Class 12th व्यवसाय अध्ययन
(Business Studies)
Chapter 5
संगठन (Organising)
- संगठन की अवधारणा (Concept of Organising):-
"संगठन एक प्रक्रिया है जो कार्य को समझने तथा वर्गीकरण करने, अधिकार अंतरण को परिभाषित करने तथा मनुष्यों को अत्यधिक कार्य कुशलता के साथ, लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए संबंध स्थापित करता है।"
‘लुइस ऐलन’
"संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपक्रम के कार्यों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंपकर उनके अधिकार संबंधों को निश्चित किया जाता है।"
‘ध्यो हेमैन’
- संगठन की विशेषताएं (Features of organising):-
- कार्य विभाजन (Division of Work): कार्य-विभाजन संगठन का आधार होता है अर्थात कार्य-विभाजन के बिना संगठन नहीं हो सकता। कार्य विभाजन के अंतर्गत व्यवसाय के पूरे काम को अनेक विभागों में विभाजित कर दिया जाता है। अत्येक विभाग के कार्य के पुनः उपकार्यों में विभाजित कर दिया जाता है।
- समन्वय (Coordination): संगठन के अंतर्गत विभिन्न लोगों को अलग-अलग काम सौंपे जाते हैं लेकिन सभी का प्रयास एक ही होता है- उपक्रम के उद्देश्यों को पूरा करना। संगठन ऐसी व्यवस्था करता है कि सभी लोगों का काम अलग-अलग होते हुए भी एक-दूसरे में संबंधित होता है। परिणामत: समन्वय स्थापित करने में सहायता मिलती है।
- अनेक व्यक्ति (Plurality of Persons): संगठन अनेक व्यक्तियों का समूह होता है जो सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए एकत्रित होते हैं। एक अकेला व्यक्ति संगठन का निर्माण नहीं कर सकता।
- सामान्य उद्देश्य (Common Objectives): संगठन के अनेक अंग होते हैं, सभी के अलग-अलग कार्य होते हैं लेकिन सभी एक सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर रहते हैं।
- संगठन प्रबंन्ध का एक यंत्र है (Organisation is a Machine of Management): संगठन को प्रबन्ध का यंत्र माना जाता है। यह एक ऐसी मशीन है जिसमें यदि एक पुर्जा भी खराब हो जाए अथवा सही जगह पर न लगाया जाए तो मशीन काम नहीं करेगी अर्थात यदि क्रियाओं के विभाजन में गलती हो जाए या पदों की स्थापना ठीक प्रकार से न हो तो संपूर्ण प्रबन्ध व्यवस्था फेल हो जाएगी।
- संगठन का महत्व (Importance of Organising):-
- विशिष्टीकरण का लाभ (Benefits of specialisation): संगठन के अंतर्गत संपूर्ण कार्यों को अनेक उपकार्यों में बांट दिया जाता है। सभी उपकार्यों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है जो एक ही कार्य को बार-बार करके उसके विशेषज्ञ बन जाते हैं। इस प्रकार कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य होने लगता है और संस्था को विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।
- कार्य संबंधों में स्पष्टता (Clarity in working Relationships): संगठन कर्मचारियों के मध्य कार्य संबधों को स्पष्ट करता है। इससे स्पष्ट होता है कि कौन किसको रिपोर्ट करेगा। परिणामत: संदेशवाहन प्रभावी होता है। यह उत्तरदेयता निर्धारण में भी सहायक है।
- संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum Utilisation of Resources): संगठन प्रक्रिया के अंतर्गत कुल काम को अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक क्रिया को करने वाला एक अलग कर्मचारी होता है। परिणामतः संगठन में उपलब्ध सभी संसाधनों (जैसे - माल, मशीन, वित्त, मानव-शक्ति, आदि) का अनुकूलतम उपयोग संभव होता है।
- परिवर्तन में सुविधा (Adaptation to Change): संगठन प्रक्रिया एक संस्था को इस योग्य बना देती है कि वह कर्मचारियों के पद से संबंधित किसी भी परिवर्तन को आसानी से सहन कर लेती है ऐसा ऊपर से नीचे सभी प्रबन्धकों का एक स्पष्ट अधिकार श्रृंखला में बंधे होने के कारण होता है।
