Class 12th व्यवसाय अध्ययन
(Business Studies)
Chapter 8
नियंत्रण (Controlling)
- नियंत्रण का अर्थ तथा विशेषता (Meaning of Controlling and Features):-
- नियंत्रण से तात्पर्य संगठन में नियोजन के अनुसार क्रियाओं के निष्पादन से है।
- नियंत्रण इस बात का भी आश्वासन है कि संगठन के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी तथा दक्षतापूर्ण ढंग से हो रहा है। अतः नियंत्रण एक उद्देश्य मूलक कार्य है।
- प्रबंधक का नियंत्रण एक सर्वव्यापी कार्य है।
- यह प्रत्येक प्रबंधक का प्राथमिक कार्य भी है। प्रबंध के प्रत्येक स्तर-शीर्ष, मध्यम तथा निम्न पर प्रबंधक को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की ( क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रण कार्य को निष्पादित करना चाहिए।
- जो समस्याएँ नियंत्रण में सामने आई उनके प्रकाश में भविष्य के लिए अच्छी योजनाएं तैयार की जा सकती हैं। इस प्रकार नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया के एक चक्र को पूरा करता है तथा अगले चक्र के नियोजन में सुधार करता है।
- नियंत्रण का महत्त्व (Importance of Controlling):-
- संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति (Accomplishing Organisational)- नियंत्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाता है। यदि कोई विचलन प्रकाश में आता है तो उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है।
- मानकों की यथार्थता को आंकना (Judging a Accuracy of Standards)- एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली द्वारा प्रबंध निर्धारित मानकों की यथार्थता तथा उद्देश्य पूर्णता को सत्यापित कर सकता है। एक दक्ष नियंत्रण प्रणाली से वातावरण तथा संगठन में होने वाले परिवर्तनों को सावधानी से जाँच पड़ताल की जाती है तथा इन्हीं परिवर्तनों के संदर्भ में उनके पुनरावलोकन तथा संशोधन में सहायता करता है।
- संसाधनों का फलोत्पादक उपयोग (Making Efficient use of Resources)- नियंत्रण का उपयोग करके एक प्रबंधक अपव्यय तथा बर्बादी को कम कर सकता है। प्रत्येक क्रिया का निष्पादन पूर्व निर्धारित मानकों के अनुरूप होता है। इस प्रकार सभी संसाधनों का उपयोग अति प्रभावी एवं दक्षता पूर्ण विधि से होता है।
- कार्य में समन्वय की सुविधा (Facilitating Coordination in Action)- नियंत्रण उन सभी क्रियाओं तथा प्रयासों को निर्देशन देता है जो संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए होते हैं। प्रत्येक विभाग तथा कर्मचारी पूर्व निर्धारित मानकों से बंधा हुआ होता है तथा वे आपस में सुव्यवस्थित ढंग से एक से भली-भांति समन्वित होते हैं।
- कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार (Improving Employee Motivation)- एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली में कर्मचारियों को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या कार्य करना है अथवा उनसे किस कार्य को करने की आशा की जाती हैं।
- आदेश एवं अनुशासन की सुनिश्चितता (Ensuring Order and Discipline)- नियंत्रण से संगठन का वातावरण आदेश एवं अनुशासनमय हो जाता है। इससे अकर्मण्य कर्मचारियों की क्रियाओं का निकट से निरीक्षण करके उनके असहयोग व्यवहार को कम करने में सहायता मिलती है।
- नियंत्रण की सीमाएँ (Limitations of Controlling):-
- परिमाणात्मक मानकों के निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in Setting Quantitative Standards)- जब मानकों को परिमाणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता तो नियंत्रण प्रणाली का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। इसलिए निष्पादन का आकलन तथा मानकों से उनकी तुलना करना कठिन कार्य होता है।
