (What is Market?)
- बाजार: पारंपरिक दृश्य (Market : Traditional View) - यह एक विशेष स्थान को संदर्भित करता है जहाँ खरीदार और विक्रेता एक दूसरे से मिलते हैं और खरीद और बिक्री गतिविधियों का संचालन करते हैं।
- बाजार: आधुनिक दृश्य (Market : Modern View) यह वस्तुओं तथा सेवाओं के वास्तविक और संभावित खरीदारों के एक समूह को संदर्भित करता है।
- ग्राहक (Customer) : यह उन लोगों या संगठनों को संदर्भित करता है जो अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहते हैं।
- विपणनकर्ता / विक्रेता (Marketer/Seller) : एक विपणनकर्ता का मतलब एक व्यक्ति या एक संगठन से है जो ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं को प्रदान करता है।
- विपणन की परिभाषा (Definition of Marketing):
फिलिप कोटलर ने विपणन की परिभाषा इस प्रकार दी है, "यह एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अनुसार लोगों के समूह उत्पादों का सृजन कर उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं जिनकी उनको आवश्यकता है तथा उन वस्तु एवं सेवाओं का स्वतंत्रता से विनिमय करते हैं जिनका कोई मूल्य है।"
According to Phillip Kotler, "Marketing is that social process by which individuals and groups obtain what they need and want through creating offerings and freely exchanging products and services of value with others."
- विपणन की विशेषताएँ (Features of Marketing): विपणन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
- अपेक्षा एवं आवश्यकता (Want and Need)- विपणन प्रक्रिया का पूरा ध्यान लोगों की एवं संगठनों की आवश्यकताओं पर होता है। एक विपणनकर्ता का कार्य किसी संगठन में लक्षित ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा उन उत्पाद एवं सेवाओं का विकास करना है जो इन अपेक्षाओं/अभावों की पूर्ति करते हैं।
- उत्पाद का सृजन (Creating a Product Offering)- विपणनकर्ता बाजार के लिए लोगों की एवं संगठनों की आवश्यकताओं के अनुसार उत्पाद का निर्माण करता है।
- ग्राहक के योग्य मूल्य (Customer Value)- विपणन प्रक्रिया क्रेता एवं विक्रेता के बीच वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को सुगम बनाती है। क्रेता किसी वस्तु के क्रय का निर्णय लेते समय यह देखता है कि वह उनकी लागत की तुलना में उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कितने मूल्य तक करती है। किसी वस्तु का वह क्रय तभी करेगा जबकि उन्हें लगेगा कि उनके खर्च राशि का अधिकतम लाभ अथवा मूल्य प्राप्त होगा। एक विपणनकर्ता का, इसीलिए यह कार्य है कि वह उत्पाद को अधिक मूल्यवान बनाए जिससे कि ग्राहक अन्य प्रतियोगी वस्तुओं की तुलना में इनको पसंद करें तथा इनके क्रय का निर्णय लें।
- विनिमय पद्धति (Exchange Mechanism)- विपणन प्रक्रिया विनिमय पद्धति के माध्यम से कार्य करती है। लोग (क्रेता एवं विक्रेता) विनिमय प्रक्रिया के माध्यम से अपनी इच्छित तथा आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करते हैं। किसी भी विनिमय के लिए निम्न शो को पूरा करना महत्त्वपूर्ण है:-
- इसमें कम-से-कम दो पक्षों का होना आवश्यक है अर्थात् क्रेता एवं विक्रेता;
- प्रत्येक पक्ष दूसरे पक्ष को मूल्य चुकाने की क्षमता रखता हो;
- प्रत्येक पक्ष संप्रेषण एवं वस्तु अथवा सेवा की आपूर्ति के योग्य होना चाहिए। कोई भी विनिमय संभव नहीं है यदि क्रेता एवं विक्रेता का एक दूसरे से संप्रेषण नहीं है या फिर वह दूसरे को कोई ऐसी वस्तु नहीं दे सकते जिसका कोई मूल्य हो।
- प्रत्येक पक्ष को दूसरे पक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार करने अथवा उसे अस्वीकार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा
- विभिन्न पक्ष एक दूसरे से लेन-देन करने के लिए इच्छुक होने चाहिए। इस प्रकार से प्रस्ताव की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति स्वैच्छिक होती है न कि किसी दबाव में।
- विपणन प्रबंधन की परिभाषा (Definition of Marketing Management):
अमरीकन मैनेजमेंट ऐसोसियेशन के अनुसार, "यह विचार, वस्तु एवं सेवाओं की अवधारणा, मूल्य निर्धारण, प्रवर्तन एवं वितरण की नियोजन एवं क्रियान्वयन प्रक्रिया है जो विनिमय के लिए होती हैं जिससे व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।"
फिलिप कोटलर के शब्दों में, "विपणन प्रबंधन बाजार का चयन करने एवं प्रबंध की अधिक श्रेष्ठ ग्राहक मूल्य पैदा करने, सुपुर्दगी करने एवं संप्रेषण करने के माध्यम से ग्राहकों को पकड़ना, उन्हें अपना बनाए रखना एवं उनमें वृद्धि करने की कला एवं विज्ञान है।"
- विपणन प्रबंधन प्रक्रिया में निम्न चरण सम्मिलित हैं (Main Steps Involved in the Process of Marketing Management):-
- बाजार का चयन (Choosing a Target Market): बाजार का चयन जैसे एक विनिर्माता 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए तैयार सिले सिलाए वस्त्रों को तैयार करना तय करता है;
- बाजार में नए ग्राहक बनाना (Growing Consumers in Target Market): विपणनकर्ता को अपने उत्पाद के लिए माँग पैदा करनी होती है जिससे कि ग्राहक उत्पाद का क्रय करें, उन्हें फर्म के उत्पादों से संतुष्ट करना होता है तथा और नए ग्राहक बनाने होते हैं जिससे कि फर्म और ऊँचा उठे।
- श्रेष्ठ मूल्यों का निर्माण (Creating Superior Values) : इसका अर्थ हुआ कि विपणन प्रबंधक का प्राथमिक कार्य वस्तुओं को अधिक उपयोगी बनाना है जिससे कि ग्राहक वस्तु एवं सेवाओं की ओर आकर्षित हों, संभावित ग्राहकों को इनके संबंध में बताएँ तथा उन्हें इन उत्पादों को खरीदने के लिए तैयार करें।
- विपणन के कार्य (Functions of Marketing): विपणन प्रबंधन निम्नलिखित कार्य करता है:
- बाजार संबंधी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना (Gathering and Analysing Marketing Information) - एक विपणनकर्ता के महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य बाजार संबंधी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना है ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा वस्तु एवं सेवाओं के सफल विपणन के लिए विभिन्न निर्णय लेना आवश्यक है।