- प्रभावी प्रशासन (Effective Administration): प्रायः देखा जाता है कि प्रबंधकों में अधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। संगठन प्रक्रिया प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं व प्राप्त अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख करती है यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक किस कार्य के लिए किसको आदेश देगा। परिणामतः प्रभावी प्रशासन संभव होता है।
- कर्मचारियों का विकास (Development of Personnel): संगठन प्रक्रिया के अंतर्गत अधिकार अंतरण (Delegation of Authority) किया जाता है। इसमें अधीनस्थों को निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होते हैं । इस स्थिति का लाभ उठाते हुए वे नवीनतम विधियों की खोज करते हैं वह उन्हें लागू करते हैं। परिणाम: उनका विकास होता है।
- विस्तार एवं विकास (EXpansion and Growth): संगठन प्रक्रिया के अंतर्गत कर्मचारियों को प्राप्त निर्णय स्वतंत्रता से उनका विकास होता है। वे नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए उपक्रम का विस्तार किया जा सकता है। विस्तार से उपक्रम की लाभ क्षमता बढ़ती है जो उसके विकास में सहायक होती है।
- संगठन प्रक्रिया (Organising Process):
- कार्य की पहचान एवं विभाजन (Identification and Division of Work): संगठन प्रक्रिया का प्रथम चरण कार्य की पहचान एवं बटवारा करना है। इस चरण पर कुल काम (Total Work) को अनेक क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है।
- विभागीकरण (Departmentalization): संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न क्रियाओं का निर्धारण कर लेने के बाद क्रियाओं का विभागीकरण किया जाता है। विभागीकरण के अंतर्गत एक समान क्रियाओं का एक समूह बना कर (इसे समूहीकरण कहते हैं) एक विशेष विभाग को सौंप दिया जाता है।
- काम सौंपना Assignment of Duties): इस चरण पर यह निश्चित किया जाता है कि प्रत्येक पद या व्यक्ति को क्या क्या काम करने है, जैसे क्रय प्रबंधक को वस्तुओं को क्रय करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाएगा। काम सौंपते समय काम की प्रकृति तथा व्यक्ति की योग्यता का मिलान करना आवश्यक है।
- सूचनाएं प्रेषित करने के संबंध स्थापित करना (Establishing Reporting Relations): जब दो या अधिक व्यक्ति एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं तो उनके मध्य संबधों की स्पष्ट व्याख्या की जानी जरूरी है। इन संबंधों को Reporting Relations कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि कौन उसका अधिकारी (Superior) है तथा कौन अधीनस्थ (Subordinate)|
- संगठन ढ़ांचा (Organisation Structure):-
संगठन ढांचे, एक संस्था में विभिन्न पदों एवं उन पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों के मध्य संबंधों के स्वरूप होते है।
- संगठन ढाँचों के प्रकार (Types of Organisation Structure):-
संगठनों द्वारा अपनाये गए संगठन ढाँचों के रूप उनकी प्रकृति तथा क्रियाओं के रूपों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। संगठनीय ढाँचों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है जो निम्नलिखित हैं-
1. कार्यात्मक संगठन ढाँचा
2. प्रभागीय संगठन ढाँचा
- कार्यात्मक संगठन ढांचा (Functional Organisation Structure):-
कार्यात्मक संगठन ढांचे का अर्थ पूरी संस्था को उसके द्वारा की जाने वाली मुख्य क्रियाओं कार्यों के आधार पर विभाजित करने से है।

- कार्यात्मक संगठन के लाभ (Merits of Functional organisation):-