- बाह्य घटकों पर अल्प नियंत्रण (Little Control on External Factors)- सामान्य तौर पर एक उद्यम बाह्य घटकों, जैसे सरकारी नीतियों, तकनीकी परिवर्तनों, प्रतियोगिताओं आदि पर नियंत्रण नहीं कर पाता।
- कर्मचारियों से प्रतिरोध (Resistance From Employees)- अधिकतर कर्मचारी इसका विरोध करते हैं। उनके मतानुसार, नियंत्रण उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। उदाहरणार्थ यदि कर्मचारियों को गतिविधियों पर क्लोज सर्किट टेलीविजन द्वारा निगाह रखी जाती है तो वे इसका विरोध करते हैं
- महंगा सौदा (Costly Affair)- नियंत्रण में खर्चा, समय तथा प्रयासों की मात्रा अधिक होने के कारण, यह एक महंगा सौदा है एक छोटा उद्यम महँगी नियंत्रण प्रणाली को वहन नहीं सकता, क्योंकि इसमें होने वाले खर्चे एक छोटे उद्यम के लिए न्यायसंगत नहीं होते।
- नियोजन एवं नियंत्रण में संबंध (Relationship Between Planning And Controlling):-
- नियोजन एवं नियंत्रण की एक-दूसरे पर निर्भरता ( Interdependence between Planning and Controlling): प्रबन्ध के नियोजन एवं नियंत्रण कार्यों में गहरा संबध है इनके संबध के महत्व को दर्शाते हुए प्राय कहा जाता है कि नियोजन, नियंत्रण के अभाव में अर्थहीन है और नियंत्रण, नियोजन के अभाव में अंधा है। नियोजन एवं नियंत्रण की एक-दूसरे पर निर्भरता के दोनों पहलुओं की व्याख्या निम्नलिखित है:
- नियोजन, नियंत्रण के अभाव में अर्थहीन है (Planning is meaningless without Controlling): नियोजन एवं नियंत्रण की निर्भरता के पहले भाग में कहा गया है कि नियोजन तभी सफल होता है जबकि नियंत्रण विद्यमान हो अर्थात् यदि नियंत्रण विद्यमान न हो तो नियोजन किया जाना व्यर्थ है।
- नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा है (Controlling blind without Planning): नियंत्रण के अंतर्गत वास्तविक कार्य निष्पादन की तुलना प्रमापों से की जाती है। अतः यदि प्रमाप निश्चित न किए जाएं तो नियंत्रण का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा और प्रमाप नियोजन के अंतर्गत ही निश्चित किए जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा अथवा आधारहीन होता है।
- नियोजन एवं नियंत्रण में विभिन्नता (Difference between Planning and Controlling): नियोजन एवं नियंत्रण एक-दूसरे के बिना अपूर्ण एवं प्रभावहीन हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इनके बीच कोई अंतर नहीं है। इनके बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
- नियोजन आगे देखना है जबकि नियंत्रण पीछे देखना (Planning Looking Ahead whereas Conrolling is Looking Back): योजना हमेशा भविष्य के लिए बनाई जाती हैं और निर्दिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य में की जाने वाली कार्यवाही को निर्धारित करती हैं। इसके विपरीत नियंत्रण को पीछे देखने की प्रक्रिया कहा जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत प्रबन्धक, कुछ कार्य पूरा हो जाने के बाद ही यह देखता है कि कार्य प्रमापों के अनुसार हुआ अथवा नहीं। लेकिन नियोजन एवं नियंत्रण के अंतर को उपरोक्त तथ्य के विपरीत करके भी कहा जा सकता है अर्थात् नियोजन पीछे देखना है जबकि नियंत्रण आगे देखना।
- नियोजन प्रबंधकीय प्रक्रिया का पहला कार्य है तथा नियंत्रण अंतिम (Planning is the First Function and Controlling is the Last Function of Managerial Process): प्रबन्धकीय प्रक्रिया एक निक्षित क्रम जैसे- नियोजन, संगठन, नियुक्ति, निर्देशन एवं नियंत्रण। इस क्रम से स्पष्ट होता है कि नियोजन प्रबन्धकीय प्रक्रिया का प्रथम कदम है जबकि नियंत्रण अंतिम।
