Class 12th व्यवसाय अध्ययन
(Business Studies)
Chapter 6
नियुक्तिकरण (Staffing)
- नियुक्तिकरण की परिभाषा (Definition of Staffing):-
नियुक्तिकरण कार्य प्रबंधक में भर्ती, चयन, विकास, प्रशिक्षण एवं क्षतिपूर्ति सम्मिलित है।
- नियुक्तिकरण की आवश्यकता तथा महत्त्व (Importance of Staffing):-
आज के तीव्र तकनीकी विकास के समय में संगठन के बढ़ते आकार तथा व्यक्तियों के व्यवहार की जटिलता को देखते हुए नियुक्तिकरण प्रक्रिया का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। मानव संसाधन किसी भी संगठन की एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिसंपत्ति है। नियुक्तिकरण संगठन को निम्न लाभ के लिए आश्वस्त करता है-
- विभिन्न पदों के लिए योग्य कर्मचारियों को खोजने में सहायता करता है।
- उपयुक्त व्यक्तियों को उपयुक्त पदों पर नियुक्ति से कार्य का बेहतर निष्पादन होता है।
- प्रबंधकों द्वारा उतरोत्तर नियोजन द्वारा संस्था के निरंतर विद्यमान रहने में तथा उसके विकास के लिए आश्वस्त करता है।
- मानव संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए आश्वस्त करता है।
- आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों को रखने से बचाव कर कर्मचारियों के कम उपयोग तथा उच्च श्रम लागत को रोकने में सहायक है।
- उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन तथा कर्मचारियों के योगदान का न्यायोचित प्रतिफल के द्वारा कार्य-संतोष में सुधार करता है तथा कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाता है।
- नियुक्तिकरण-मानव संसाधन प्रबंधन के अंग के रूप में (Staffing as part of Human Resource Management):-
संगठन के मानव संसाधनों का प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि किसी भी संस्थान की सफलता इस पर निर्भर करती है कि कार्यों का निष्पादन कितनी कुशलता से किया जाता है। कोई भी संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कितना सफल है इसका निर्धारण मानव संसाधनों की योग्यता, अभिप्रेणा तथा उनके निष्पादन के आधार पर होता है। मानव संसाधन प्रबंधन में बहुत सारी विशेष क्रियाओं तथा कर्तव्यों का सम्मिश्रण होता है जो मानव संसाधन कर्मचारियों को निष्पादित करने पड़ते हैं। ये कर्तव्य निम्न प्रकार से हैं:-
- भर्ती-जैसे योग्य व्यक्तियों की खोज
- कार्य का विश्लेषण-विभिन्न कार्यों के बारे में सूचना एकत्रित करना तथा कार्यों का विवरण तैयार करना
- क्षतिपूर्ति तथा प्रोत्साहन योजनाओं का विकास करना
- कुशल निष्पादन तथा जीवन-वृद्धि हेतु कर्मचारियों का प्रशिक्षण तथा विकास
- श्रम-संबंध, संघ-प्रबंध संबंधों का अनुरक्षण रखरखाव
- शिकायतों का निराकरण
- सामाजिक सुरक्षा तथा कर्मचारियों के कल्याण हेतु योजनाएँ बनाना
- कानूनी मामले तथा कानूनी पेचों से कंपनी की सुरक्षा तथा बचाव करना।
- नियुक्तिकरण प्रक्रिया (Staffing Process):-
- मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन (Estimating the manpower Requirements): नियुक्तिकरण के प्रथम चरण कर्मचारियों की आवश्यकता का निर्धारण किया जाता है। आवश्यक व्यक्तियों की संख्या का निर्धारण करते समय आंतरिक पदोन्नति अवकाश ग्रहण, नौकरी छोड़ने एवं पद-मुक्ति आदि संभावनाओं को भी ध्यान में रखा जाता है।
- भर्ती (Recruitment): भर्ती प्रक्रिया के अंतर्गत भावी कर्मचारियों के विभिन्न स्रोतो की खोज करना तथा उन्हें संस्था में प्रार्थना- प्रत्र भेजने हेतु प्रोत्साहित करना सम्मिलित है।
