Class 12th प्रारंभिक समष्टि अर्थशास्त्र (Introductory Macroeconomics)

 Chapter 2 - राष्ट्रीय आय का लेखांकन (National Income Accounting) 

  • समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ आधारभूत धारणाएँ (Some Basic Concepts of Macro Economics):-
  1. उपभोग वस्तुएँ (Consumption Goods)- उपभोग या उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उपभोक्ता द्वारा अंतिम उपभोग के लिए खरीदी और उपभोग की जाती हैं और उन्हें आगे उत्पादन क्रिया में प्रयोग नहीं किया जाता। उपभोक्ता वस्तुएँ दो प्रकार की होती है:-
  1. टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods):- अधिक लम्बे समय तक स्थिर बनी रहने वाली वस्तुओं को टिकाऊ वस्तुएँ कहा जाता है। इन वस्तुओं की आयु लंबी होती है और ये लंबी अवधि तक लगातार उपभोक्ता की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर, कार, स्कूटर आदि टिकाऊ वस्तुओं के उदाहरण हैं।
  1. गैर टिकाऊ वस्तुएँ (Non Durable Goods):- गैर टिकाऊ वस्तुओं का जीवन छोटा होता है और वे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को अल्पकाल के लिए ही पूरा करती हैं। स्टेशनरी वस्तुएँ, खाद्य सामग्री, साबुन, सब्जी, फल आदि गैर टिकाऊ वस्तुओं के उदाहरण हैं।
  1. पूँजीगत वस्तुएँ (Capital Goods)- पूँजीगत वस्तुएँ उन उत्पादक वस्तुओं को सूचित करती है जिनका प्रयोग उपभोग के लिए नहीं किया जाता बल्कि अगली उत्पादन प्रक्रिया में पुनर्विनियोजित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एक सिलाई मशीन दर्जी के लिए पूँजीगत वस्तु है जिसका उत्पादन क्रिया में प्रयोग होता है जबकि एक सिलाई मशीन जो घरेलू महिला घर को सिलाई के लिए प्रयोग करती है तब बह सिलाई मशीन उपभोग वस्तु है  न कि पूँजीगत वस्तु।
  1. अंतिम वस्तुएँ (Final Goods):- अंतिम वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से हैं जिनका प्रयोग किसी अन्य वस्तु के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में नहीं होता बल्कि प्रत्यक्ष रूप में घरेलू क्षेत्र के उपभोग में किया जाता है। केवल अंतिम वस्तुओं के उत्पादन को राष्ट्रीय आय की गणना में सम्मिलित किया जाता है।
  1. मध्यवर्ती वस्तुएँ Intermediate Goods)- एक फर्म का ऐसा उत्पाद जिसका अन्तिम उपभोग न होकर किसी दूसरी उत्पादन प्रक्रिया में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है, मध्यवर्ती वस्तु कहलाता है। दुसरे शब्दों में मध्यवर्तों वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिसे एक फर्म द्वारा दुसरी फर्म से कच्चे माल के रूप में खरीदा जाता है।
  • स्टॉक एवं प्रवाह (Stock and Flow):-
  1. स्टॉक का सम्बन्ध एक समय बिंदु (Point of Time) या किसी निश्चित समय से होता है जबकि प्रवाह वह मात्रा है जो एक समयावधि (Period of Time) में मापी जाती है।
  1. स्टॉक का समय काल (Time Dimension) नहीं होता जबकि प्रवाह का समय काल होता है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की सम्पत्ति स्टॉक है क्योंकि यह एक निश्चित समय पर व्यक्ति के वस्तु भंडार को बताती है जबकि व्यक्ति की आय एक प्रवाह है जिसका सम्बन्ध एक समय काल से है जैसे - एक माह आदि।
  • स्टॉक एवं प्रवाह के उदाहरण (Examples of Stock and Flow):-

            स्टॉक (Stock)                                                       

  1. सम्पत्ति
  2. दो स्थानों के बीच की दूरी
  3. एक टैंक में जल
  4. मुद्रा की मात्रा
  5. पूँजी
  6. एक देश में मुद्रा की पूर्ति
  7. श्रम बल
  8. बैंक जमाएँ
  9. देश की जनसंख्या
  10. गोदाम में संग्रहित गेहूँ

प्रवाह (Flow)