- नियंत्रण प्रक्रिया (Controlling Process):-
नियंत्रण एक विधिवत् प्रक्रिया है जिसमें निम्न कदम निहित है:
- निष्पादन मानकों का निर्धारण
- वास्तविक निष्पादन की माप
- मानकों एवं वास्तविक निष्पादन की तुलना
- विचलनों का विश्लेषण
- सुधारात्मक कार्यवाही करना।
- निष्पादन मानकों का निर्धारण (Setting Performance Standards)-
- मानक एक मापदंड है जिसके तहत वास्तविक निष्पादन की माप की जाती है।
- मानकों को परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों रूपों में निर्धारित किया जा सकता है।
- मानकों का निर्धारण करते समय प्रबंधक को चाहिए कि वह मानकों संक्षिप्त परिमाणात्मक शब्दों में निर्धारित करें ताकि उनकी तुलना वास्तविक निष्पादन से आसानी से हो सके।
- मानक इतने लचीले हो कि आवश्यकतानुसार सुधारे जा सकें।
- व्यवसाय के आंतरिक एवं बाह्य वातावरण में परिवर्तन होने पर कुछ सुधारों की आवश्यकता हो सकती है वे परिवर्तन व्यावसायिक वातावरण के अनुरूप ही होने चाहिए।
- वास्तविक निष्पादन की माप (Measurement of Actual Performance)-
- एक बार निष्पादन मानकों का निर्धारण कर लिया जाता है तो अगला कदम वास्तविक निष्पादन को माप होता है।
- निष्पादन की माप उद्देश्यपूर्ण तथा विश्वसनीय विधि से होनी चाहिए।
- निष्पादनों की माप की बहुत-सी तकनीकियाँ हैं। इनमें व्यक्तिगत देख-रेख, नमूना जाँच, निष्पादन रिपोर्ट आदि सम्मिलित हैं
- जहाँ तक संभव हो निष्पादन की माप उसी इकाई में हो जिसमें मानकों का निर्धारण हुआ है।
- वास्तविक कार्य प्रगति को मापते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिएं:
(i) कार्य प्रगति के आंकड़े यथासंभव पूर्णतया सही होने चाहिए।
(ii) ये आंकड़े निरंतर तैयार किए जाने चाहिएं।
(iii) प्रगति मापने के मापदंड वैसे ही होने चाहिएं जैसे कि प्रमाप तय करने के लिए इस्तेमाल किए गए हैं।
(iv) प्रगति मापन पद्धति शीघ्र विचलन प्रकट करने वाली होनी चाहिए।
- वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना (Comparing Actual Performance with Standards)-
कार्यवाही में वास्तविक निष्पादन की तुलना निर्धारित मानकों से की जाती है। ऐसी तुलना में इच्छित तथा वास्तविक परिणामों में अंतर हो सकता है। मानकों का निर्धारण यदि परिमाणात्मक शब्दों में किया जाता है तो तुलना सरल होती है।
- विचलन विश्लेषण (Analysing Deviations)-
इस प्रकार के क्रियाकलापों में कार्य संपूर्ण होने में कुछ विचलनों का होना स्वाभाविक हैं। विचलनों के लिए अधिकतम व न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण किया जाता हैं। इस संबंध में निम्नलिखित दो सिद्धांत महत्वपूर्ण है-
- जटिल या संकट बिंदु नियंत्रण (Critical Point Control)- नियंत्रक द्वारा उन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो अति जटिल हैं तथा संगठन की प्रगति में बाधक हैं। यही मुख्य परिणाम क्षेत्र जटिल बिंदु कहलाता है। यदि जटिल बिंदु गलत होता है तो उसका परिणाम संपूर्ण संगठन को भुगतना पड़ता है।
- अपवाद द्वारा प्रबंध (Management by Exception)- यह प्रबंध का अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है कि यदि आप सभी चीजों को नियंत्रित करने का प्रयास करते है तो किसी भी चीज को नियंत्रित नहीं कर पाते। इस सिद्धांत का मानना हैं कि केवल महत्वपूर्ण विचलनों को ही उच्च प्रबंध के ध्यान मे लाना चाहिए।
- सुधारात्मक कार्यवाही करना (Taking Corrective Action)-
- नियंत्रण प्रक्रिया का अंतिम चरण सुधारात्मक कार्यवाही करना है।