- चयन (Selection): चयन प्रक्रिया के अंतर्गत अनेक प्रार्थियों में से योग्य प्रार्थियों को कार्य के लिए चुना जाता है। यहां पर विशेष रूप से यह ध्यान रखना जरूरी है कि प्रार्थी की कुशलता एवं कार्य की प्रकृति में समानता हो।
- कार्य पर लगाना तथा अभिविन्यास (Placement and Orientation): कार्य पर लगाने का अर्थ चुने गए व्यक्ति द्वारा उस पद को धारण कर लेना है जिसके लिए उसका चयन किया गया है। अभिविन्यास के अंतर्गत कर्मचारी को उसकी जॉब तथा संगठन से परिचित कराया जाता है।
- प्रशिक्षण एवं विकास (Training and Development): कर्मचारी नियुक्ति प्रक्रिया के इस चरण पर कर्मचारियों को प्रशिक्षण एवं विकास सुविधाएं प्रदान की जाती है। ताकि उनकी कुशलता एवं प्रभावपूर्णता में वृद्धि की जा सके।
- प्रगति मूल्यांकन (Performance Appraisal): इस चरण पर यह देखा जाता है कि कौन कर्मचारी कितना योग्य है। उसकी योग्यता की जांच करने के लिए उसे सोपें गए कार्य तथा वास्तविक कार्य निष्पादन की तुलना की जाती है।
- पदोन्नति तथा कैरियर नियोजन (Promotion And Career Planning): पदोन्नति का आधार सामान्यतः कर्मचारी का संगठन के प्रति लगाव, अनुशासन, कार्यकुशलता आदि होते है। अतः नियुक्तिकरण प्रक्रिया में पदोन्नति के अंतर्गत कर्मचारियों को उनकी योग्यता के आधार पर संस्था मे उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है।
- क्षतिपूर्ति (Compensation): निगुक्तिकरण प्रक्रिया के इस चाण पर एक कर्मचारी द्वारा संगठन को दिए गए योगदान के लिए क्षतिपूर्ति निश्चित की जाती है। क्षतिपूर्ति का अभिप्राय कर्मचारियों को दिए जाने वाले सभी प्रकार के वेतन तथा पुरस्कारों से है। वास्तव मे यह जॉब की कीमत होती है।

- नियुक्तिकरण के विभिन्न पहलू :-
- भर्ती (Recruitment)- भर्ती एक सकारात्मक चरण है जो रिक्त पदों के लिए बहुत सारे लोगों को आकर्षित करती है कि वे पदों के लिए (प्रत्याशियों) अपने आवेदन पत्र दें। जितनी अधिक संख्या में व्यक्ति पदों के लिए आवेदन पत्र देते हैं, उतनी ही ज्यादा संभावना होती है कि उन्हें संस्था के लिए योग्य कर्मचारी उनमें से मिल सके।
- चयन (Selection)- दूसरी तरफ 'चयन' एक नकारात्मक प्रक्रिया है। इसका लक्ष्य उन सभी उम्मीदवारों में से जिन्होंने नौकरी के लिए आवेदन किया है, सबसे योग्य का चयन करना है।
- प्रशिक्षण (Training)- प्रशिक्षण, कर्मचारियों के ज्ञान तथा कौशलों को उन्नत करने से संबंधित है। ताकि उनके निष्पादन की योग्यता को बढ़ाया जा सके।

- कर्मचारी भर्ती प्रक्रिया (Process of Recruitment of Employees):-
- कर्मचारियों की मांग (Requisition of Employees): भर्ती प्रक्रिया कर्मचारियों की मांग के निर्धारण से प्रारंभ होती है। सभी विभागीय प्रबन्धकों द्वारा अपने-अपने विभाग में कर्मचारियों की आवश्यकता का निर्धारण करके कर्मचारी प्रबन्धक (Personnel Manager) को सूचित कर दिया जाता है।
- भर्ती के स्त्रोतों की पहचान (Identification of the Sources of Recruitment): कर्मचारी प्रबन्धक (Personnel Manager) के पास जब सभी विभागों से कर्मचारियों के मांग-पत्र पहुंच जाते हैं तो वह अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर यह निश्चित करता है कि विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग योग्यता वाले कर्मचारियों को कहां से उपलब्ध कराया जाए।
- इच्छुक लोगों को आमंत्रण Invitation to Interested People): दूसरे चरण में स्त्रोतों का पता लगा लेने के बाद इच्छुक लोगो को आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसके लिए कर्मचारी प्रबन्धक एक विस्तृत सूचना तैयार करता है जिसमें इस प्रकार विवरण दिया जाता है: कार्य की प्रकृति, अपेक्षित योग्यताए आदि।