- विपणन नियोजन (Marketing Planning)- संगठन के विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विपणनकर्ता का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा क्षेत्र उचित विपणन योजना का विकास करना है। इसके लिए उसे एक पूरी विपणन योजना तैयार करनी होगी जिसमें उत्पादन के स्तर में वृद्धि, वस्तुओं का प्रर्तन आदि जैसे महत्त्वपूर्ण पक्ष सम्मिलित किए जाएँगे तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्रियान्वयन कार्यक्रम का निर्धारण भी होगा।
- उत्पाद का रूपांकन एवं विकास (Product Designing and Development)- विपणन का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा निर्णय क्षेत्र उत्पाद का रूपांकन एवं विकास है। उत्पाद का रूपांकन लक्षित उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद को और अधिक आकर्षित बनाने में सहायक होता है।
- प्रमापीकरण (मानकीकरण) एवं ग्रेड तय करना (Standardisation and Grading) - प्रमापीकरण का अर्थ है पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन करना जिससे उत्पाद में एकरूपता तथा अनुकूलता आती है | प्रमापीकरण क्रेताओं को यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ पूर्व निर्धारित गुणवत्ता, मूल्य एवं पैकेजिंग के मानकों के अनुसार हैं। इससे उत्पादों के निरीक्षण, जाँच एवं मूल्यांकन की आवश्यकता कम हो जाती है।
ग्रेड निर्धारण उत्पाद का गुणवत्ता, आकार आदि महत्त्वपूर्ण विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों में वर्गीकृत करना है। श्रेणीकरण विशेष रूप से उन उत्पादों के लिए आवश्यक है जिनका पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुसार उत्पादन नहीं किया जाता जैसे गेहूँ, संतरे आदि। श्रेणीकरण यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ एक विशेष गुणवत्ता वाली हैं तथा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को ऊँचे मूल्य पर बेचने में सहायक होता है।
- पैकेजिंग एवं लेबलिंग (Packaging and Labelling)- पैकेजिंग का अर्थ है उत्पाद के पैकेज का रूपांकन करना। लेबलिंग में पैकेज पर जो लेबल लगाए जाते हैं उनका रूपांकन किया जाता है। कभी-कभी क्रेता पैकेजिंग से ही उत्पाद की गुणवत्ता का आकलन करते हैं। आज के समय में 'लेस' अथवा 'अंकल चिप्स' आलू के वेफर्स, क्लिनिक प्लस शैम्पू तथा कोलगेट टूथपेस्ट आदि उपभोक्ता ब्रांड की सफलता में पैकेजिंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- ब्रांडिंग (Branding) - अधिकांश उपभोक्ता उत्पादों के विपणन के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया जाता है कि क्या उत्पाद को इसके वर्ग विशेष के नाम (उत्पाद किस वर्ग का है जैसे पंखे, पैन आदि) से बेचा जाए अथवा इनकी बिक्री ब्रांड के नाम (जैसे पोलर पंखे अथवा रोटोमेक पेन) से की जाए। ब्रांड का नाम उत्पाद को अन्य उत्पादों से भिन्न बनाता है, जो किसी फर्म के उत्पाद को प्रतियोगी के उत्पाद से अंतर का आधार बन जाता है जिससे उत्पाद के लिए उपभोक्ता का लगाव पैदा होता है तथा इससे बिक्री संवर्धन में सहायता मिलती है।
- ग्राहक समर्थन सेवाएँ (Customer Support Services)- विपणन प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य ग्राहक समर्थक सेवाओं का विकास करना है जैसे बिक्री के बाद की सेवाएँ, ग्राहकों की शिकायत को दूर करना एवं समायोजनों को देखना साख सेवाएँ, रख-रखाव सेवाएँ, तकनीकी सेवाएं प्रदान करना एवं उपभोक्ता सूचनाएँ देना। ये सभी सेवाएँ ग्राहकों को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करती हैं जो आज के समय में विपणन की सफलता की कुंजी है।
- उत्पाद का मूल्य निर्धारण (Determining the Price of the Product)- उत्पाद का मूल्य वह राशि है जिसका भुगतान उत्पाद को प्राप्त करने के लिए ग्राहक को करना होता है। विपणनकर्ताओं को मूल्य निर्धारक तत्वों का ठीक से विश्लेषण करना होता है इस संबंध में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं जैसे मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों का निर्धारण मूल्य के संबंध में रणनीति का निर्धारण मूल्यों का निर्धारण करना तथा उनमें परिवर्तन लाना।
- संवर्धन (Promotion)- वस्तु एवं सेवाओं के संवर्धन में उपभोक्ताओं को फर्म के उत्पाद एवं उसकी विशेषताओं के संबंध में सूचना देना तथा उन्हें इन उत्पादों को क्रय करने के लिए प्रेरित करना सम्मिलित होता है। बिक्री प्रवर्तन की चार महत्त्वपूर्ण पद्धतियाँ हैं विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, प्रचार एवं विक्रय संवर्धन। वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के संबंध में विपणनकर्ता को कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं जैसे प्रवर्तन बजट, प्रवर्तन मिश्र अर्थात् उन सभी प्रवर्तन की विधियों का मिश्रण का उपयोग करना है प्रवर्तन बजट आदि।
- वितरण (Distribution)- वस्तु एवं सेवाओं के विपणन का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य भौतिक वितरण का प्रबंधन है। इस कार्य में दो के संबंध में निर्णय लिए जाते हैं (1) वितरण के माध्य अर्थात् विपणन मध्यस्थ (थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता) एवं (i) उत्पादों को उनके उत्पाद स्थलों से ग्राहक के उपभोग या उपयोग स्थल तक ले जाना। वस्तुओं के वितरण के संबंध में जो निर्णय लिए जाते हैं वे हैं संग्रहित माल का प्रबंधन (माल के स्टॉक का स्तर), माल का गोदाम में भंडारण एवं वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना ले जाना।
- परिवहन (Transportation) - परिवहन का अर्थ है माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना। विपणन की फर्म को अपनी परिवहन की आवश्यकताओं का विश्लेषण के समय कई तत्वों को ध्यान में रखना होता है जैसे उत्पाद की प्रकृति, बाज़ार, जहाँ बेचना है, की लागत तथा स्थान तथा परिवहन के साधन तथा इससे जुड़े अन्य पहलुओं के संबंध में भी निर्णय लेना होता है।
- संग्रहण अथवा भंडारण (Warehousing and Storing)- साधारणतया वस्तुओं के उत्पादन अथवा जुटाने तथा उनकी बिक्री अथवा उपयोग के बीच समय का अंतर होता है। इसका कारण एक ओर अनियमित माँग जैसे ऊनी कपड़े अथवा बरसाती या फिर अनियमित पूर्ति जैसे कृषि उत्पाद (गन्ना, चावल, गेहूँ, कपास आदि) हो सकता है। बाजार में उत्पादों का प्रवाह बना रहे इसके लिए उत्पादों के उचित भंडारण की आवश्यकता है। माल की सुपुर्दगी में ऐसी देरी हो सकती है जिससे बचा नहीं जा सकता या फिर अचानक ही वस्तु की माँग की पूर्ति करनी हो सकती है इस सबके लिए भी पर्याप्त मात्रा में माल का संग्रहण आवश्यक है। विपणन के इस संग्रहण के कार्य को जो विभिन्न एजेंसियाँ करती हैं वे हैं विनिर्माता, थोक विक्रेता तथा फुटकर विक्रेता।