- यदि विचलन अपनी निर्धारित सीमा के अंतर्गत हैं तो किसी सुधारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- यदि विचलन अपनी निर्धारित सीमा लांघ जाते हैं विशेषकर महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में, तो प्रबंधकीय कार्यवाही की तुरंत आवश्यकता होती है ताकि विचलन फिर अपना सिर न उठा सके तथा मानकों को प्राप्त किया जा सके।
- यदि प्रबंधकों के प्रयासों से विचलनों को ठीक रास्ते पर न लाया जा सकता हो तो मानकों का पुनः निरीक्षण करना चाहिए।
- प्रबंधकीय नियंत्रण की तकनीक (Techniques of Managerial Control):-
प्रबंधकीय नियंत्रण की विभिन्न तकनीकों को मुख्यतः दो विस्तृत श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है (1) पारंपरिक तकनीक (2) आधुनिक तकनीक
- पारंपरिक तकनीक (Traditional Techniques):-
पारंपरिक तकनीकों से तात्पर्य उन तकनीकों से है जिनका उपयोग कंपनियाँ लंबे समय से करती चली आ रही हैं। फिर भी ये तकनीके आज भी अप्रचलित नहीं हुई हैं तथा अभी भी कंपनियाँ इनका उपयोग कर रही हैं। इनमें निम्न सम्मिलित है-
- व्यक्तिगत अवलोकन या निरीक्षण
- सांख्यकीय रिपोर्टस प्रतिवेदन
- बिना हानि-लाभ व्यापार विश्लेषण
- बजटीय नियंत्रण
- व्यक्तिगत अवलोकन (Personal Observation):-
- यह नियंत्रण की सर्वाधिक पारंपरिक विधि है। प्रबंधक का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करना उसे सर्वप्रथम सूचना प्राप्त करने में सहायक होता है।
- यह कर्मचारियों पर इस बात का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाती है कि वे अपना कार्य अच्छी से अच्छी विधि से करें। क्योंकि काम करते समय उन्हें इस बात का आभास रहता है कि वे अपने उच्चाधिकारियों को व्यक्तिगत निगरानी में हैं।
- यद्यपि यह अधिक समय लेने वाली क्रिया है तथा सभी प्रकार के उद्योग में प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग में नहीं लाई जा सकती है।
- सांख्यकीय प्रतिवेदन (रिपोर्ट्स) (Statistical Reports):-
- साख्यकीय विश्लेषण, औसत, प्रतिशत, अनुपात, परस्पर संबंध आदि के रूप में प्रबंधकों को संगठन के विभिन्न क्षेत्रों के निष्पादन की उपयोगी सूचनाएँ प्रस्तुत करता है।
- जब इन सूचनाओं को चार्ट, ग्राफ या सारणी आदि के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो प्रबंधकों को विगत वर्षों के निष्पादन का तुलनात्मक अध्ययन करने में आसानी रहती है।
- बिना लाभ-हानि व्यापार विश्लेषण (Breakeven Analysis):-
- बिना लाभ-हानि व्यापार विश्लेषण एक तकनीक है जिसका उपयोग प्रबंधकों द्वारा लागत, आकार तथा लाभों में संबंध का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
- इससे विभिन्न क्रियाओं के विभिन्न स्तरों पर होने वाले संभावित लाभ या हानि का निर्धारण किया जाता है।
- बिना लाभ-हानि व्यापार बिंदु की गणना निम्नलिखित सूत्र से भी की जा सकती है।
- बिना लाभ-हानि व्यापार बिंदु = स्थिर लागत ÷ विक्रय मूल्य प्रति यूनिट-परिवर्तनीय लागत प्रति यूनिट
- बजटीय नियंत्रण (Budgetary Control):-
- बजटीय नियंत्रण प्रबंधकीय नियंत्रण की वह तकनीक है जिसके अंतर्गत सभी कार्यों का नियोजन पहले से ही बजट के रूप में किया जाता है तथा वास्तविक परिणाम की तुलना बजटीय मानकों से की जाती है।
- बजट एक परिमाणात्मक विवरण है जिसका निर्माण भविष्य के लिए तैयार की गई नीतियों का उस समय में अनुगमन करने के लिए किया जाता है।
- बजट बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं-
- बजट के केंद्र बिंदु, विशिष्ट तथा लक्ष्य की समय सीमा होते हैं। अत: यह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