- विशिष्टीकरण के लाभ (Benefits of Specialisation): पूरी कम्पनी को मुख्य क्रियाओं के आधार पर अनेक विभागों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक विभाग का कार्य एक विशेषज्ञ प्रबन्धक की देख रेख में होता है। इस प्रकार कम समय में अधिक व अच्छा काम किया जाता है। परिणामतः विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।
- समन्वय की स्थापना (Coordination is Established): एक विभाग में काम करने वाले सभी व्यक्ति अपनी-अपनी जॉब के विशेषज्ञ होते हैं। इससे विभागीय स्तर पर समन्वय स्थापित करने में आसानी रहती है।
- प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि (Managerial Efficiency is Increased): एक ही काम को बार-बार किया जाता है इसलिए यह प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि में सहायक है। इसके फलस्वरूप, लाभों में वृद्धि होती है।
- प्रयत्नों की न्यूनतम दोहराई (Minimal Duplication of Efforts): संगठन के इस प्रारूप में प्रयत्नों की अनावश्यक दोहाई समाप्त हो जाती है। जैसे- वित्त का कार्य केवल वित्त विभाग द्वारा किया जाता है। अर्थात दो या अधिक वित्त विभाग बनाने की जरूरत नहीं है। इस प्रकार मानवीय व अन्य साधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग संभव होता है।
- प्रशिक्षण में सहायक (Training is Facilitated): यह प्रशिक्षण में सहायक है क्योंकि इसके अंतर्गत कर्मचारियों के सीमित कौशल पर ही ध्यान केंद्रित होता है। उदाहरण के लिए, वित्त विभाग के कर्मचारियों को केवल वित्तीय मुद्दों से संबंधित प्रशिक्षण ही दिया जाता है।
- सभी कार्यों को समान महत्व (Equal Weightage to all Functions): यह सुनिश्चित करता है कि सभी कार्यो/ क्रियाओं को समान महत्व दिया जाए।
- कार्यात्मक संगठन की सीमाएं अथवा दोष (Limitations or Disadvantages of Functional Organisation):-
- संगठनात्मक उद्देश्यों की अवहेलना (Ignorance of Organisational Objectives): प्रत्येक विभागीय अध्यक्ष अपनी इच्छानुसार काम करता है। वे हमेशा अपने विभागीय उद्देश्यों को ही महत्त्व देते हैं। अत: संगठनात्मक उद्देश्यों की हानि होती है।
- अंतर्विभागीय समन्वय में कठिनाई (Difficulty in Inter- departmental Coordination): सभी विभागीय अध्यक्ष अपनी मनमानी से काम करते हैं। निसंदेह इसमें विभाग के अंदर समन्वय स्थापित होता है लेकिन इससे अंतर्विभागीय समन्वय कठिन हो जाता है।
- हितों में टकराव (Conflict of Interest): प्रत्येक विभागीय अध्यक्ष प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। अपने इस अहम को संतुष्ट करने के लिए वे अधिकाधिक संसाधनों की मांग करते हैं। यह स्थिति संघर्ष उत्पन्न करती है।
- सम्पूर्ण विकास में बाधा (Hurdle in Complete development): यह पद्धति कर्मचारियों के पूर्ण विकास में बाधक है। इसके अंतर्गत प्रत्येक कर्मचारी कुल जॉब के एक छोटे से भाग का ही विशेषज्ञ बन पाता है।
- कार्यात्मक संगठन की उपयोगिता (Suitability of Functional Organisation):-
- जहां व्यावसायिक इकाई का आकार बड़ा हो।
- जहां विशिष्टीकरण आवश्यक है।
- जहा अधिकारों का विकेंद्रीकरण आवश्यक हो।
- जहां मुख्य रूप से एक ही उत्पाद बेचा जाता हो (एक से अधिक उत्पादों की स्थिति में डिविजनल संगठन उपयोगी रहता है।
- डिविजनल अथवा प्रभागीय संगठन ढांचा (Divisional Organisation Structure):-
डिविजनल संगठन ढांचे का अर्थ पूरी संस्था को उसके द्वारा उत्पादित किए जाने वाले मुख्य उत्पादों के आधार पर विभक्त करने से है।

- डिविजनल/प्रभागीय संगठन के लाभ (Merits of Divisional Organisation):-