  1. आय
  2. चलती गाड़ी की गति
  3. नदी का जल
  4. मुद्रा का व्यय
  5. पूँजी निर्माण
  6. देश की मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन
  7. पूँजी पर ब्याज
  8. टंकी से पानी का रिसाव
  9. गेहूँ का विक्रय
  10. जन्म लेने वाले बच्चों को संख्या
  • निवेश (Investment):- पूँजी निर्माण की प्रक्रिया निवेश है अर्थात् पूँजी के स्टॉक में वृद्धि निवेश है।
  • निवेश के प्रकार (Types of Investment):-
  1. स्थिर निवेश (Fixed Investment)
  2. माल सूची निवेश (Inventory Investment)

एक लेखा वर्ष की अवधि में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि स्थिर निवेश (Fixed Investment) कहलाती है जबकि दूसरी ओर एक वर्ष के दौरान माल सूची स्टॉक में होने वाले परिवर्तन को उत्पादक का माल सूची निवेश (Inventory Investment) कहते है।

  • सकल निवेश एवं शुद्ध निवेश (Gross Investment and Net Investment):-

फर्म (अथवा अर्थव्यवस्था) द्वारा उत्पादकीय उपकरणों पर किया गया कुल व्यय सकल निवेश को बताता है। यदि हम सकल निवेश में से घिसावट (अथवा मूल्य ह्रास) घटा दें तो हमें शुद्ध निवेश प्राप्त होता है।

शुद्ध निवेश = सकल निवेश - मूल्य ह्रास

Net Investment = Gross Investment - Depreciation

  • घिसावट या मूल्य ह्रास (Depreciation):-
  1. उत्पादन प्रक्रिया के दौरान स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली घिसावट को मूल्य ह्रास कहा जाता है।
  2. मूल्य ह्रास का प्रतिशत स्थिर परिसम्पत्ति की आयु के आधार पर निकाला जाता है। जब स्थिर परिसम्पत्ति के मूल्य को उसके आयु वर्षों से भाग दिया जाता है तब हमें मूल्य ह्रास की वार्षिक राशि प्राप्त होती है।
  3. यह मूल्य ह्रास राशि व्यापारिक खर्चो का एक अंग है जिसे शुद्ध लाभ की गणना के लिए सकल लाभ में से घटाया जाता है।
  • आय का चक्रीय प्रवाह : अवधारणा (Circular Flow of Income : Concept)

उत्पादन के विभिन्न साधनों के पारस्परिक सहयोग से उत्पादन कार्य सम्पन्न होता है। उत्पादन में संलग्न साधनों को प्रतिफल प्राप्त होता है: जैसे-भूमि को लगान, श्रम को मजदूरी का वेतन, पूँजी को ब्याज और उद्यमी को लाभ। व्यावसायिक फर्में इन उत्पादन साधनों के सामूहिक उपयोग से वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती हैं। उत्पादन साधनों के स्वामी केवल साधन पूर्तिकर्ता ही नहीं वरन् ये साथ-साथ उपभोक्ता भी होते हैं। अतः वे साधनों से अर्जित आय को उपभोग पर व्यय करते हैं। इससे व्यावसायिक फर्मों की वस्तुओं और सेवाओं को बिक्री से आय प्राप्त होती है जिसको वे पुन: वस्तुओं और सेवाओं के पुनरुत्पादन के लिए उत्पादन साधनों पर व्यय करते हैं। इस प्रकार आय प्रवाह चक्रीय होता है।

आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मौद्रिक आय के प्रवाह या वस्तुओं और सेवाओं के चक्रीय रूप में प्रवाह से है।

  • आय के चक्रीय प्रवाह के सिद्धान्त (अथवा कारण) (Principles or Reasons of Circular Flow of Income):-

आय का चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित दो सिद्धांतों (अथवा कारणों) पर आधारित है:-

  1. विक्रेताओं द्वारा खर्च की गई राशि विक्रेताओं द्वारा प्राप्त की गई राशि के बराबर होती है।
  1. वस्तुएँ तथा सेवाएँ विक्रेताओं से क्रेताओं की ओर एक दिशा में प्रवाहित होती हैं जबकि इन वस्तुओं और सेवाओं के लिए मौद्रिक भुगतान विपरीत दिशा में अर्थात क्रेता से विक्रेता को और प्रवाहित होता है।
  • आय के चक्रीय प्रवाह के दो क्षेत्रीय मॉडल (Two Sector Model of Circular Flow of Income)