- योग्य आवेदकों की सूची तैयार करना (Preparing the list of Deserving Applicants): आवेदन-पत्र प्राप्त हो जाने पर उनकी जांच की जाती है। जांच के दौरान आवेदन-पत्रों को दो भागों में बांट दिया जाता है। एक वे जो सभी वंछित योग्यताएं रखते हैं तथा दूसरे प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता हैं।
- आंतरिक स्रोत-(संस्था के अंदर से ही भर्ती) {Internal Sources}:-
- स्थानांतरण (Transfer): इसका अभिप्राय एक कर्मचारी को एक विभाग से दूसरे विभाग अथवा एक शाखा से दूसरी शाखा में पहले जैसे पद पर स्थानांतरित करने से हैं। प्रायः स्थानांतरण विधि का उपयोग तब किया जाता है जब किसी एक विभाग में कर्मचारी आवश्यकता से अधिक हो तथा किसी दूसरे विभाग में उसी प्रकार के कर्मचारियों की आवश्यकता हो।
- पदोन्नति (Promotion): पदोन्नति वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत निचले पद पर कार्य कर रहे किसी कर्मचारी को उच्च पद पर नियुक्त कर दिया जाता है, जहां उसके दायित्व बढते है, पद बड़ा हो जाता है तथा वेतन बढ़ता है। अकुशल कर्मचारी को निम्न पद (Lower-Position) पर भेज कर भी पद को भरा जा सकता है। इसे पदावनति (Demotion) द्वारा भर्ती कहा जाता हैं।
- अस्थाई अलगाव (lay-off): इसका अर्थ नियोक्ता के प्रयास से कर्मचारियों को नियोक्ता से कुछ समय के लिए दूर (Separation) करना है। अस्थाई अलगाव का कारण प्रायः काम की कमी होता है। नियोक्ता व कर्मचारी के मध्य इस बात की पूर्ण सहमति होती है कि जब भी काम उपलब्ध होगा, इसी कर्मचारी को प्राथमिकता दी जाएगी ।
- आंतरिक स्रोतों के लाभ (Merits of Internal Sources):-
- अभिप्रेरणा में वृद्धि (Increase in Motivation): सभी आंतरिक स्रोतों और विशेषकर पदोन्नति द्वारा भर्ती किए जाने पर कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है। यदि उन्हें पहले से ही मालूम हो कि उनकी पदोन्नति हो सकती है तो उच्च पद पर नियुक्त होने की इच्छा उनके मनोबल में वृद्धि करेगी और वे अपने कार्यों को अत्यधिक कुशलता के साथ करेंगे।
- औद्योगिक शान्ति (Industrial Peace): भर्ती के आंतरिक स्रोत का प्रयोग किए जाने पर पदोन्नति की खुशी में कर्मचारी वर्ग संतुष्ट रहता है और परिणामतः औद्योगिक शांति स्थापित होती है। पदोन्नति प्रक्रिया नीचे से ऊपर पूरे संगठन में चलती है इसी विचार से कर्मचारी सीखने व अभ्यास करने पर पूरा जोर लगाते हैं।
- सरल चयन (Easy Selection): संस्था के अंदर काम कर रहे व्यक्तियों के बारे में हर तरह की जानकारी होती है। यही कारण है कि उनका उच्च पद के लिए चयन करने पर किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।
- प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं (No Need of Induction): प्रस्तुतीकरण का अर्थ नए कर्मचारी को उस वातावरण से परिचित करवाना है जहां उसे काम करना है। भर्ती के इस स्रोत में कर्मचारियों को यह जानकारी पहले से ही होती है। अतः इस स्रोत में प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं है।
- अतिरिक्त कर्मचारियों का समायोजन (Adjustment of Surplus Employees): इसके अंतर्गत एक विभाग के अतिरिक्त कर्मचारियों को कमी वाले विभाग में भेजा जाता है। इस प्रकार स्टाफ की कमी पूरी हो जाती है। परिणामतः काम में रुकावट नहीं आती।
- मितव्ययी खोत (Economical Source): यह स्रोत सर्वाधिक मितव्ययी है क्योंकि ऐसा करने पर न तो स्त्रोतों की खोज पर ही व्यय होता है और न लम्बी चयन प्रक्रिया पर समय व्यर्थ करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त इन कर्मचारियों को अधिक प्रशिक्षण की जरूरत भी नहीं होती है क्योंकि उन्हें संस्था की सभी क्रियाओं के बारे में पहले से ही जानकारी होती है।