- डिविजनल अध्यक्षों का विकास (Development of Divisional Heads): प्रत्येक डिविजनल अध्यक्ष अपने उत्पाद से संबंधित सभी कार्य; जैसे- क्रय, विक्रय, विज्ञापन, उत्पाद, वित्त, आदि को देखता है। यह चीज एक डिविजनल अध्यक्ष में विभिन्न कौशल विकसित करने में सहायक होती है।
- डिविजनल परिणामों को आंका जा सकता है(Divisional results can be Assessed): प्रत्येक डिविजन की सभी क्रियाएं स्वतंत्र रूप से की जाती है। अत: प्रत्येक डिविजन के लाभ-हानि को अलग-अलग आंका जा सकता है। इसी आधार पर, अलाभदायक डिविजन को बंद करने का निर्णय लिया जा सकता है।
- शीघ्र निर्णयन (Quick Decision-making): प्रत्येक डिविजन अपने-आप में स्वतंत्र होता है। एक डिविजन का प्रबन्धक अपने डिविजन के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है। उसे अन्य डिविजन प्रबन्धकों से सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है। अतः निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं और प्रभावी होते हैं।
- विस्तार में सरलता (Easy Expansion): प्रत्येक उत्पाद के लिए एक अलग डिविजन स्थापित किया जाता है। यदि एक कम्पनी एक नया उत्पाद बाजार में लेकर आना चाहती है तो ऐसा पहले से स्थापित डिविजनों को छेड़े बिना सरलता से किया जा सकता है। अत: संस्था का विस्तार करना सरल है।
- डिविजनल/प्रभागीय संगठन की सीमाएं अथवा दोष (Limitations or Disadvantage of Divisional Organisation):-
- डिविजनल अध्यक्षों के मध्य संघर्ष (Conflicts between Divisional Heads): प्रत्येक डिविजनल अध्यक्ष अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। अपने इस अहम को संतुष्ट करने के लिए वे अधिकाधिक संसाधनों की मांग करते हैं। यह स्थिति उनके मध्य संघर्ष उत्पन्न करती है।
- कार्यों की दोहराई (Duplicity of Functions): प्रत्येक डिविजन के लिए सभी क्रियाएं (जैसे- उत्पादन, विपणन, वित्तीय, सेविवर्गीय, आदि) की आवश्यकता होती है। इससे प्रयत्नो/कार्यों की अनावश्यक दोहराई होती है। अतः संसाधनों का दुरूपयोग झोता है और संचालन लागत अनावश्यक रूप से बढ़ती है।
- स्वार्थी प्रवृत्ति (Selfish Attitude): प्रत्येक डिविजन का यह प्रयास रहता है कि वह बढ़िया प्रदर्शन करे। यहां तक कि ऐसा काने के लिए वे अन्य डिविजनों के हितों को भी अनदेखा कर देते हैं। इससे उनकी स्वार्थी प्रवृति झलकती है। परिणामतः उनके ऐसे व्यवहार से पूरी संस्था के हितों को ठेस पहुंचती है।
- डिवीजन संगठन की उपयोगिता ( Suitability of Divisional Organisation):-
- जहां मुख्य उत्पादों की संख्या एक से अधिक हो।
- जहां अलग-अलग निर्माणी तकनीकों एवं विपणन की पद्धतियों की आवश्यकता हो।
- जहां संस्था का आकार काफी बड़ा हो।
- औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन (Formal and Informal Organisation):-
संगठन का ढांचा औपचारिक भी हो सकता है और अनौपचारिक भी। अर्थात संगठन में कार्यरत सभी व्यक्तियों के मध्य सबंध दो प्रकार से स्थापित हो सकते हैं-प्रथम, वे जो निश्चित होते हैं और इनको पहले से ही परिभाषित कर दिया जाता तथा दूसरे, वे जो अनिश्चित होते हैं और पहले से परिभाषित नहीं होते हैं।
- औपचारिक संगठन (Formal Organisation):-
जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाएं समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए जानबूझकर समन्वित की जाती हैं, तब उसे औपचारिक संगठन कहते हैं।
- औपचारिक संगठन के मुख्य लक्षण (Main Characteristics of Formal Organisation):-
- इसमें परिभाषित आपसी संबंध होता है (It has defined Inter-relationship): औपचारिक संगठन एक ऐसी व्यवस्था हैं। जिसमें आपसी संबंधों की स्पष्ट व्याख्या की जाती है तथा सभी को अपने-अपने दायित्व एवं अधिकार पता होते है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कौन किसको रिपोर्ट करेगा।