आय के चक्रीय प्रवाह के दो क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के केवल दो क्षेत्रों - घरेलू क्षेत्र (अर्थात् परिवार) तथा उत्पादक क्षेत्र ( अर्थात् फर्म) के बीच होने वाले चक्रीय प्रवाहों (वास्तविक एवं मौद्रिक) का अध्ययन किया जाता है।

  • मान्यताएँ (Assumptions):-
  1. घरेलू क्षेत्र (Household Sector)- यह क्षेत्र उत्पादक क्षेत्र को उत्पादन के कारकों की सेवाएँ प्रदान करता है तथा उत्पादक क्षेत्र द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग पर व्यय करता है।
  1. उत्पादक क्षेत्र (Producer Sector)- यह क्षेत्र अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं को उत्पन्न करता है। यह क्षेत्र उत्पादन के कारकों की सेवाओं जैसे-श्रम, पूँजी आदि का प्रयोग करता है और बदले में उन्हें कारक अदायगी देता है।
  1. सरकार का आर्थिक क्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  1. अर्थव्यवस्था एक बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy) है अर्थात् उत्पादक क्षेत्र द्वारा वस्तुओं का निर्यात या आयात नहीं किया जाता है और घरेलू क्षेत्र केवल घरेलू उत्पादन पर निर्भर रहता है।
  1. घरेलू क्षेत्र अपनी संपूर्ण आय वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय करते हैं अर्थात् कोई बचत नहीं करते।
  • राष्ट्रीय आय की परिभाषाएँ (Definition of National Income):

किसी देश के उत्पादन साधनों द्वारा किसी वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के भौतिक मूल्य को राष्ट्रीय आय (National Incone) कहते है ।

  • साधन लागत  तथा बाजार कीमत (Factor Cost and Market Prices):-
  1. साधन लागत (Factor Cost) - उत्पादन के साधनों को किसी वस्तु के उत्पादन में योगदान देने के बदले में जो कुछ भुगतान किया जाता है उसे साधन लागत कहते है।
  1. बाजार कीमत (Market Prices) - जिस कीमत पर एक वस्तु बाजार में खरीदी या बेची जाती है वह वस्तु की बाज़ार कीमत कहलाती है।

 बाजार कीमत (MP) = साधन लागत (FC) + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT)

शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) = अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) - सहायिकी (Subsidies)

  • विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad)

देश के सामान्य निवासियों द्वारा शेष विश्व को प्रदान की गई साधन सेवाओं से आय शेष विश्व द्वारा उन्हें प्रदान की गई सेवाओं से आय को घटाकर प्राप्त आय को विदेशों से शुद्ध साधन आय कहते हैं।

शुद्ध साधन आय= शेष विश्व को प्रदान की गई साधन सेवाओं से आय - शेष विश्व द्वारा उन्हें प्रदान की गई सेवाओं से आय

उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि (Product Method or Value Added Method):-

उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष के दौरान एक अर्थव्यवस्था में प्रत्येक उत्पादक उद्यम द्वारा की गई मूल्य वृद्धि (Value Addition) के रूप में राष्ट्रीय आय को मापती है।

  • मूल्य वृद्धि की अवधारणा (The Concept of Value Addition):- मूल्य वृद्धि किसी उद्यम के उत्पाद के मूल्य तथा इसके मध्यवर्ती उपभोग के मूल्य के बीच का अंतर है।
  • उत्पाद का मूल्य (The Value Addition):- इससे अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान किसी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं के बाजार मूल्य से है।
  1. यदि एक लेखा वर्ष में उत्पादक का समस्त उत्पाद बिक जाता है तब उत्पाद का मूल्य:-

उत्पाद का मूल्य = वर्ष के दौरान बिक्री (Sales during the year)

  1. यदि उत्पादन का कुछ भाग बिना बिका (Unsold) रह जाता है तब उत्पाद का मूल्य:-

उत्पाद का मूल्य = वर्ष के दौरान बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (Change in Stock)

स्टॉक में परिवर्तन (Change in Stock) = अंतिम स्टॉक - प्रारंभिक स्टॉक

  • मूल्य वृद्धि का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय आय का आकलन (Measurement of National Income using Value Added Method):-
  1. प्राथमिक क्षेत्र में सभी उत्पादक उद्यमियों द्वारा की गई सकल मूल्य वृद्धि (GVA)