- बजट कर्मचारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। उनको यह भली-भांति ज्ञान होता है कि हमारे निष्पादन का किन मानकों के आधार पर मूल्यांकन होगा। इस तरह बजट उन्हें कार्य के अच्छे निष्पादन के लिए सामर्थ्यवान बनाता है।
- बजट विभिन्न विभागों को उनकी आवश्यकतानुसार संसाधनों का आबंटन करके उनके अधिकतम उपयोग में सहायता करता है।
- बजट एक संगठन के विभिन्न विभागों में सामंजस्य बनाए रखने तथा उनके अपने अस्तित्व को पृथक बनाए रखने में भी सहायता करता है।
- यह प्रबंधन में अपवादों द्वारा उन प्रक्रियाओं पर दबाव बनाकर सहायता करता है जो बजटीय मानकों से एक महत्त्वपूर्ण दिशा में विचलित होती हैं।

- आधुनिक तकनीक (Modern Techniques):-
आधुनिक तकनीकों से तात्पर्य उन तकनीकों से है जिनका उदय अभी-अभी हुआ है। इन तकनीकों में उन नयी विचारधारा को जन्म मिलता है जिनके माध्यम से संगठन में उचित नियंत्रण किया जा सकता है। ये निम्नलिखित हैं -
- विनियोगों पर आय
- अनुपात विश्लेषण
- उत्तरदायित्व लेखांकन
- प्रबंध अंकेक्षण
- कार्यक्रम मूल्यांकन तथा पुनर्विचार
- निवेश पर प्रत्याय (Return on Investment):-
निवेश पर प्रत्याय एक उपयोगी तकनीक है जिससे हमें वे आधारभूत मानदंड मिलते हैं जो विनियोजित पूँजी के प्रभावूपर्ण ढंग से विनियोजन को मापने में सहायक होते हैं तथा इस बात का बोध कराते हैं कि पूँजी पर संतुलित लाभ उपार्जित हो रहे हैं या नहीं। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-
निवेश पर प्रत्याय= निवल आय÷ विनियोजित पूँजी
- अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis):-
अनुपात विश्लेषण से तात्पर्य वित्तीय विवरणों का विभिन्न अनुपातों को गणना करके विश्लेषण से है। विभिन्न संगठनों द्वारा अधिकतर उपयोग में आने वाले विभिन्न अनुपातों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)- तरलता अनुपात की गणना व्यवसाय की अल्पकालीन देयता के निर्धारण के लिए जाती है। इस अनुपात से यह पता लगता है कि कंपनी अपनी अल्पकालीन संपत्तियों से अपने अल्पकालीन दायित्वों का भुगतान करने के लिए सामध्यवान है या नहीं।
- शोधन क्षमता अनुपात (Solvency Ratio)- ये अनुपात जिसकी गणना कंपनी की दीर्घकालीन शोधन क्षमता की जाँच करने के लिए की जाती है शोधन क्षमता अनुपात कहलाते हैं।
- लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratio)- इन अनुपातों की गणना कंपनी की लाभदायकता की गणना करने के लिए की जाती है। इन अनुपातों में लाभ की गणना बिक्री या कोष अथवा विनियोजित पूँजी के संबंधित विश्लेषण से होती है।
- आवर्त अनुपात (Turnover Ratio)- ये अनुपात यह बताते हैं कि कोई संस्था अपने व्यवसाय में लगी हुई संपत्तियों का कितनी कार्यकुशलता से उपयोग कर रही है यह अनुपात जितना ऊँचा होगा उतना ही संसाधनों का उपयोग अच्छा समझा जाएगा।
- उत्तरदायित्व लेखाकरण (Responsibility Accounting):-
यह लेखांकन की एक विधि है जिसके अंतर्गत एक संगठन के विभिन्न विभागों, खंडों तथा वर्गों को उत्तरदायित्व केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। उत्तरदायित्व केंद्र निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-
- लागत केंद्र (Cost Center)- एक लागत या व्यय केंद्र एक संगठन का वह उपखंड या भाग है जिसका प्रबंधन उस केंद्र पर व्यय होने वाली लागत के लिए तो उत्तरदायी होता है लेकिन आगम के लिए नहीं।
- आगम केंद्र (Revenue Center)- आगम केंद्र एक संस्थान का वह उपखंड या भाग है जो मुख्य रूप से आगम संवर्धन के लिए उत्तरदायी होता हैं।
- लाभ केंद्र (Profit Center)- लाभ केंद्र एक संस्थान का वह उपखंड है जिसका प्रबंधक आगम एवं लागत दोनों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है।