- यह नियमों एवं कार्यविधियों पर आधारित होता है (It is based on Rules and Procedures): औपचारिक संगठन में पूर्व निर्धारित नियमों एवं कार्यविधियों का पालन किया जाना आवश्यक होता है। इनके द्वारा नियोजन में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।
- यह कार्य-विभाजन पर आधारित होता है (It is based on Division of work): औपचारिक संगठन का मुख्य आधार कार्य-विभाजन होता है। इसी आधार पर विभिन्न विभागों के प्रयास एक दूसरे से संबंधित होते हैं।
- वह जान बूझकर स्थापित किया जाता है (It is Deliberately Created): यह संस्था के उद्देश्यों को सरलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए जान-बूझकर बनाया जाता है।
- यह अव्यक्तिगत होता है It is Impersonal ): इसके अंतर्गत व्यक्तिगत भावनाओं को अनदेखा करके कठोर अनुशासन का पालन करने की बात कही जाती है। इसके अंतर्गत व्यक्ति का नहीं काम का महत्व होता है।
- यह अधिक स्थिर होता है (It is more Stable): इसमें व्यक्तियों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता हैं। अतः यह अधिक स्थिर होता है।
- औपचारिक संगठन के लाभ (Merits of Formal Organisation):-
- उत्तरदेयता निर्धारण में आसानी (Easy to fix Accountability): सभी कर्मचारियों के अधिकार एवं उत्तरदायित्व (Authorities and Responsibilities) निश्चित होने के कारण अकुशल कर्मचारियों को शीघ्र पकड़ा जा सकता है और उन्हें उत्तरदायी (Accountable) ठहराया जा सकता हैं।
- कार्यों का दोहरा नहीं होता (No overlapping of Works): औपचारिक संगठन में सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चलता हैं। और किसी भी कार्य के छूट जाने या कोई कार्य अनावश्यक रूप से एक से अधिक बार होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
- आदेश की एकता संभव (Unity of Command Possible): अधिकार श्रृंखला स्थापित होने के कारण आदेश की एकता के सिद्धांत का पालन करना संभव है।
- लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी (Easy to get Goals): औपचारिक संगठन के अंतर्गत समन्वय स्थापित होने, सभी भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग होने के कारण संस्था के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
- संगठन में स्थिरता (Stability in Organisation): सभी व्यक्ति अपने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए तथा नियमों का पालन करते हुए कार्य करते है। परिणामतः उनमें अच्छे संबंध स्थापित होते हैं और संगठन में स्थिरता आती है।
- औपचारिक संगठन की सीमाएं (Limitations of Formal Organisation):-
- काम में देरी (Delay in Work): प्रत्येक कार्य के नियमबद्ध होने के कारण कार्य में अनावश्यक देरी होती है।
- पहल-क्षमता की कमी (Lack of Initiatives): इस संगठन में कर्मचारियों को वैसा ही करना पड़ता है जैसा उनको निर्देश दिया जाता है और उनको कुछ सोचने का मौका नहीं मिलता। अतः उनकी पहल-क्षमता में कमी आ जाती है।
- संबंधों का यंत्रीकरण (Mechanisation of Relations): विभित्र व्यक्तियों के संबंधों को परिभाषित करके उन्हें इस प्रकार जकड़ दिया जाता है कि चाहते हुए भी अन्य लोगों के ज्ञान एवं अनुभव का लाभ नहीं उठाया जा सकता।
- अनौपचारिक संगठन (Informal Organisation):-
इसका अभिप्राय व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कार्यस्थल पर लोगों के स्वतः स्थापित समूहों से है।
- अनौपचारिक संगठन के मुख्य लक्षण (Main Characteristics of Informal Organisation):-