- विपणन प्रबंधन दर्शन (Marketing Management Philosophies): विपणन की अवधारणा अथवा दर्शन का विकास एक लंबे समय में हुआ है तथा इसका वर्णन नीचे किया गया है:-
- उत्पादन की अवधारणा (Production Concept): यह अवधारणा व्यावसायिक क्रिया वस्तुओं के उत्पादन पर केंद्रित थी यह विश्वास किया जाता था कि वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन कर अधिकतम लाभ कमाया जा सकता था। इससे उत्पादन की औसत लागत को कम किया जा सकता था।
- उत्पाद की अवधारणा (Product Concept): इस अवधारणा के अंतर्गत व्यवसायिक इकाइयाँ उत्पादन की मात्रा के स्थान पर उत्पाद की गुणवत्ता को अधिक महत्त्व देने लगी। व्यावसायिक क्रिया का केंद्र बिंदु अब निरंतर गुणवत्ता में सुधार तथा वस्तु को नया स्वरूप प्रदान करना हो गया।
- बिक्री की अवधारणा (Selling Concept): इस अवधारणा के अंतर्गत वस्तु को क्रय करने के लिए ग्राहक को आकर्षित करना तथा उस पर जोर देना अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया। ग्राहक तब तक वस्तु का क्रय नहीं करेगा या फिर पर्याप्त मात्रा में क्रय नहीं करेगा जब तक कि उसे इसके लिए भली-भाँति प्रभावित एवं अभिप्रेरित न किया जाए। ग्राहक उनके उत्पादों का क्रय करें इसके लिए अब व्यवसायों के लिए आक्रमिक विक्रय एवं प्रवर्तन करना अनिवार्य हो गया है। उत्पादों की विक्री के लिए विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं विक्रय प्रवर्तन जैसे विक्रय संवर्धन तकनीकों का प्रयोग आवश्यक माना जाने लगा। अब व्यावसायिक ईकाइयाँ अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए आक्रामक विक्रय पद्धतियों पर अधिक ध्यान देने लगी जिससे कि ग्राहकों को वस्तुओं के क्रय के लिए प्रोत्साहित, लुभाया एवं तैयार किया जा सके।
- विपणन की अवधारणा (Marketing Concept): इसमें यह माना जाता है कि दीर्घ अवधि में कोई भी संगठन यदि अपने अधिकतम लाभ के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है तो उसे अपने वर्तमान तथा संभावित विक्रेताओं की आवश्यकताओं की पहचान कर उनकी प्रभावी रूप से संतुष्टि करनी होगी। किसी भी फर्म में सभी निर्णय ग्राहकों के ध्यान में रख कर लिए जाते हैं। दूसरे शब्दों में संगठन में सभी निर्णयों का केंद्र बिदु ग्राहकों की संतुष्टि होता है।
- विपणन की सामाजिक अवधारणा (Societal Marketing Concept): समाज मूलक विपणन अवधारणा विपणन की अवधारणा का विस्तार है जिसमें दीर्घ अवधि में समाज कल्याण का भी ध्यान रखा जाता है। ग्राहक की संतुष्टि के अतिरिक्त इसमें विपणन का सामाजिक, नैतिक एवं प्राकृतिक घटको पर भी ध्यान दिया जाता है।
- विपणन मिश्र (Marketing Mix): विपणन मिश्र विभिन्न दरों से मिलकर बनता है जिनको मुख्यत: चार वर्गों में विभक्त किया गया है। यह चार Ps के नाम से प्रसिद्ध है जो इस प्रकार हैं-
- उत्पाद (Product)
- मूल्य (Price)
- स्थान (Place) एवं
- प्रवर्तन (Promotion)।
इनका वर्णन नीचे किया गया है-
- उत्पाद (Product): उत्पाद का अर्थ है वस्तु, सेवाएँ अथवा अन्य कोई पदार्थ जिसका मूल्य है, जिन्हें बाजार में विक्री के लिए प्रस्तावित किया जाता है। उत्पाद से अभिप्राय केवल स्थूल उत्पादों ही नहीं हैं बल्कि उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर उनको प्रदान करने के लिए कुछ लाभों से भी है | उत्पाद के संबंध में लिए जाने वाले निर्णय रूप-आकार, गुणवत्ता पैकेजिंग, लेबल एवं ब्रांड के संबंध में होते हैं।
- मूल्य (Price): मूल्य वह राशि है ग्राहक उत्पाद को प्राप्त करने के लिए जिसका भुगतान करना चाहते हैं। अधिकांश उत्पादों के माँग की मात्रा को उसका मूल्य प्रभावित करता है। विपणनकर्ताओं के न केवल मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों के संबंध में निर्णय लेना होता है बल्कि मूल्य निर्धारक तत्वों का विश्लेषण कर फर्म के उत्पादों का मूल्य भी निर्धारित करना होता है। ग्राहकों एवं व्यापारियों को दी जाने वाली छूट एवं उधार की शर्तों का फैसला भी लेना होता जिससे कि ग्राहक समझ सके कि कीमत उत्पाद की उपयोगिता से मेल खाती है।
- स्थान (Place)- स्थान अर्थात वस्तुओं का वितरण में निर्दिष्ट उपभोक्ताओं को फर्म के उत्पादों को उपलब्ध कराने की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इस संबंध में जो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं, वे हैं उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए वितरक अथवा मध्यस्थ का चयन, मध्यस्थों को छूट. प्रवर्तन अभियान आदि के द्वारा समर्थन प्रदान करना। इसके बदले में मध्यस्थ फर्म के उत्पादों का संग्रह करते हैं, उन्हें संभावित ग्राहकों को दिखाते हैं, ग्राहकों से मूल्य तय करते हैं, विक्रय को अंतिम रूप प्रदान करते हैं तथा विक्री के पश्चात् की सेवाएं प्रदान करते हैं। अन्य क्षेत्र जिनके संबंध में निर्णय लिए जाते हैं. वे हैं स्टॉक का प्रबंधन, संग्रहण एवं भंडारण तथा वस्तुओं का उनके उत्पादन के स्थान से उपभोक्ता के स्थान को ले जाना।
- प्रवर्तन (Promotion)- वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन में जो क्रियाएँ सम्मिलित हैं, वे हैं उत्पाद की उपलब्धता, रंग रूप, गुण आदि को लक्षित उपभोक्ता के समक्ष रखना था उसे इसके क्रय के लिए प्रोत्साहित करना। अधिकांश विपणन संगठन कई प्रकार की बिक्री प्रवर्तन क्रियाएँ करते हैं तथा इस पर भारी राशि व्यय करते हैं। इसके कई माध्य हैं जैसे विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं बिक्री संवर्धन की विधियाँ जैसे मूल्य में कटीतो मुफ्त नमूने आदि। उपर्युक्त क्षेत्रों में प्रत्येक के संबंध में कई निर्णय लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए विज्ञापन के लिए संदेश, माध्य (जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाएँ आदि), ग्राहकों की शिकायत आदि को तय करना होता है।
- उत्पाद (Product): ग्राहक की दृष्टि से देखें तो उत्पाद अनेक उपयोगिताओं का समूह है जिसका क्रय उसकी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्षमता के कारण किया जाता है। एक क्रेता किसी वस्तु अथवा सेवा का क्रय इसलिए करता है क्योंकि यह उसके लिए उपयोगी है अथवा उसे यह कुछ लाभ पहुँचाता है। किसी उत्पाद के क्रय से ग्राहक को तीन प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं-