- नवयुवक कर्मचारियों के प्रवेश पर रोक (Stops entry of Young Blood): आंतरिक भर्ती प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसको अपनाने से युवा एवं आधुनिक तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लग जाती है जिसके परिणामस्वरूप पुराने व्यक्ति अपने पुराने विचारों के साथ ही संस्था को चलाते हैं और कोई भी नया विचार विकसित नहीं हो पाता।
- कर्मचारियों का सुस्त होना (Employees become Lethargic): भर्ती का आंतरिक स्रोत कर्मचारियों में निश्चित पदोन्नति की भावना पैदा करता है। यह भावना उन्हें सुस्त बना देती है और उनके निष्पादन में कमी करती है।
- नए संगठनों के लिए उपलब्ध न होना (Not Available for New organisitions): इस स्रोत से भर्ती केवल पहले से स्थापित संगठनो में ही संभव है। नए संगठनों को बाह्य स्रोत का ही प्रयोग करना होता है। इसके अतिरिक्त, यह भी जरूरी नहीं है कि पुराने संगठनो की कुल भर्ती आवश्यकता इसी स्रोत से पूरी हो जाए।
- कर्मचारियों में प्रतियोगिता की भावना को ठेस (Sense of Competition among Empleyee Hampered): प्रतियोगिता की भावना तब उत्पन्न होती है जब कोई अधिक योग्य कर्मचारी से सामना हो। यह भर्ती विधि योग्य कर्मचारियों के प्रवेश में रुकावट पैदा करती है। अतः कर्मचारियों को प्रतियोगिता का अवसर प्राप्त नहीं होता।
- अतिशीघ्र स्थानांतरण से उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं। (Frequent Transfers Hit the Productivity Negatively): इस भर्ती स्त्रोत में कई बार कर्मचारियों को जल्दी जल्दी स्थानांतरित कर दिया जाता है। इससे वे किसी भी काम में कुशल नहीं बन सकते। परिणामतः संगठन की उत्पादकता में कमी आती हैं।
- बाह्य स्त्रोत अथवा बाहर से भर्ती (External Sources of Recruitment from Outside):-
- प्रत्यक्ष भर्ती (Direct Recruitment): इसका अभिप्राय भर्ती के उस स्रोत से है जिसके अंतर्गत दैनिक मजदूरी आधार पर भर्ती करने के लिए उपलब्ध खाली पदों का विवरण संगठन के सूचना-पट्ट पर लगा दिया जाता है।
- आकस्मिक बुलावा (Casual Callers): इसका अभिप्राय भर्ती के उस स्रोत से है जिसके अंतर्गत संगठन अप्रार्थित उम्मीदवारों का एक डाटाबेस तैयार करता है ताकि पद खाली होने पर उन्हें आसानी से भरा जा सके।
- विज्ञापन माध्यम (Media Advertising): विज्ञापन संस्था के बाहर से कर्मचारियों को खोजने का एक प्रभावपूर्ण तरीका है। इसके द्वारा उच्च स्तर एवं मध्य स्तर के पदों के लिए बड़ी मात्रा में लोगों को संस्था की ओर आकर्षित किया जाता है। विज्ञापन समाचार पत्रों, रोजगार समाचार, टेलीविजन, पत्रिकाओं आदि की सहायता से किया जाता है।
- प्लेसमेंट एजेंसीज (Placement Agencies): ये निजी लोगों द्वारा स्थापित की जाती हैं। इच्छुक व्यक्ति इनके पास अपना नाम दर्ज करवा देते हैं। इनके पास प्राय: उच्च स्तर एवं मध्य स्तर पर नियुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के नाम दर्ज होते हैं। संस्था के आग्रह करने पर ये संस्था की ओर से भर्ती एवं चयन का पूरा कार्य करती हैं। इस सेवा के लिए ये संस्था से कुछ फीस लेती हैं।
- प्रबंधन परामर्शदाता (Management Consultants of Head Hunters): ये पहले से ही प्रबन्धकीय स्तर के लोगों के सम्पर्क में रहती हैं और किसी संगठन द्वारा प्रबन्धकों की मांग करने पर उन्हें संगठन के समक्ष प्रस्तुत कर देती हैं। इस सेवा के बदले में फर्मे कमीशन अथवा फीस वसूल करती हैं। ये फर्में इच्छुक संगठनों की ओर से कर्मचारी भर्ती के लिए विज्ञापन का काम भी करती हैं।