+

  1. द्वितीयक क्षेत्र में सभी उत्पादक उद्यमियों द्वारा की गई सकल मूल्य वृद्धि

+

  1. तृतीयक क्षेत्र में सभी उत्पादक उद्यमियों द्वारा की गई सकल मूल्य वृद्धि

=

GDPMP (बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि या सकल घरेलू उत्पाद)

-

  1. मूल्यह्रास (Depreciation)

=

NDPMP (बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद)

-

  1. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

=

NDPFC (साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद या घरेलू आय)

+

  1. विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad)

=

NNPFC (साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय)

  • उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण सावधानियाँ (Precautions regarding Product Method or Value Added Method):-
  1. पुरानी वस्तुओं के क्रय विक्रय को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि इनके मूल्य को उस वर्ष की राष्ट्रीय आय में ही शामिल कर लिया जाता है जिसमें इनका उत्पादन हुआ था।
  1. पुरानी वस्तुओं के व्यापारियों की दलाली या कमीशन को 'मूल्य वृद्धि' या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में शामिल किया जाता है क्योंकि कमीशन या दलाली से प्राप्त राशि एजेंटों की सेवाओं का पुरस्कार होता है।
  1. सभी उत्पादक इकाइयों द्वारा किए गए स्वलेखा उत्पादन को मूल्य वृद्धि में शामिल किया जाता है क्योंकि स्वयं उपभोग वस्तुएँ भी उसी प्रकार की होती हैं जिस प्रकार की बाजार में बिक्री के लिए उत्पादित वस्तुएँ होती हैं। उन्हें बाजार में इसलिए नहीं बेचा जाता क्योंकि उत्पादकों को उनकी आवश्यकता होती है। उदाहरण: कार उत्पादक द्वारा अपने कर्मचारियों को लाने-ले जाने के लिए कारों का प्रयोग करना।
  1. स्व-उपभोग के लिए उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल किया जाता है क्योंकि ये वस्तुएँ उसी प्रकार की होती हैं जिस प्रकार की बाजार में बेची जाने वाली वस्तुएँ होती हैं। उदाहरण: खेती करने वाले परिवारों द्वारा स्वयं ही गेहूँ का उत्पादन करना तथा उपभोग करना।
  1. मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य अंतिम वस्तुओं के मूल्य में शामिल होता है।
  1. जिन मकानों में मालिक खुद रह रहे हैं उनका आरोपित किराया शामिल किया जाता है क्योंकि सभी मकानों का किराया मूल्य (Rental Value) होता है चाहे उनमें मकान मालिक स्वयं रहे या उन्हें किराये पर दिया गया है।
  1. स्व-उपभोग सेवाओं को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इनके बाजार मूल्य का अनुमान लगाना कठिन होता है। उदाहरण के लिए, गृहणियों की सेवाओं का मूल्य।
  • दोहरी गणना की समस्या (Problem of Double Counting): राष्ट्रीय आय के आकलन की उत्पाद विधि द्वारा दोहरी गणना (Double Counting) की समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब कुछ निश्चित वस्तुओं के मूल्य की गणना एक बार से अधिक कर ली जाती है। ऐसा तब होता है जब हम अतिम वस्तुओं  तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में भेद करने में असफल होते हैं। जैसे पहले गन्ने के उत्पादन की गणना कर ली जाए तथा बाद में उससे उत्पादित शक्कर की गणना भी राष्ट्रीय आय में कर ली जाए। इससे राष्ट्रीय आय का सही अनुमान नहीं लग पाता ।
  • व्यय विधि (Expenditure Method): इस विधि के अनुसार एक लेखा वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने के लिए किए गए व्यय के रूप में राष्ट्रीय आय को मापा जाता है। एक लेखा वर्ष के दौरान एक देश की घरेलू सीमा के अंदर उत्पादित अंतिम वस्तुओं पर किए गए व्यय का अनुमान बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के बराबर होता है।
  • अंतिम व्यय का वर्गीकरण (Classification of Final Expenditure):

अंतिम व्यय (एक लेखा वर्ष के दौरान घरेलू उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय) को मोटे तौर पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:-

  1. निजी अतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure-C),
  2. सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (Government Final Consumption Expenditure-G),
  3. Investment Expenditure-I) तथा
  4. शुद्ध निर्यात (X-M)।
  • निजी अंतिम उपभोग व्यय (C) (Private Final Consumption Expenditure):