(i) कार्यात्मक लाभ
(ii) मनोवैज्ञानिक लाभ एवं
(iii) सामाजिक लाभ।
उदाहरण के लिए एक मोटर साईंकल का क्रय परिवहन के रूप में कार्यात्मक उपयोगिता प्रदान करता है, लेकिन इसके साथ ही प्रतिष्ठा एवं सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति करता है तथा मोटर साईकल की सवारी के कारण कुछ लोगों द्वारा सम्मान की दृष्टि से देखा जाना सामाजिक लाभ पहुँचाता है। इसीलिए किसी भी उत्पादन के लिए योजना तैयार करते समय इन सभी पहलुओं को देखना चाहिए।
- ब्रांडिग (Branding): किसी उत्पाद को नाम, चिह्न अथवा कोई प्रतीक आदि देने की प्रक्रिया को ब्रांडिंग कहते हैं। ब्रांडिंग से जुड़े कुछ शब्द निम्नलिखित हैं:-
- ब्रांड (Brand)- ब्रांड नाम, शब्द, चिह्न, प्रतीक अथवा इनमें से कुछ का मिश्रण है जिसका प्रयोग किसी एक विक्रेता अथवा विक्रेता समूह के उत्पादों वस्तु एवं सेवाओं की पहचान बनाने के लिए किया जाता है तथा इससे इन वस्तु एवं सेवाओं का प्रतियोगियों के उत्पादों से अंतर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कुछ प्रचलित ब्रांड हैं बाटा, लाइफबॉय, डनलप, हॉट शॉट एवं पारकर। ब्रांड एक व्यापक शब्द है जिसके दो घटक है-ब्रांड नाम एवं ब्रांड चिह्न। उदाहरण के लिए एशियन पेंट का चिह्न है इसके पैकेज पर बना गटू है जो कि इसका ब्रांड चिह्न है।
- ब्रांड नाम (Brand Name)- ब्रांड का वह भाग जिसे बोला जा सकता है ब्रांड नाम कहलाता है। दूसरे शब्दों में ब्रांड नाम एक ब्रांड का मौखिक भाग है। उदाहरण के लिए एशियन पेंट, सफोला, मैगी, लाइफबॉय डनलप एवं अंकल चिप्स ब्रांड के नाम हैं।
- ब्रांड चिह्न (Brand Mark)- ब्रांड का वह भाग जिसे पुकारा नहीं जा सकता लेकिन जिसे पहचाना जा सकता है ब्रांड चिह्न कहलाता है। यह एक प्रतीक, आकार, अलग रंग अथवा शब्दों की बनावट के रूप में होता है। उदाहरण के लिए एशियन पेंट का सट्टे, ओनिडा का प्रेत; जीवन बीमा निगम का योग क्षमा या फिर एनासिन का हथेली तथा चार उंगलियाँ सभी ब्रांड चिहन हैं।
- ट्रेड मार्क (Trade Mark)- ब्रांड अथवा उसके किसी भाग को यदि कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाता है उसे ट्रेड मार्क कहते हैं। यह संरक्षण किसी अन्य फर्म द्वारा इसके प्रयोग के विरुद्ध मिलता है। अर्थात् जिस फर्म ने अपने ब्रांड का पंजीयन करा लिया है उसे इसके उपयोग करने का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। उसी स्थिति में देश में कोई अन्य फर्म इस नाम अथवा चिह्न का प्रयोग नहीं कर सकती।
- एक अच्छे ब्रांड नाम की विशेषताएँ (Qualities of a Good Brand Name):
- ब्रांड नाम संक्षिप्त होना चाहिए। इसका उच्चारण करना, बोलना, पहचान करना एवं याद करना, सरल होना चाहिए। जैसे पौंड्स. वी.आई.पी., रिन, विम, आदि।
- ब्रांड ऐसा हो इससे उत्पाद के लाभ एवं गुणों का पता लगे। यह उत्पाद के कार्यों के अनुरूप होना चाहिए। जैसे रसिका, जेंटील, प्रोमिस, माई फेयरलेडी एवं बूस्ट।
- ब्रांड नाम भिन्नता लिए होना चाहिए जैसे लिरिल स्पिरिट, सफारी, जोडियक।
- बरांड नाम ऐसा हो कि उसे पैकिंग, लेबलिंग को आवश्यकताओं, विज्ञापन के विभिन्न माध्यम एवं विभिन्न भाषाओं में अपनाया जा सके।
- ब्रांड का नाम पर्याप्त लोच वाला हो जिससे कि उत्पाद श्रृंखला में जिन नए उत्पादों को जोड़ा जाए उनके लिए भी इसे उपयोग में लाया जा सके। जैसे- मैगी, कोलगेट।
- इसका पंजीयन कराया जा सके तथा इसको कानूनी संरक्षण मिल सके।
- चयन किया गया नाम टिकाऊ होना चाहिए अर्थात् यह सदाबहार होना चाहिए।
- पैकेजिंग (Packaging): पैकेजिंग का अर्थ है किसी उत्पाद के डब्बे के आवरण को डिजाइन करना एवं उसका उत्पाद कार्य। पैकेजिंग की कई उत्पादों के सफल विपणन अथवा इसकी असफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है विशेषता उपभोक्ता अस्थाई उत्पाद। सत्य यह है कि बीते वर्षों में कुछ सफल उत्पादों को सफलता के कारणों का विश्लेषण करें तो पता लगेगा कि इसमें पैकेजिंग की भी भूमिका है। उदाहरण के लिए मैगी नूडल, अंकल चिप्स एवं क्रैक्स वैफर्स जैसे पदार्थों की सफलता का यह एक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है।
- पैकेजिंग के स्तर (Levels of Packaging): पैकेजिंग के तीन स्तर होते हैं। ये इस प्रकार हैं:-
- प्राथमिक पैकेज (Primary Packaging)- इसका अभिप्राय उत्पाद की सीधी पैकेजिंग से है। कुछ मामलों में प्राथमिक पैकेज में ही वस्तुओं को तब तक रखा जाता है जब तक कि उपभोक्ता उनका उपभोग न करे (जैसे मोजों के लिए प्लास्टिक के पैकेट) जबकि कुछ मामलों में उत्पाद के समाप्त होने तक उसे इन्हीं में रखा जाता है जैसे टूथपेस्ट की ट्यूब, माचिस की डब्बी आदि।
- द्वितीयक पैकेजिंग (Secondary Packaging)- यह सुरक्षित रखने के लिए एक अतिरिक्त परत होती है जिसे उस समय तक रखा जाता है जब तक कि इसका उपयोग प्रारंभ न हो जाए जैसे शेविंग क्रीम की ट्यूब साधारणतया गत्ते के बक्से में रखी होती है। जब उपभोक्ता शेविंग क्रीम को प्रयोग करना प्रारंभ करता है तो वह बाँक्स को तो फेंक देता है लेकिन प्राथमिक ट्यूब को रखें रखता है।
- परिवहन के लिए पैकेजिंग (Transportation Packaging)- इससे अभिप्राय एक और पैकेजिंग से है जो संग्रहण, पहचान अथवा परिवहन के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए एक टूथपेस्ट निर्माता वस्तुओं को फुटकर विक्रेता को 10, 20 अथवा 30 की इकाई की तह लगाकर बक्सों में भेजता है।
- लेबलिंग (Labelling): लेबल उत्पाद के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हैं जैसे उत्पाद के घटक. उपयोग पद्धति आदि। लेबल के विभिन्न कार्य नीचे दिए गए हैं:-
- उत्पाद का विवरण एवं विषय वस्तु (Description of the Product and its Contents)- लेबल का एक महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद इसकी उपयोगिता, उपयोग करने में सावधानियाँ तथा इसके घटकों का वर्णन होता है।
- उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना (Identification of the Product and Brand) : लेबल का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद का ब्रांड नाम उसके पैकेज पर छपा है जैसे बिस्कुट, पोटेटो चिप्स। इससे अनेक पैकेजों में से अपने पसंद के ब्रांड की पहचान की जा सकती है। अन्य सामान्य समान सूचनाएँ जो लेबलों पर दी जाती हैं वे हैं निर्माता का नाम, पता, पैक करते समय वजन, उत्पादन तिथि अधिकतम फुटकर मूल्य एवं बैच संख्या।