- कैम्पस भर्ती (Campus Recruitment): कैम्पस भर्ती का अर्थ शिक्षण संस्थाओं के अंदर से भर्ती करने से है। अनेक बड़ी संस्थाए युवा एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों को प्राप्त करने के इरादे से शिक्षण संस्थाओं के संपर्क में रहती हैं। जहां से ऐसे व्यक्तियों को प्राप्त किया जाता है।
- संस्कृति अथवा सिफारिश (Recommendations): संस्था में अच्छे श्रम-प्रबंन्ध संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से प्रबन्धक कभी-कभी भर्ती वर्तमान कर्मचारियों की सिफारिशों से भी करते हैं। इससे पुराने कर्मचारियों को प्रोत्साहन मिलता है और नए कर्मचारियों पर पूरा नियंत्रण रहता है। इस स्रोत का प्रयोग प्रायः निम्नस्तरीय कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए किया जाता हैं।
- श्रम एवं ठेकेदार (Labour and Contractors): ठेकेदार, श्रमिकों एवं प्रबंधकों के बीच की कड़ी के रूप में होते हैं। एक ओर वे श्रमिकों के संपर्क में रहते हैं तथा दूसरी ओर प्रबन्धकों के। जैसे ही प्रबन्धक श्रमिकों की मांग करते हैं, ठेकेदार तुरंत उनकी पूर्ति उपलब्ध का देते है।
- प्रसारण (Telecasting): आजकल बड़े संगठन टेलीविजन पर खाली पदों के प्रसारण को प्राथमिकता दे रहे हैं। प्रसारण के दौरान खाली पद, वांछित योग्यता एवं अनुभव, संभावित पारिश्रमिक, कम्पनी की विशेषताओं, आदि की जानकारी दी जाती है।
- वेब प्रकाशन (Web Publishing): आजकल इंटरनेट भर्ती का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है। इंटरनेट पर भर्ती के लिए विशेष वेबसाइट बनाई गई है। इन पर प्रार्थियों को जानकारी प्राप्त होती है कि किस कम्पनी को किस योग्यता के व्यक्ति चाहिएं। वांछित योग्यता रखने वाले व्यक्ति कम्पनी से संपर्क करके नियुक्ति पा सकते हैं।
- नवीन गुण (Fresh Talent): संस्था के बाहर से भर्ती करने पर नए-नए व्यक्ति नए एवं आधुनिक विचारों के साथ संस्था में प्रवेश करके संस्था को लाभ पहुंचाते हैं।
- प्रतियोगी भावना (Competitive Spirit): वर्तमान कर्मचारियों में बाह्य कर्मचारियों के प्रवेश से प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है। परिणामस्वरूप वे बढ़िया निष्पादन करने लगते हैं।
- पक्षपात की कम संभावना (Less chances of Favouritism): बाहर से भर्ती करने पर प्रायः सभी आवेदक प्रबन्धकों के लिए नए होते हैं और किसी तरह के पक्षपात की संभावना नहीं होती ।
- वर्तमान स्टाफ में असंतुष्टि (Dissatisfaction among Existing Staff): बाह्य भर्ती प्रणाली को अपनाने से वर्तमान कर्मचारियों की पदोन्नति के अवसर समाप्त हो जाते हैं। पदोन्नति की उम्मीद न रहने के कारण कर्मचारियों के मनोबल में कमी आती है और वे पूरी निष्ठा व लगन से काम नहीं करते।
- लंबी प्रक्रिया (Lengthy Process): बाह्य स्रोत से भर्ती के अंतर्गत पदों के विज्ञापन, आवेदन पत्रों की इंतजार, चयन, आदि में बहुत समय लगता है। अतः लम्बी प्रक्रिया होने के कारण कई बार इसे उपयोगी नहीं माना जाता।
- महंगी प्रक्रिया (Costly Process): बाहा भर्ती स्रोत में विज्ञापन, लम्बी चयन प्रक्रिया एवं चयन, के बाद प्रशिक्षण आदि के रूप में अनेक खर्चे करने पड़ते हैं। इस प्रकार यह एक महंगी पद्धति है।
- गलत चयन की संभावना (Chances of Wrong Selection): बाहरी लोगों के बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण गलत चयन की संभावना बनी रहती है। यदि एक भी गलत चयन हो जाए तो संस्था को बहुत महगा पड़ सकता है