- औपचारिक संगठन पर आधारित (Based on Formal Organisation): यह औपचारिक संगठन पर आधारित होता हैं। औपचारिक संगठन में काम कर रहे व्यक्तियों के मध्य ही अनौपचारिक सबंध होते हैं। (अर्थात पहले औपचारिक संगठन स्थापित होता हैं और फिर उसी में से अनौपचारिक संगठन बनता है।)
- इसके लिखित नियम एवं प्रक्रियाएं नहीं होते हैं (It has no written Rules and Procedures): इस संगठन में आपसी व्यवहार के कोई लिखित नियम एवं प्रक्रिया नहीं होती, फिर भी इसकी अपनी समूह परंपराएं (Group Norms) होती हैं, जिनका पालन करना पड़ता हैं।
- स्वतंत्र संदेशवाहन शृंखला (Independent Channels of Communication): इसमें विभिन्न व्यक्तियों के मध्य संबंधों को परिभाषित नहीं किया जा सकता। क्योंकि एक निम्नतम स्तर के व्यक्ति का भी उच्चतम स्तर के व्यक्ति के साथ सीधा संबंध हो सकता है। संदेशवाहन के प्रवाह को स्पष्ट नहीं किया जा सकता।
- यह जान-बूझकर स्थापित नहीं किया जाता है (It is not Deliberately Created): अनौपचारिक संगठन की स्थापना जानबूझकर नहीं की जाती बल्कि व्यक्तियों के आपसी संबंधों एवं रुचियों के आधार पर हो जाती हैं ।
- संगठन चार्ट पर कोई स्थान नहीं (It has no place on Organisation Chart): अनौपचारिक संगठन का विधिवत् रूप से तैयार किए गए संगठन चार्ट पर कोई स्थान नहीं होता। इसके अतिरिक्त, संगठन पुस्तिका में भी इसकी कोई जानकारी नहीं दी जाती।
- यह व्यक्तिगत होता है (It is Personal): इसके व्यक्तिगत होने का अभिप्राय यह है कि इसके अतंर्गत व्यक्तियों की भावनाओं को ध्यान में रखा जाता है और उन पर किसी भी बात को थोपा नहीं जाता।
- स्थायित्व की कमी (It Lacks of Stability): इसमें प्रायः स्थायित्व का अभाव होता है; जैसे- एक व्यक्ति आज एक ग्रुप में बैठता है तो कल किसी अन्य ग्रुप से संबंध स्थापित कर लेता है। इतना ही नहीं बल्कि एक व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक ग्रुपों का सदस्य भी हो सकता है।
- अनौपचारिक संगठन के लाभ (Merits of Informal Organisation):-
- प्रभावपूर्ण संदेशवाहन (Effective Communication): निर्धारित मार्ग न होने के कारण यह संदेशवाहन की एक प्रभावपूर्ण पद्धति है। इसके माध्यम से संदेश अतिशीघ्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाए जा सकते हैं।
- सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfills the Social Needs): अनौपचारिक संगठन में समान विचार रखने वाले व्यक्ति अपना-अपना समूह बना लेते हैं। समूह के सभी सदस्य संगठनात्मक व व्यक्तिगत मुद्दों पर एक-दूसरे का साथ देते हैं। इससे उन्हें कार्य संतुष्टि प्राप्त होती है और संगठन में भाईचारे की भावना में वृद्धि होती है।
- संगठनात्मक उद्देश्यों की पूर्ति (Fulfills Organisational Objectives): यहां औपचारिक संगठन के दबाव से राहत मिलती है। अनौपचारिक संगठन में अधीनस्थ बिना किसी डर के अपनी बात अपने अधिकारियों के आगे कह देते हैं जिससे अधिकारियों को उनकी कठिनाइयों को जानने में सहायता मिलती है और सभी समस्याओं का तुरंत समाधान निकल आता है। सरलता से समस्याएं दूर होने से संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने में आसानी रहती है।
- अनौपचारिक संगठन की सीमाएं (Limitations of Informal Organisation):-
- यह अफवाहें फैलाता है (It creates Rumours): अनौपचारिक संगठन में सभी व्यक्ति लापरवाही से बात-चीत करते हैं और कई बार गलत बात एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल जाती है जिसके भंयकर परिणाम सामने आते है।
- यह परिवर्तन का विरोध करता है (It Resists Change): यह संगठन परिवर्तनों का विरोध करता है और पुरानी पद्धतियों को ही लागू रखने पर जोर देता है।