- उत्पादों का श्रेणीकरण (Grading of the Product)- एक और महत्त्वपूर्ण कार्य जो लेबल करते हैं वह है उत्पाद को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करना। कभी-कभी विपणनकर्ता उत्पाद को विशिष्टताओं अथवा गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांट देते हैं। उदाहरण के लिए बालों के कंडीशनर का एक लोकप्रिय ब्रांड अलग-अलग प्रकार के बालों के लिए अलग-अलग प्रकार का है जैसे 'सामान्य बाल' एवं अन्य वर्ग। चाय की विभिन्न किस्मों के कुछ ब्रांड पीले, लाल एवं हरे लेबल वर्गों में बाँटकर बेचे जाते हैं।
- उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता (Helps in Promotion of the Product): लेबल का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य है- सही रूप से अनुरूपित लेबल ध्यान आकर्षित करता है एवं इसके कारण भी लोग वस्तु का क्रय करते हैं। उदाहरण के लिए एक शेविंग क्रीम के पैकेज के लेबल पर लिखा होता है, '40 प्रतिशत अतिरिक्त मुफ्त' या फिर एक 'टूथपेस्ट के पैकेट पर लिखा होता है, इसके भीतर टूथब्रश बिल्कुल मुफ्त' अथवा 15 रु. बचाएँ।
- कानून सम्मत जानकारी देना (Providing Information required by Law) - लेबलिंग का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य कानूनी रूप से अनिवार्य सूचना देना है। जैसे सिगरेट अथवा पान मसाले के पैकेटों पर संवैधानिक चेतावनी, "सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।"
- मूल्य निर्धारण (Price Mix): मूल्य क्रेता द्वारा भुगतान की गई अथवा विक्रेता द्वारा प्राप्त की गई वह राशि है जो वह उत्पाद अथवा सेवा के क्रय के बदले में देता है। किसी भी फर्म द्वारा वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में निर्धारण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अधिकांश विपणनकर्ता अपनी वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य निश्चित करने को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं।
- मूल्य/कीमत निर्धारण के निर्धारक तत्व (Factors Determining Fixation of Price):
- वस्तु की लागत- किसी वस्तु अथवा सेवा के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्वों में से एक महत्त्वपूर्ण तत्व इसकी लागत है। इस लागत में वस्तु के उत्पादन, वितरण एवं विक्रय की लागत सम्मिलित होती है। लागत वह न्यूनतम अथवा आधार मूल्य होता है जिस पर वस्तु को बेचा जा सकता है। साधारणतया सभी विपणन इकाइयाँ अपनी पूरी लागत को अवश्य वसूलना चाहती हैं।
- उपयोगिता एवं माँग- क्रेता अधिक से अधिक उतना भुगतान करने को तैयार होगा जितनी कि कम से कम मूल्य के बदले में प्राप्त उत्पाद की उसके लिए उपयोगिता है। उधर विक्रेता कम से कम लागत की वसूली करना चाहेगा। माँग के नियम के अनुसार उपभोक्ता ऊँची कीमत की तुलना में कम मूल्य पर अधिक मात्रा में कार्य करते हैं।
- बाजार में प्रतियोगिता की सीमा- किसी उत्पाद का मूल्य तय करने से पहले प्रतियोगियों के मूल्य एवं उनकी संभावित प्रतिक्रिया को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। मूल्य निर्धारण से पहले प्रतियोगी उत्पादों का मूल्य ही नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता एवं अन्य लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- सरकार एवं कानूनी नियम- मूल्य निर्धारण में अनुचित व्यवहार के विरुद्ध जन साधारण के हितों की रक्षा के लिए, सरकार हस्तक्षेप कर वस्तुओं के मूल्यों का नियमन कर सकती है। किसी भी उत्पाद को सरकार आवश्यक वस्तु घोषित कर उसके मूल्य का नियमन कर सकती है।
- मूल्य निर्धारण का उद्देश्य- यदि फर्म फैसला लेती है कि अल्प अवधि में अधिक लाभ कमाया जाए तो यह अपने उत्पादों का अधि कतम मूल्य लेगी। लेकिन यह चाहती है कि दीर्घ अवधि में अधिकतम कुल लाभ प्राप्त किया जाए तो यह प्रति इकाई कम मूल्य रखेंगी जिससे कि यह बाजार को बड़े भाग पर कब्जा कर सके तथा बढ़ी हुई बिक्री द्वारा अधिक लाभ कमा सके।
- विपणन की पद्धतियाँ- मूल्य निर्धारण प्रक्रिया पर विपणन के अन्य घटक, जैसे वितरण प्रणाली, विक्रयकर्ताओं को गुणवत्ता, विज्ञापन की गुणवत्ता एवं कितना विज्ञापन किया गया है, विक्रय संवर्धन के कार्य, पैकेजिंग किस प्रकार की है, उत्पाद की अन्य उत्पादों से भिन्नता. उधार की सुविधा एवं ग्राहक सेवा, का भी प्रभाव पड़ता है। उप्युक्त तत्वों में किसी भी एक में विशिष्टता प्राप्त करने पर कंपनी को प्रतियोगिता को ध्यान में रखकर अपने उत्पादों को कीमत निश्चित करने में स्वतंत्रता मिल जाती है।
- भौतिक वितरण : भौतिक वितरण में वे सभी क्रियाएँ आती हैं जो वस्तुओं को निर्माता से ले जाकर ग्राहक तक पहुँचाने के लिए आवश्यक हैं। भौतिक वितरण में सम्मिलित महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं परिवहन, भंडारण, माल का रख-रखाव एवं स्कंध नियंत्रण। ये क्रियाएँ भौतिक वितरण के प्रमुख घटक हैं।
- आदेश का प्रक्रियन : क्रेता विक्रेता संबंधों में आदेश देना पहला चरण है। उत्पाद का प्रवाह वितरण के विभिन्न माध्यमों से ग्राहक की ओर होता है जबकि आदेश इसके विपरीत दिशा में चलता है अर्थात् ग्राहक से निर्माता की ओर। एक अच्छी वितरण प्रणाली वह है जिसमें आदेश की पूर्ति सटीक एवं शीघ्र होती है। ऐसा न होने पर वस्तुएँ ग्राहक के पास देर से पहुँचेंगी या गलत मात्रा में वर्णन के अनुसार नहीं होगी इससे ग्राहक असंतुष्ट होगा जिससे व्यवसाय को हानि होगी तथा ख्याति की क्षति होगी।
- परिवहन- परिवहन वस्तु एवं कच्चमाल को उत्पादन बिंदु से विक्री तक ले जाने का माध्यम है। यह वस्तुओं के भौतिक वितरण के प्रमुख तत्वों में से एक है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वस्तुओं के भौतिक रूप से उपलब्ध कराए बिना बिक्री कार्य संपूर्ण नहीं हो सकता।
- भंडारण- भंडारण का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं को उचित स्थान पर रखना एवं उनके संग्रहण को व्यवस्था करना है। क्योंकि वस्तु के उत्पादन के समय और उसके उपभोग के समय में अंतर हो सकता है। इसलिए भंडारण की आवश्यकता होती है।
- संगृहित माल पर नियंत्रण- भंडारण संबंधित निर्णय से स्टॉक में रखे माल के संबंध में निर्णय जुड़ा है जो कई निर्माताओं की सफलता की कुंजी है विशेषतः उन मामलों में जिनमें प्रति इकाई लागत बहुत ऊँची है। स्टॉक में रखे माल के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णय इस संबंध में लेना है कि इसका स्तर क्या हो। जितनी अधिक मात्रा स्टॉक में रखे माल की होगी उतनी हो अच्छी सेवा ग्राहक कर पायेंगे लेकिन माल को स्टॉक में रखने की लागत एवं ग्राहक सेवा में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