- श्रम-परिवर्तन दर में वृद्धि (Increase in Labour Turnover): जब कर्मचारी को यह जानकारी हो कि उन्हें संस्था में ऊचे पदों पर नियुक्त नहीं किया जाएगा तो जैसे ही उन्हें कोई अवसर मिलता है वे संस्था को छोड़कर चले जाते हैं और परिणामतः श्रम-परिवर्तन दर में वृद्धि होती है एवं संस्था की साख में कमी आती है फलस्वरूप अच्छे व्यक्ति संस्था की ओर आकर्षित नहीं होते।
- चयन प्रक्रिया (Selection Process):-
- प्रारंभिक जाँच (Preliminary Screening)- आवेदन पत्रों में दी गई सूचना के आधार पर अयोग्य अथवा अनुपयुक्त पद इच्छुकों की छँटनी में, प्रारंभिक जाँच, प्रबंधक की सहायता करती हैं। प्रारंभिक साक्षात्कार सहायक है उन कारणों के आधार पर अस्वीकार करने में जो आवेदन पत्रों में दी गई सूचना में नहीं आई थी।
- चयन परीक्षाएँ (Selection Tests)- रोजगार परीक्षाएँ एक ऐसा यंत्र है (कागज तथा पेंसिल परीक्षा अथवा अभ्यास) जो व्यक्तियों की विशेषताओं को मापती है। ये विशेषताएँ भिन्न श्रेणी की क्षमताएँ, जैसे शारीरिक निपुणता से लेकर बुद्धि या व्यक्तित्व संबंधित हो सकती हैं।
महत्वपूर्ण परीक्षाएँ जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन हेतु किया जाता हैं-
- बुद्धि परीक्षा (Intelligence Test)- यह उन महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक परीक्षाओं में से एक है जिसका प्रयोग व्यक्ति के बुद्धि-कोष स्तर को मापने के लिए किया जाता है। यह व्यक्ति के सीखने की योग्यता का अथवा निर्णय लेने तथा परखने की योग्यता को मापने का सूचक/संकेतक है।
- कौशल परीक्षा (Aptitiude Test)- यह व्यक्ति के नए कौशल को सीखने की संभावित कुशलता को मापती है। यह व्यक्ति के विकास करने की क्षमता का संकेत करती है। ऐसी परीक्षा व्यक्ति के भविष्य में सफलता के अंक/स्तर को जानने का एक अच्छा संकेतक हैं।
- व्यक्तित्व परीक्षाएँ (Personality Test)- व्यक्तित्व परीक्षाएं, व्यक्ति के संवेगों, प्रक्रियाऔ, परिपक्वता तथा उनके जीवन मूल्यों को जानने में संकेत देती हैं। ये परीक्षाएं पूरे व्यक्तित्व को परखने में सहायक हैं। इसलिए इनका निर्माण तथा क्रियान्वयन दोनों ही कठिन है।
- व्यापार परीक्षा (Trade Test)- ये परीक्षाएं व्यक्ति के उपलब्ध कौशलों को मापती है। ये ज्ञान के स्तर तथा उनके क्षेत्र की व्यावसायिक तथा तकनीकी प्रशिक्षण की कुशलता को मापती है। कौशल परीक्षा तथा व्यापार परीक्षा में अंतर यह है कि पहली परीक्षा व्यक्ति के कौशल अर्जित करने की संभावित क्षमता को मापती है तथा दूसरी उन वास्तविक कौशलों को जो उनके पास पहले से ही है।
- अभिरुचि परीक्षा (Interest Test)- हर व्यक्ति को किसी खास कार्य के प्रति आकर्षण रहता है। अभिरुचि परीक्षाओं का प्रयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि उसकी रुचि किस प्रकार की है अथवा उसका रुझान किस प्रकार के कार्य की तरफ है।
- रोजगार साक्षात्कार (Employment Interview)- साक्षात्कार औपचारिक होते हैं, विस्तृत रूप से बातचीत करके यह मूल्यांकन किया जाता है कि आवेदक पद के लिए उपयुक्त है कि नहीं। साक्षात्कार करने वाले की भूमिका सूचना प्राप्त करने की है, साक्षात्कार देने वाले की सूचना देने की। हालाँकि, आजकल साक्षात्कार देने वाले साक्षात्कार करने वाले से भी काफी सूचनाएँ ले लेते हैं।
- संदर्भ तथा पृष्ठभूमि जाँच/परीक्षण (Reference and Background Checks)- संदर्भ व्यक्तियों के बहुत से नियोक्ता, नाम, पते तथा दूरभाष के लिए निवेदन करते हैं ताकि जो सूचनाएँ आवेदकों ने भरी हैं उनकी जाँच हो सके तथा उनके बारे में अतिरिक्त सूचना भी मिल सके। पूर्व नियोक्ता, जान-पहचान के व्यक्ति, शिक्षक तथा विश्वविद्यालय के प्रवक्ता एक संदर्भ का कार्य करते हैं।