- समूह परंपराओं का दबाव (Pressure of Group Norms): इस संगठन में सदस्यों पर समूह परंपराओं का पालन करने का दबाव रहता है। कई बार अनौपचारिक समूहों में एकत्रित हुए कर्मचारी अपने लक्ष्य से बेखबर हो जाते हैं और सभी एक आवाज में अपने अधिकारियों का विरोध करने का निर्णय ले लेते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में अंतर (Difference between Formal and Informal Organisation):-

- अधिकार अंतरण (Delegation of Authority):-
अधिकार अंतरण से अभिप्राय दूसरे लोगों को कार्य सौंपना तथा उसे करने के लिए अधिकार प्रदान करना है।
- अधिकार अंतरण के तत्व (Elements of Delegation of Authority):-
- अधिकार (Authority): अधिकार से तात्पर्य एक व्यक्ति के उस अधिकार से है जिसके आधार पर वह अपने अधीनस्थों को नियंत्रित करता है तथा अपने पद के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्यवाही करता है। अधिकार की धारणा निर्धारित सोपान शृंखला से प्रारंभ होती है जो संगठन की विभिन्न स्थितियों तथा स्तरों को जोड़ती है।
- उत्तरदायित्व (Responsibility): उत्तरदायित्व का अर्थ सौंपे गए काम को ठीक ढंग से पूरा करने की अधीनस्थ की जिम्मेदारी से है। जब एक अधिकारी अपने अधीनस्थ को कोई काम सौंपता है तो उसे पूरा करना अधीनस्थ का उत्तरदायित्व बन जाता है। इसका अर्थ हुआ कि उत्तरदायित्व शब्द काम सौंपने पर ही उत्पन्न होता है। अत: काम सौंपने को ही उत्तरदायित्व सौंपना कहा जा सकता है।
- उत्तरदेयता या जवाबदेही (Accountability): अधिकार अंतरण एक कर्मचारी को अपने उच्चाधिकारी के प्रति काम करने की सामर्थ्य देता है लेकिन फिर भी जवाबदेही अभी भी उच्चाधिकारी की ही बनी रहती है। जवाबदेही से तात्पर्य अंतिम परिणाम का उत्तर देने योग्य होने से है। इसका न तो भारार्पण ही संभव है और न ही इसका प्रवाह ऊपर की ओर होता है।
- अधिकार अंतरण का महत्व (Importance of Delegation of Authority):-
- प्रभावपूर्ण प्रबन्ध (Effective Management): प्रभावपूर्ण का अर्थ हैं- उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर लेना। अधिकार अंतरण से प्रबन्धकों के कार्यभार में कमी आती है। वे प्रबन्धक जो अधिकार अंतरण करते है। निश्चित रूप से, उन प्रबन्धकों से जो अधिकार अंतरण नहीं करते, बेहतर निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।
- कर्मचारी विकास (Employee Development): एक व्यक्ति का मानसिक विकास तभी होता है जब उसके पास निर्णय लेने के अधिकार हों। अधिकार अंतरण प्रक्रिया अधीनस्थों को निर्णय लेने के अधिकार ही प्रदान करती है। परिणामत: भविष्य में वे अधिक उत्तरदायित्व ग्रहण करने के योग्य बन जाते हैं।
- कर्मचारियों का अभिप्रेरणा (Motivation of Employees):अधिकार अंतरण प्रक्रिया में अधीनस्थों को उत्तरदायित्व व अधिकार सौंपे जाते हैं। यह स्थिति उन्हें काम करने व निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। बेहतर परिणाम आने पर संस्था में उनकी पहचान बनती है। फलतः उन्हें कार्य संतुष्टि (satisfaction) प्राप्त होती है तथा वे और अधिक बढ़िया काम करने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।
- विकास में सहायक (Facilitation of Growth): अधिकार अंतरण प्रक्रिया से किसी एक व्यक्ति या विभाग का ही विकास नहीं होता बल्कि पूरे संगठन का विकास होता है। संगठन के अंदर निर्णय लेने में सक्षम कर्मचारियों के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण व्यवसाय का विस्तार (Expansion), आधुनिकीकरण (Modernisation) तथा विविधीकरण (Diversification) पूरे विश्वास के साथ किया जा सकता है।