- प्रवर्तन : दो उद्देश्य ग्राहकों को वस्तु के संबंध में सूचित करने तथा उन्हें इसको खरीदने के लिए तैयार करने के लिए संप्रेषण का उपयोग करना प्रवर्तन कहलाता है। दुसरे शब्दों में प्रवर्तन विपणन मिश्रण का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है जिसके माध्यम से विपणनकर्ता बाजार में वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करते हैं।

- विज्ञापन : यह अव्यक्तिक संप्रेषण होता है जिसका भुगतान विपणनकर्ता (प्रायोजक) कुछ वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के लिए करते हैं विज्ञापन के सर्वसाधारण माध्यम समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन एवं रेडियो हैं।
विज्ञापन की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- भुगतान स्वरूप- विज्ञापन संप्रेषण का वह स्वरूप है जिसमें उसके लिए भुगतान किया जाता है। अर्थात् विज्ञापनकर्ता जनता के साथ संप्रेषण की लागत को वहन करता है।
- अव्यक्तिक - व्यक्तियों एवं विज्ञापनकर्ता प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे के संपर्क में नहीं आते हैं। इसीलिए इसे प्रवर्तन की अव्यक्तिक पद्धति कहते हैं। विज्ञापन स्वयं से बातचीत पैदा करता है न कि संवाद।
- चिह्नित विज्ञापनदाता- विज्ञापन निश्चित व्यक्ति अथवा कंपनियां करती हैं जो विज्ञापन में शाम करती हैं तथा इसकी लागत को भी वहन करते हैं।
- बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच - विज्ञापन एक ऐसा माध्यम जिसके माध्यम से दूर-दूर फैले बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचा जा सकता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय दैनिक में दिया गया विज्ञापन इसके लाखों पाठकों तक पहुँचता है।
- ग्राहक संतुष्टि एवं विश्वास में वृद्धि - विज्ञापन संभावित क्रेताओं में विश्वास पैदा करता है क्योंकि इससे वे अधिक सहजता का अनुभव करते हैं। यह उत्पाद की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है इसलिए अधिक संतोष का अनुभव करते हैं।
- स्पष्टता - कला, कंप्यूटर डिजाइन एवं ग्राफिक्स में विकास के साथ विज्ञापन संप्रेषण का सशक्त माध्यम में विकसित हो चुका है। विशेष प्रभावोत्पादन के कारण सरल उत्पाद एवं संदेश भी बहुत आकर्षक लगने लगते हैं।
- मितव्ययिता - विज्ञापन बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचने के लिए कम खर्चीला संप्रेषण का साधन है। व्यापकता के कारण विज्ञापन का कुल खर्च संप्रेषण द्वारा बनाए संबंधों में बड़ी संबंधों में बाँट दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप प्रति लक्षित इकाई लागत कम हो जाती है।
- लागत में वृद्धि- विज्ञापन के विरोधियों का तर्क है कि विज्ञापन के कारण उत्पादन की लागत में अनावश्यक रूप से वृद्धि होती है जो अंतोगत्वा बढ़े हुए मूल्य के रूप में क्रेता को ही वहन करनी होती है।
- सामाजिक मूल्यों में कमी- विज्ञापन की एक और आलोचना है कि इससे सामाजिक मूल्यों की अवहेलना होती है तथा भौतिकवाद को बढ़ावा मिलता है इससे लोगों में असंतोष पैदा होता है क्योंकि लोगों को नए-नए उत्पादों के संबंध ज्ञान होता है तब वह अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हो जाते हैं कुछ विज्ञापन जीवन शैली दर्शाते हैं जिनको सामाजिक मान्यता नहीं मिलती।
- क्रेताओं में असमंजस- विज्ञापन में एक और दोष बताया जाता है कि इतने अधिक उत्पादों का विज्ञापन होता है और सभी समान दावा करते हैं जिससे क्रेता असमंजस में पड़ जाता है कि इनमें से कौन सत्य है तथा किस पर विश्वास किया जाए।
- घटिया उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहन- विज्ञापन श्रेष्ठ एवं घटिया वस्तुओं में अंतर नहीं करता है तथा लोगों को घटिया वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित करता है।
- वैयक्तिक विक्रय : वैयक्तिक विक्रय में बिक्री के उद्देश्य से एक या एक से अधिक संभावित ग्राहकों से बातचीत के रूप में संदेश का मौखिक प्रस्तुतिकरण समाहित है। यह संप्रेषण का वैयक्तिक स्वरूप है कंपनियाँ बिक्री के उद्देश्य से संभावित ग्राहकों से संपर्क के लिए, उत्पाद के संबंध में जागरुकता पैदा करने के लिए तथा उत्पाद की पसंद विकसित करने के लिए विक्रय कविताओं की नियुक्ति करती हैं।
- वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ :
- व्यक्तित्व स्वरूप- वैयक्तिक विक्रय में आमने-सामने बातचीत होती है इससे विक्रेता एवं क्रेता के बीच पारस्परिक संबंध बनते हैं।
- संबंधों का विकास- वैयक्तिक विक्रय में विक्रयकर्ता संभावित ग्राहक से व्यक्तिगत संबंध बनाता है जो बिक्री में सहायक होता है।
- लोचपूर्णता - वैयक्तिक विक्रय में बड़ी सीमा तक लोच होती है। विक्रय का प्रस्तुतीकरण एक-एक ग्राहक की आवश्यकतानुसार समायोजित किया जा सकता है।
- प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर - वैयक्तिक विक्रय में सीधा संवाद होता है इससे ग्राहक से सीधे ही प्रत्युत्तर प्राप्त कर सकते हैं तथा ग्राहकों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया जा सकता है।
- न्यूनतम अपव्यय - ग्राहक से संपर्क करने से पहले कंपनी निर्णय ले लेती है। किन ग्राहकों पर ध्यान देना है इससे श्रम के व्यर्थ जाने को न्यूनतम किया जा सकता है।
- वैयक्तिक विक्रय की भूमिका
- संवर्धन की प्रभावी पद्धति- यह संवर्धन का बहुत प्रभावी तकनीक है। यह संभावित ग्राहकों को उत्पाद के गुण बताकर प्रभावित करता है। जिससे बिक्री बढ़ती है।
- लोचपूर्ण तकनीक- प्रवर्तन की अन्य तकनीक जैसे विज्ञापन, विक्रय संवर्धन की तुलना में वैयक्तिक विक्रय अधिक लोचपूर्ण है। इसके कारण व्यवसायी क्रय की अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग तरह के प्रस्ताव रख सकता है।
- श्रम का न्यूनतम अपव्यय- वैयक्तिक विक्रय में बिक्री प्रवर्तन की अन्य तकनीकों की तुलना में श्रम के व्यर्थ जाने की संभावना न्यूनतम होती है। इससे व्यवसायी की बिक्री के प्रयत्नों में मितव्ययता आती है।
- ग्राहक को प्रेरित करना- वैयक्तिक विक्रय ग्राहकों को नए उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करता है इससे वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति और अच्छे ढंग से कर सकता है। तथा अपने जीवन स्तर को और ऊँचा उठा सकता है।