- चयन निर्णय (Selection Decision)-अंतिम निर्णय उन उम्मीदवारों में से होता है जिन्होंने परीक्षाएँ उतीर्ण की हैं, जिनका साक्षात्कार तथा संदर्भ परीक्षण हुआ है। संबंधित प्रबंधक के विचार, सामान्यत: अंतिम चयन में निर्णायक सिद्ध होते हैं, क्योंकि नए कर्मचारी के निष्पादन के लिए वही उत्तरदायी रहता है।
- शारीरिक एवं डॉक्टरी परीक्षण (Medical Examination)-चयन के निर्णय के पश्चात् तथा इसके पहले कि उसे नौकरी का प्रस्ताव दिया जाए, उम्मीदवार को डॉक्टरी परीक्षण करवाना होता है कि वह शारीरिक रूप से कार्य के लिए फिट (उपयुक्त) है। पद-प्रस्ताव डॉक्टरी परीक्षण के बाद उसे शारीरिक रूप से कार्य के लिए उपयुक्त घोषित होने पर, निर्भर करता है।
- पद-प्रस्ताव (Job Offer)-चयन प्रक्रिया का अगला चरण उन व्यक्तियों/आवेदकों को नौकरी का प्रस्ताव देना है जिन्होंने सारी परीक्षाएँ पास की है नौकरी का प्रस्ताव नियुक्ति पत्र के माध्यम से दिया जाता है। उसकी स्वीकृति की पुष्टि भी की जाती है। इस प्रकार का पत्र सामान्यत: एक तिथि निश्चित करती है, जिस दिन चयनित कर्मचारी को अपने कार्यस्थल पर आना है। चयनित कर्मचारी को कार्य पर कार्यभार संभालने के लिए एक उपयुक्त समय देना चाहिए।
- रोजगार समझौता (Contract of Employment)-नौकरी का प्रस्ताव देने पर उपरांत तथा जब उम्मीदवार उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तब कुछ दस्तावेज/प्रलेख नियोक्ता तथा कर्मचारी को भरने पड़ते हैं। ऐसा ही एक प्रलेख है- अनुप्रमाणित (अटैस्टेशन फार्म) प्रपत्र।

- प्रशिक्षण तथा विकास (Training and Development):-
प्रशिक्षण तथा विकास, कर्मचारियों के वर्तमान तथा भविष्य के निष्पादन स्तर को सुधारने का एक प्रयास है। इसमें प्राय: कर्मचारियों को सिखाने के द्वारा उनकी योग्यता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
- प्रशिक्षण तथा विकास की आवश्यकता (Importance of Training and Development):-
प्रशिक्षण तथा विकास संस्था तथा व्यक्ति दोनों के लिए ही सहायक है।
- कर्मचारियों को लाभ (Merits to the Employee):-
- प्रशिक्षण के कारण कौशल तथा ज्ञान में सुधार व्यक्ति की जीवन वृत्ति को भी बेहतर बनाता है।
- कार्य का बेहतर निष्पादन व्यक्ति के अधिक कमाने में सहायक है।
- प्रशिक्षण, कर्मचारियों को अधिक कुशल बनाता है ताकि वह मशीनों को कुशलतापूर्वक संभाल सकें। इस प्रकार वे दुर्घटनाओं से अपना बचाव कर पाएंगे।
- प्रशिक्षण कर्मचारियों के संतोष तथा मनोबल को बढ़ाता है।
- संगठन को लाभ (Merits to the Organisation):-
- प्रशिक्षण एक व्यवस्थित अधिगम (सीखने की प्रक्रिया) है जो बार-बार गलती करके सौखने वाली विधियों से हमेशा बेहतर है, जिसके कारण पैसा तथा प्रयास दोनों का ही नुकसान होता है।
- प्रशिक्षण कर्मचारियों की उत्पादकता-दोनों ही प्रकार की मात्रा तथा गुणवत्ता को बढ़ाती है, जिससे लाभ में बढ़ोतरी होती है।
- प्रशिक्षण भविष्य के प्रबंधकों को तैयार करने का कार्य करता है जो आकस्मिक संकट (आपातकाल) के समय स्थिति संभाल सकें।
- प्रशिक्षण कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाता है तथा अनुपस्थिति को कम करता है। कर्मचारियों के संस्था छोड़ने की दर को भी कम करता है।
- यह तेजी से परिवर्तित होते तकनीकी तथा आर्थिक वातावरण से भी प्रभावपूर्ण प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सहायक है।
- प्रशिक्षण विधियाँ (Training Methods):-