- अधिकारी-अधीनस्थ संबंधों का आधार (Basis of Management Hierarchy): एक संगठन को सफलतापूर्वक चलाने के लिए अधिकारी-अधीनस्थ संबंधों का होना जरूरी है। क्योंकि इन संबंधों के कारण ही वे एक-दूसरे के संपर्क में आते है तथा उन्हें एक दूसरे को समझने का अवसर प्राप्त होता है। ये संबंध अधिकार अंतरण प्रक्रिया से ही स्थापित होते है।
- विकेंद्रीकरण (Decentralisation):-
विकेंद्रीकरण का आशय केवल केंद्रीय बिंदुओं पर ही प्रयोग किए जा सकने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्नतम स्तरों को सौंपने से है।
- विकेंद्रीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Decentralisation):-
- यह अधिकार अंतरण का एक विस्तृत रूप है।
- यह अधीनस्थों की भूमिका के महत्व को बढ़ाता है।
- यह संपूर्ण संगठन में लागू होने वाली प्रक्रिया है।
- यह उच्चस्तरीय प्रबंधको के कार्यभार में कमी करता है।
- इसमें निर्णय उन कर्मचारियों द्वारा लिए जाते हैं जिन्हें इन निर्णयों को लागू करना होता है।
- इसमें अधिकारों के साथ साथ उत्तरदेयता का भी हस्तांतरण हो जाता है।
- विकेंद्रीकरण का महत्व (Importance of Decentralisation):-
- अधीनस्थों में पहल क्षमता का विकास (Develops Initiative among Subordinates): विकेद्रीयकरण के अंतर्गत बडी मात्रा में अधिकारों को सौंपा जाता है। अधिकार एक ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को सोचने पर तथा कुछ नया करने पर मजबूर करती है। यह स्थिति उसमें पहल क्षमता विकसित करती है।
- भविष्य के लिए प्रवन्धकीय योग्यता का विकास (Develops Managerial Talent For Future): विकेद्रीयकरण के अंतर्गत निम्नतम स्तर के प्रबंधको को भी अपने कार्यों के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार दिए जाते हैं। इस प्रकार निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होने से सभी स्तरों के प्रबंधकों के ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि होती है।
- शीघ्र निर्णयन (Quick Decision Making): सभी प्रबन्धकीय निर्णयों का बोझ कुछ ही व्यक्तियों पर न होकर अनेक व्यक्तियों में बंट जाने के कारण निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं और श्रेष्ठ भी होते हैं। सभी व्यक्तियों को अपनी इकाई अथवा विभाग की समस्याओं का पूरा ज्ञान होता है और इसी कारण वे अच्छे से अच्छे व शीघ्र निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
- उच्च प्रबन्ध के कार्यभार में कमी (Relief to Top Management): विकेंद्रीयकरण के अंतर्गत दैनिक समस्याओं से संबंधित निर्णय लेने के सभी अधिकार, अधीनस्थों को सौंप दिए जाते हैं। फलस्वरूप, वे छोटी-छोटी समस्याओं में नहीं उलझे रहते और उनके कार्यक्रम में काफी कमी हो जाती है। इससे उनके पास पर्याप्त समय बचता है जिसका प्रयोग वे संगठन के भविष्य को बेहतर बनाने तथा समन्वय स्थापित करने में करते हैं।
- विकास में सहायक (Facilitates Growth): विकेंद्रीयकरण के अंतर्गत अधीनस्थों को निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। यह स्थिति अधीनस्थों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा करती है। अर्थात वे बेहतर परिणाम प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति में सभी एक दूसरे से बढ़िया काम करते हैं। परिणामस्वरूप सगठन का विकास संभव होता है।
- बेहतर नियंत्रण (Beter Control): विकेंद्रीकरण से हर स्तर पर कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करना एवं उत्तरदेयता निश्चित करना संभव होता है। प्रत्येक विभाग के उद्देश्य प्राप्ति में योगदान का पता लगाया जा सकता है। यह स्थिति प्रत्येक विभाग के लिए एक चुनौती के रूप में होती है। प्रबन्धक इसका सामना करने के लिए बेहतर नियंत्रण पद्धति को अपनाते हैं।