- स्थाई संबंध- वैयक्तिक विक्रय विक्रयक्ता एवं ग्राहक के बीच स्थाई संबंध विकसित करने में सहायक होता है जो व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
- व्यक्तिगत तालमेल- ग्राहकों से व्यक्तिगत तालमेल बैठने से व्यवसाय की प्रतियोगी शक्ति में वृद्धि होती है।
- परिचय के समय भूमिका- नए उत्पाद को परिचित करते समय वैयक्तिक विक्रय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह ग्राहकों को उत्पादक के गुणों से परिचित कराती है।
- ग्राहकों से संबंध- विक्रयकर्ता तीन अलग अलग भूमिका निभाते हैं- प्रेरित करना, सूचना प्रदान करना तथा व्यावसायिक इकाई को ग्राहकों से जोड़ना।
- ग्राहकों के लिए महत्त्व :
- आवश्यकताओं की पहचान में सहायक - वैयक्तिक विक्रय ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं की पहचान करने एवं इनकी किस प्रकार से सर्वोत्तम ढंग से संतुष्टि की जा सकती है इसका ज्ञान प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।
- बाज़ार के संबंध में नवीनतम जानकारी - ग्राहकों को मूल्यों में परिवर्तन, उत्पादों की उपलब्धता एवं कमी एवं नए उत्पादों के संबंध में नवीनतम जानकारी प्राप्त होती है जिसके कारण क्रय के संबंध में वह अधिक उचित निर्णय ले सकते हैं।
- विशिष्ट सलाह- ग्राहकों को विभिन्न वस्तु एवं सेवाओं के संबंध विशेषज्ञों की सलाह एवं दिशा निर्देश प्राप्त होता है, जिससे वह और अच्छा क्रय कर सकते हैं।
- ग्राहकों को प्रेरित करना- वैयक्तिक विक्रय ऐसे नए उत्पादों के क्रय के लिए प्रेरित करता है जो उनकी आवश्यकताओं को और अच्छे ढंग से पूरा कर सकती हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके जीवन स्तर में और अधिक सुधार होता है।
- संभावित माँग में परिवर्तन- वैयक्तिक विक्रय दबी हुई माँग को मूर्तरूप प्रदान करता है। इस चक्र के कारण ही समाज की आर्थिक क्रियाओं का पोषण होता है जिससे अधिक रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, आय में वृद्धि होती है, और अधिक वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन होता है। इस रूप में वैयक्तिक विक्रय आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है।
- रोजगार के अवसर- वैयक्तिक विक्रय बेरोजगार नवयुवकों को अधिक आय एवं रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
- जीवनवृत्ति के अवसर - वैयक्तिक विक्रय नौजवान एवं महिलाओं के लिए आकर्षक जीवन-वृत्ति का क्षेत्र है जिसमें यह उन्नति के अवसर, कार्य संतुष्टि, सुरक्षा, सम्मान, विभिन्नता रुचि एवं स्वतंत्रता के अवसर प्रदान करता है।
- विक्रयकर्ताओं का स्थानांतरण- विक्रयकर्ताओं में स्थान परिवर्तन बहुत अधिक होता है जिससे देश में यात्रा एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
- उत्पाद का मानकीकरण- वैयक्तिक विक्रय विभिन्नता लिए हुए समाज में उत्पाद के मानकीकरण एवं उपभोग में एकरूपता में वृद्धि करता है।
- विक्रय संवर्धन : विक्रय संवर्धन से तात्पर्य लघु अवधि प्रेरणाओं से है, जो क्रेताओं को वस्तु अथवा सेवाओं के तुरंत क्रय करने के लिए होती हैं । इनमें विज्ञापन, व्यक्तिक विक्रय एवं प्रचार को छोड़कर कंपनी द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की अन्य सभी प्रवर्तन तकनीक सम्मिलित होती हैं। विक्रय संवर्धन क्रियाओं में नकद छूट, बिक्री प्रतियोगिताएँ, मुफ्त तोहफे एवं मुफ्त नमूनों का वितरण विक्रय संवर्धन अन्य परावर्तन के प्रयत्न जैसे विज्ञापन, व्यक्तिक विक्रय पूरक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
- ध्यानाकर्षण मूल्य - विक्रय संवर्धन क्रियाएँ प्रोत्साहन कार्यक्रमों का उपयोग कर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं।
- नए उत्पाद के अवतरण में उपयोगी - जब भी किसी उत्पाद को बाजार में लाया जाता है तब विक्रय संवर्धन यंत्र बहुत प्रभावी हो सकते हैं। यह लोगों को अपने नियमित खरीद से हटाकर नए उत्पाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है।
- सभी प्रवर्तन विधियों में तालमेल - विषय प्रवर्तन क्रियाओं को इस प्रकार संवारा जाता है कि यह फर्म के व्यक्तिक विक्रय एवं विज्ञापन कार्यों के पूरक का कार्य करें तथा फर्म के बाल मिलाकर प्रवर्तन कार्यों को प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करें।
- विक्रय संवर्धन की सीमाएँ :
- संकट का सूचक - यदि फर्म बार-बार विक्रय संवर्धन का सहारा लेती है तो ऐसा प्रतीत होगा कि या तो फर्म आपनी बिक्री का प्रबंधन भली-भाँति नहीं कर पा रही है या फिर इसके उत्पादों को कोई खरीदना ही नहीं चाहता है।
- उत्पाद की छवि को बिगाड़ना - विक्रय संवर्धन तकनीकों का प्रयोग उत्पाद की छवि को प्रभावित करता है। क्रेताओं को ऐसा लगने लगता है कि शायद उत्पाद अच्छी गुणवत्ता वाला नहीं है अथवा इसका मूल्य उचित नहीं है।
- विक्रय संवर्धन की सामान्य रूप से प्रयोग में आने वाली क्रियाएँ:
- छूट- यह उत्पादों को फालतू अतिरिक्त माल को निकालने के लिए, विशेष मूल्य पर बेचता है।
- कटौती- यह उत्पाद को सूची में दिए गए मूल्य से कम मूल्य पर बेचता है।
- वापसी- मूल्य के कुछ भाग को क्रेता को विक्रय के प्रमाण प्रस्तुत करने पर लौटाना। जैसे खाली फाइल्स अथवा रैपर। यह विधि साधारण तथा खाद्य पदार्थ उत्पादन कंपनियों द्वारा अपनी बिक्री को बढ़ाने के लिए अपनाई जाती है।
- उत्पादों का मिश्रण- किसी एक उत्पाद के क्रय करने पर दूसरे उत्पाद को उपहार स्वरूप देना।
- तुरंत ड्रा एवं घोषित उपहार- उदाहरण के लिए टी.वी. खरीदने पर कार्ड खुरचे अथवा 'पटाखा जोड़ें' तथा उसी समय रेफ्रिजरेटर, टी शर्ट, कंप्यूटर जीतें।
- लक्की ड्रा/किस्मत आज़माएँ- उदाहरण के लिए लक्की ड्रा कूपन पर एक नहाने का साबुन खरीदने पर सोने का सिक्का जीतें।
- उपयोग योग्य लाभ- उदाहरण के लिए, 3,000 रुपए का सामान खरीदें एवं 3,000 रुपए का छुट्टियाँ मनाने का पैकेज मुफ्त प्राप्त करें अथवा 1,000 रुपए से अधिक की पोषाक खरीदने पर अतिरिक्त के लिए छूट का वाउचर प्राप्त करें।
- शून्य प्रतिशत पर पूरा वित्तीयन- इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, ऑटोमोबाइल आदि उपभोक्ता की टिकाऊ वस्तुओं के कई विपणनकर्ताओं की सरल वित्तीयन योजनाएँ होती हैं जैसे 24 आसान किस्तें, आठ किस्तें तुरंत और 16 का भुगतान आज की तिथि के चैकों द्वारा।