- विनियोग केंद्र (Investment Center)- एक विनियोग केंद्र केवल लाभ के लिए ही उत्तरदायी नहीं होता है बल्कि कंपनियों के रूप में केंद्र में विनियोगों के लिए भी उत्तरदायी होता है।
- प्रबंध अंकेक्षण (Management Audit):-
प्रबंध अंकेक्षण से तात्पर्य एक संगठन के संपूर्ण निष्पादन की विधिवत समीक्षा से है। इसका उद्देश्य प्रबंध की दक्षता तथा प्रभाविता का पुनरावलोकन करना है तथा भविष्य में इसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाना है। प्रबंध अंकेक्षण के मुख्य लाभ निम्नानुसार हैं-
- प्रबंधकीय कार्यों के निष्पादन में वर्तमान एवं संभावित कमियों को बतलाने में सहायक होता हैं।
- यह एक संगठन के निष्पादन प्रबंध को लगातार अनुश्रवण कर (मॉनीटरिंग) उसकी नियंत्रण प्रणाली को उन्नतिशील बनाने में सहायक होता है।
- विभिन्न कार्यशील विभागों में समन्वय को उन्नतिशील बनाता है जिससे वे उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रभावपूर्ण विधि से साथ-साथ कार्य करते हैं।
- वातावरणीय परिवर्तनों के साथ-साथ यह वर्तमान प्रबंधकीय नीतियों तथा मुक्तियों को आधुनिक बनाने का आश्वासन देता है।
- पुनरावलोकन तकनीक एवं आलोचनात्मक उपाय प्रणाली (Programme Evaluation and Review Technique and Critical Path Method):-
ये तकनीक नियोजन, सूचीयन तथा विभिन्न प्रकार के समयबद्ध परियोजनाओं को लागू करने जिनमें विभिन्न जटिल समस्याओं का निष्पादन निहित है, विशेष तौर से उपयोगी है। कार्यक्रम मूल्यांकन तथा पुनरावलोकन तकनीक, आलोचनात्मक उपाय प्रणाली के उपयोग में निहित कदम निम्नलिखित हैं-
- परियोजना विभिन्न प्रकार को स्पष्ट पहचान योग्य एवं सुव्यस्थित क्रियाओं में विभाजित होती है जो तर्कसंगत अनुक्रम में व्यवस्थित की जाती है।
- परियोजना को क्रियाओं प्रारंभिक बिंदुओं तथा अंतिम बिंदुओं के अनुक्रम को स्पष्ट करने के लिए नेवटक आरख (डायग्राम) तैयार किया जाता है।
- नेटवर्क में सबसे लंबी विधि को जटिल विधि के रूप में समझा जाता है। इससे उन क्रियाओं का क्रम प्रस्तुत होता है जो परियोजना को समय से पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा जहाँ कोई भी विलंब, बिना पूर्ण परियोजना में विलंब किए स्वीकृत नहीं है।
- आवश्यकतानुसार योजना में परिवर्तन किया जा सकता है ताकि परियोजना का समय के अनुसार पूरा करना तथा संपादन नियंत्रण में रहे।
- प्रबंधन सूचना पद्धति (Management Information System):-
प्रबंधन सूचना पद्धति (प्र. सू. प.) कंप्यूटर पर अआधारित सूचना पद्धति है जो सूचना सुलभ कराती है तथा प्रभावी प्रबंधकीय निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। प्रबंध सूचना पद्धति एक महत्त्वपूर्ण नियंत्रण तकनीक भी सुलभ कराती है। यह प्रबंधकों को समय अनुसार समय एवं आवश्यक सूचना देती है ताकि मानकों से विचलन की दशा में उपयुक्त सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके।
- प्रबंधन सूचना पद्धति के प्रबंधकों को लाभ (Merits of Management Information System to the Managers):-
- यह संगठन में संचालन, प्रबंधन तथा प्रबंध के विभिन्न स्तरों एवं विभिन्न विभागों के दूसरी ओर सूचनाओं के प्रसार को सरल बनाती है।
- यह सभी स्तरों पर नियोजन, निर्णय लेने तथा नियंत्रण को सहायता प्रदान करती है।
- सूचनाओं की गुणवत्ता में जिसकी प्रबंधन को काम करने के लिए आवश्यकता होती है सुधार करती है।
- प्रबंधकीय सूचनाओं की लागत प्रभाविता को सुनिश्चित करती है।
- यह प्रबंधकों पर सूचनाओं का अधिक भार नहीं होने देती क्योंकि उन्हें केवल संबंधित सूचनाएँ ही सुलभ कराई जाती हैं।