प्रशिक्षण की बहुत सारी विधियाँ हैं। इन्हें विस्तृत रूप से दो समूहो /भागों में बाँटा जा सकता है ऑन द जॉब एवं ऑफ द जाब विधियाँ। ऑन द जॉब विधियों
- ऑन द जॉब विधियाँ (On The Job Methods):-
- प्रशिक्षणार्थी कार्यक्रम (Apprenticeship Programmes)-प्रशिक्षणार्थी कार्यक्रम प्रशिक्षणार्थी को एक कार्य में प्रवीण कर्मचारी के अधीन रखा जाता है। इन कार्यक्रमों की रूपरेखा उच्च स्तरीय कौशल को अर्जित करने के लिए बनाई जाती है। जो लोग विशेष कौशल वाले व्यापार में प्रवेश चाहते हैं।
- स्थानबद्ध प्रशिक्षण (इंटर्नशिप प्रशिक्षण) /संयुक्त प्रशिक्षण परियोजना (Internship Training)-यह प्रशिक्षण का एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम है जिसमें शैक्षणिक संस्थान तथा व्यावसायिक फर्म सहयोग देती हैं। चयनित प्रशिक्षणार्थी एक निश्चित/निर्धारित अवधि के लिए एक नियमित अध्ययन करते हैं। वे उसी फैक्टरी या कार्यालय में व्यवहारिक ज्ञान तथा कौशल अर्जित करने के लिए कार्य भी करते हैं।
- शिक्षण (Coaching)-इस विधि के अंतर्गत उच्च अधिकारी तथा प्रशिक्षण एक शिक्षक के समान प्रशिक्षणार्थी को सिखाता है। शिक्षक अथवा परामर्शक आपसी सलाह से उद्देश्यों का निर्धारण करते है तथा सुझाव देते हैं कि इन उद्देश्यों को कैसे पूरा करना है।
- कार्य बदली (Job Rotation)- इस प्रकार के प्रशिक्षण में प्रशिक्षणार्थी का एक विभाग से दूसरे विभाग अथवा एक कार्य से दूसरे कार्य में स्थानांतरण सम्मिलित हैं। यह प्रशिक्षणार्थी को व्यवसाय के विभिन्न अंगों को विस्तृत रूप से समझने में तथा कोई संगठन किस प्रकार पूर्ण रूप से कार्य करता है, समर्थ बनाता है।
- ऑफ द जॉब विधियाँ (Off The Job Methods):-
- चलचित्र (Films)-ये सूचनाएँ देने तथा सुस्पष्ट तरीके से कौशलों को प्रदर्शित करता हैं। जो आसानी से किसी अन्य तकनीक द्वारा नहीं की जा सकती है। सम्मेलन तथा चर्चा के साथ कुछ विशिष्ट स्थितियों में यह अत्यंत प्रभावी विधि है।
- समस्यात्मक अध्ययन (Case Study)- संगठन के वास्तविक अनुभवों के आधार पर केस अध्ययन के माध्यम से प्रयास करते हैं कि किस प्रकार संभावित वास्तविक समस्याओं का यथार्थ वर्णन किया जाए जो प्रबंधकों ने सामने आए है।
- कंप्यूटर प्रतिमान (Computer Modelling)- यह इस प्रकार का कार्य वातावरण बनाने में सहायक है जो कंप्यूटर में प्रोग्राम के द्वारा कार्य की वास्तविक स्थितियों की नकल करने में सक्षम है तथा इससे प्रशिक्षणार्थी बिना किसी जोखिम के अथवा कम लागत पर सीख सकता है जो गलतियाँ वह वास्तविक जीवन-स्थिति में कर सकता है।
- प्रकोष्ठ प्रशिक्षण (Vestibule Training)- इस प्रणाली में कर्मचारी अपने काम को उन्ही उपकरणों पर सीखते हैं जिन पर उन्हें काम करना है, लेकिन यह प्रशिक्षण वास्तविक कार्यस्थल से हटकर दिया जाता हैं।
- कक्षा-कक्ष व्याख्यान/सम्मेलन (Class Room Lecture/Conferences)-व्याख्या अथवा सम्मेलन उपागम विशेष सूचना नियम, कार्य-प्रणाली अथवा प्रक्रिया को स्प्रेषित करने के लिए अत्यंत अनुकूल है। दृश्य-श्रव्य सामग्री अथवा प्रदर्शन प्राय: एक औपचारिक कक्षा-कक्ष प्रस्तुति को ज्यादा रुचिकर बनाते हैं, साथ ही साथ प्रतिधारण को भी बढ़ाते हैं और यह कठिन बिंदुओं के स्पष्टीकरण के लिए एक अच्छा माध्यम भी है।
- नियोजित अनुदेश/प्रशिक्षण (Programmed Instructions)- यह प्रणाली कुछ पूर्व-नियोजित विशेष कौशलों अथवा सामान्य ज्ञान के अधिग्रहण का समाविष्ट करती है। यह सूचनाओं को अर्थपूर्ण इकाईयों में बाँटती है तथा इन्हीं इकाईयों को उपयुक्त तरीके से क्रमबद्ध किया जाता है ताकि वे एक तार्किक तथा क्रमिक अधिगम पैकेज के रूप में बन सके जैसे-सरल से जटिल को और।