- नमूनों का वितरण- किसी नए ब्रांड को बाज़ार में लाते समय संभावित ग्राहकों को वस्तु मुफ्त नमूनों का वितरण जैसे डिटर्जेंट पाउडर अथवा टूथपेस्ट।
- प्रतियोगिता- प्रतियोगिताओं का आयोजन जिनमें कौशल अथवा किस्मत आज़माई समाहित होती है जैसे किसी पहेली को हल करना अथवा कुछ प्रश्नों का उत्तर देना।
- प्रचार : जब भी किसी उत्पाद अथवा सेवा के संबंध में जन समाचार माध्यमों में पक्ष में समाचार आता है तो इसे प्रचार कहते हैं। उदाहरण के लिए माना एक विनिर्माता ऐसा कार इंजन विकसित करने में सफलता प्राप्त कर लेता है जो पेट्रोल के स्थान पर पानी से चलने लगे और टेलीविजन, रेडियो अथवा समाचार पत्र समाचार के रूप में प्रसारित अथवा प्रकाशित करें तो इसे प्रचार कहेंगे क्योंकि इंजन का निर्माता समाचार माध्यमों द्वारा इस उपलब्धि की सूचना देने से लाभांवित होगा लेकिन उसे इसकी कोई कीमत नहीं चुकानी होगी। इस प्रकार से प्रचार की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं -
- प्रचार एक बिना भुगतान का संप्रेषण है। इसमें विपणन इकाई का प्रयोग रूप से कोई खर्च नहीं होता; था
- इसके संचार का कोई निर्दिष्ट सौजन्यकर्ता नहीं होता क्योंकि इसमें संदेश एक समाचार के रूप जाता है।
- जनसंपर्क : जन संपर्क अवधारणा के अनुसार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का प्रयोग करके व कंपनी की साख की सुरक्षा एवं उत्पाद हेतु कार्य करना शामिल है। यह ग्राहकों, शेयरधारकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं, निवेशकों आदि के साथ संबंधों को मजबूत बनाने का माध्यम है। यह समाचारों द्वारा, कॉर्पोरेट जगत के नेताओं द्वारा दिए गये भाषणों के जरिए खेल, संगीत, सेमीनार आदि के आयोजन द्वारा किया जाता है। जन संपर्क अवधारणा बहुत सी कार्यनीतियों का समामेलन है। इसमें स्वतंत्र मीडिया सूत्रों का इस्तेमाल अनुकूल कवरेज पाने के लिए किया जाता है। विशिष्ट उत्पादों, सेवाओं और घटनाओं आदि से लेकर पूर्ण संगठन के ब्रांड को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- प्रेस संपर्क - संगठन के बारे में सूचना को प्रेस में सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है समाचार बनाने हेतु एक कहानी का विकास तथा अनुसंधान कौशल आवश्यक है तथा जनसंचार माध्यमों को प्रैस प्रकाशनी स्वीकृत कराना एक कठिन कार्य है। जनसंपर्क विभाग कंपनी के बारे में सही तथ्य तथा सही तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु जनसंचार माध्यमों के संपर्क में रहता है अन्यथा यदि समाचार अन्य स्त्रोतों से लिए जाएं तो वे विकृत हो सकते हैं।
- उत्पाद प्रचार - नये उत्पादों के प्रचार हेतु विशेष प्रयास आवश्यक होते हैं तथा कंपनी को ऐसे कार्यक्रम प्रायोजित करने होते हैं। जनसंपर्क विभाग ऐसी घटनाओं के प्रायोजनों का प्रबंध करता है। समाचार सम्मेलनों, संगोष्ठियों तथा प्रदर्शनियों जैसी खेल-कूद तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आयोजन द्वारा कंपनी अपने नये उत्पादों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकती है।
- निगमित सम्प्रेषण - जनता तथा संगठन में कर्मचारियों के साथ सम्प्रेषण के माध्यम से संगठन को अपनी छवि को संवर्धित करने की आवश्यकता होती है यह सामान्यतः संवाद पत्र, वार्षिक प्रतिवेदनों, विवरणिकाओं, लेखों तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से किया जाता है। लक्ष्य बाजारों तक उनकी पहुँच तथा प्रभाव हेतु कंपनियां इन साधनों पर विश्वास करती हैं। व्यापार संघों अथवा व्यापार मेलों की सभाओं में कंपनियों के कार्यकारियों द्वारा दिए भाषणों से कंपनी की छवि वर्धित होती है। यहाँ तक कि टी.वी. चैनलों के साथ साक्षात्कार तथा जनसंचार द्वारा पूछताछ के प्रत्युत्तर देना जनसंपर्क बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है।
- लॉबी प्रचार - व्यवसाय तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित नीतियों के बारे में संगठन को सरकारी कर्मचारीयों, कंपनी मामलों के मंत्री उद्योग तथा वित्त से व्यवहार करना पड़ता है। औद्योगिक, दूरसंचार तथा कराधान नीयिों के निर्माण के समय सरकार मुख्य हित धारिकों के विचार आमंत्रित करती है तथा वाणिज्य एवं व्यापार संघों के साथ स्वस्थ संबंध रखना चाहती है। जनसंपर्क विभाग उन विनियमों का संवर्धन अथवा विरोध करने में वास्तव में क्रियाशील होता है जो उस कंपनी/संगठन को प्रभावित करते हैं।
- परामर्श - जनसंपर्क विभाग प्रबंधन को उन सामान्य मामलों में परामर्श देता है जो जनता को प्रभावित करते हैं। तथा किसी विशेष मामले पर कंपनी की स्थिति को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण, वन्यजीवन, बाल-अधिकार, शिक्षा इत्यादि जैसे कारणों में समय एवं धन का योगदान देकर कंपनी क्या बना सकती है। ये कारण-संबंधी क्रियाएँ जनसंपर्क बढ़ाने तथा ख्याति निर्माण में सहायता करते हैं।
इसके अतिरिक्त, अच्छे जनसंपर्क रखने से निम्नलिखित विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने मे सहायता मिलती है :
- जागरूकता पैदा करना - जनसंपर्क विभाग द्वारा जनसंचार में उत्पाद को कहानियों तथा नाटकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। बाजार में उत्पाद के पहुँचने से पूर्व अथवा जनसंचार में विज्ञापन से पूर्व इससे बाज़ार में स्थान बनाया जा सकता है। यह सामान: लक्षित ग्राहकों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
- विश्वास पैदा करना - यदि जनसंचार माध्यमों, चाहे वह प्रिंट हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक, में एक उत्पाद के बारे में कोई समाचार आता है तो वह सदैव विश्वसनीय माना जाता है तथा लोग उस उत्पाद पर विश्वास करते हैं क्योंकि वह समाचारों में है।
- विक्रय-कर्मियों को प्रेरणा - यदि उत्पाद के प्रमोचन (लॉन्च) से पूर्व उसके बारे में फुटकर विक्रेताओं तथा डीलरों ने पहले से सुन रखा हो तो, विक्रय कर्मियों के लिए उनसे सौदा करना आसान हो जाता है। फुटकर विक्रताओं तथा डीलरों द्वारा भी यह महसूस किया जाता है कि इससे अंतिम उपभोक्ताओं को उत्पाद बेचना आसान हो जाता है।
- सवंर्द्धन लागतों में कमी - अच्छे जनसंपर्क बनाये रखने की लागत विज्ञापन तथा प्रत्यक्ष डाक से काफी कम होती है। जनसपंर्क माध्यमों को संगठन तथा उसके उत्पाद के बारे में स्थान अथवा समय के लिए सहमत करने हेतु सम्प्रेषण, तथा अंतरवैयक्तिक कौशलों की आवश्यकता होती है।