इससे अभिप्राय व्यक्तियों, परिवारों तथा गैर-लाभवाली निजी संस्थाओं या सेवा संस्थाओं द्वारा अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए व्यय से है। इसमें निम्नलिखित सम्मिलित होते हैं:

  1. उपभोक्ता सेवाएँ।
  2. गैर टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ अर्थात वे वस्तुएँ जिनका बार-बार प्रयोग नहीं किया जा सकता है जैसे-मक्खन तथा दूध।
  3. टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ जिनका कई वर्षों तक बार-बार प्रयोग किया जाता है: जैसे-फर्नीचर तथा वाशिंग मशीन।
  • सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (G) (Government Final Consumption Expenditure-G)

इससे अभिप्राय सरकार द्वारा अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय से है: जैेसे- सेना द्वारा उपभोग के लिए वस्तुओं की खरीद पर व्यय।

  • निवेश व्यय (Investment Expenditure - I)

इससे अभिप्राय उत्पादकों द्वारा अंतिम वस्तुओं की खरीद पर किए गए व्यय से है। इन वस्तुओं का उत्पादन प्रक्रिया में आगे प्रयोग किया जाता है। उदाहरणः किसानों द्वारा ट्रैक्टरों या श्रेशरों के खरीदने पर किया गया व्यय।

  • शुद्ध निर्यात (X-M) [Net Exports (X-M)]

शुद्ध निर्यातों से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में किसी देश द्वारा शेष विश्व को किए गए निर्यात तथा शेष विश्व से किए गए आयात के अंतर से है। निर्यात से अभिप्राय देश की घरेलू सीमा में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं पर विदेशियों द्वारा किए जाने वाले व्यय से है| इसके विपरीत आयात से अभिप्राय उस व्यय से है जो विदेशों में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया जाता है।

  • व्यय विधि का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय आय का माप (Measurement of National Income using Expenditure Method):         

 GDPMP = C+I+G+X-M  

NDPMP = GDPMP - Depreciation

NNPMP = NDPMP +NFIA (Net Factor Income from Abroad)

NNPFC = NNPMP - NIT (Net Indirect Taxes)

  • आय विधि (Income Method):

इस विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय के एक लेखा वर्ष की अवधि के दौरान उत्पादन के कारकों के स्वामियों (श्रमिकों, भू-स्वामियों, पूँजीपतियों तथा उद्यमियों) को उनकी सेवाओं के बदले किए गए भुगतानों (कर्मचारियों का पारिश्रमिक, लगान, ब्याज तथा लाभ) के रूप में मापा जाता है।

  • कारक आय क्या है? (What are Factor Incomes?)
  1. कारक आय से अभिप्राय किसी व्यक्ति द्वारा अर्जित उस आय से है जो उसे कारक सेवा के बदले में प्राप्त होती है| यह उसके श्रम के बदले में मजदूरी/वेतन, उसकी भूमि के लिए लगान, पूँजी के लिए ब्याज़ तथा उद्यमिता (Entrepreneurship) के लिए लाभ के रूप में हो सकती है।
  1. इसमें ऐसी कोई भी आय शामिल नहीं होती जो अर्जित नहीं की गई है अथवा जिसके बदले में कोई सेवा प्रदान नहीं की गई है। ऐसी प्राप्तियों या भुगतानों को हस्तांतरण प्राप्तियाँ या हस्तांतरण भुगतान (Transfer Receipts or Transfer Payments) कहा जाता है। इनको राष्ट्रीय आय के मापन में शामिल नहीं किया जाता।
  • कारक आय का वर्गीकरण (Classification of Factor Incomes): विस्तृत रूप से कारक आय को निम्नलिखित ढंग से वर्गीकृत किया जाता है:-
  1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक (Compensation of Employees): इसमें निम्नलिखित घटक शामिल है:-  
  1. नकद मजदूरी तथा वेतन (Wages and Salaries in Cash)
  2. किस्म के रूप में भुगतान (Payments in Kind)
  3. सामाजिक सुरक्षा में नियोजकों का योगदान (Employer's Contribution to Social Security)
  4. सेवानिवृत्त पेंशन (Pension on Retirement)
  1. प्रचालन अधिशेष (Operating Surplus): इसके अंतर्गत संपत्ति तथा उद्यमशीलता से प्राप्त आय को सम्मानित किया जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित मदें सम्मिलित हैं:-
  1. लगान
  2. ब्याज
  3. लाभ
  1. लाभांश (Dividends)
  2. निगम लाभ कर (Corporate Profit Tax)
  3. अवितरित (प्रतिधारित) लाभ (Undistributed Profits)
  1. मिश्रित आय (Mixed Income): मिश्रित आय स्वनियोजित (Self-Employed) व्यक्तियों की आय को कहते हैं। ये व्यक्ति अपने श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यमशीलता को प्रयोग करके वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते हैं।
  • आय विधि का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय आय का माप (Measurement of National Income using Income Method)

कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय = NDPFC  + NFIA = NNPFC

  • बुनियादी राष्ट्रीय आय समुच्चय (Aggregates related to National Income):-
  1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP):-
  1. GDP एक देश की घरेलू सीमा में एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य है।
  1. इसमें सभी निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा दिए गए उत्पादन को शामिल किया जाता है चाहे उत्पादन का स्वामित्व एक स्थानीय कंपनी का हो या एक विदेशी स्वामित्व का।
  1. इसमें सभी चीजों का मापन बाजार कीमतों पर होता है।

GDPMP =C+I+G+X -M

  1. साधन लागत पर GDP (GDPFC):-
  1. साधन लागत पर GDP बाज़ार कीमतों पर GDP में से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर प्राप्त होती है।

GDPFC =GDP-NIT(Net Indirect Taxes)

  1. बाजार कीमतों पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP):-
  1. इससे नीति निर्धारकों को यह पता चलता है कि चालू GDP को बनाए रखने के लिए देश को कितना खर्चा करना पड़ेगा। यदि मूल्यह्रास के कारण हुई पूँजी स्टॉक की हानि को विस्थापित नहीं किया जाता तो GDP घटेगा।
  1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद में से यदि हम मूल्य ह्यस घटा दें तो हमें बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद प्राप्त हो जायेगा।

NDPMP =GDPMP- Depreciation

  1.  साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC):-
  1. साधन लागत पर NDP उत्पादन के साधनों द्वारा मजदूरी, लाभ, लगान तथा ब्याज़ के रूप में देश की घरेलू सीमा के भीतर अर्जित आय है।

NDPFC= NDPMP- निवल उत्पाद कर - निवल उत्पादन कर

  1. बाज़ार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP):-
  1. एक देश के सभी उत्पादन के साधनों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य GNPMP है तथा इसे बाजार कीमतों पर मापा जाता हैं।
  1. GNPMP में एक देश के सभी नागरिकों द्वारा उत्पादित उत्पादन को शामिल किया जाता है चाहे वे नागरिक राष्ट्रीय सीमा के भीतर स्थापित हों अथवा विदेशों में।
  1. सभी चीजों का मूल्यांकन बाज़ार कीमतों पर होता हैं।

GNPMP = GDPMP + NFIA (Net Factor Income from Abroad)

  1. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC):-
  1. साधन लागत पर GNP एक अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादन के साधनों द्वारा प्राप्त उत्पादन का माप है।

GNPFC= GNPMP - निवल उत्पाद कर - निवल उत्पादन कर

  1. बाज़ार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP):-
  1. NNPMP देश के नागरिकों द्वारा किए गए उत्पादन का माप है चाहे वह उत्पादन देश की घरेलू सीमा में किया गया हो या विदेशों में।

NNPMP = GNPMP- Depreciation

  1. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) अथवा राष्ट्रीय आय (NI):-
  1. साधन लागत पर NNP एक देश के उत्पादन के सभी साधनों द्वारा मजदूरी, लाभ, लगान तथा ब्याज के रूप में एक वर्ष में अर्जित साधन आय का योग है।
  1. यह राष्ट्रीय उत्पाद है किंतु राष्ट्रीय सीमा में उत्पादन तक ही सीमित नहीं है। यह शुद्ध घरेलू साधन आय तथा विदशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय का योग है।

NI = NNPMP- निवल उत्पाद कर - निवल उत्पादन कर = NDPFC + NFIA = NNPFC

  •     मौद्रिक GDP (Nominal GDP):-
  1. इससे अभिप्राय चालू कीमतों पर GDP से है। यह एक लेखा वर्ष के दौरान देश की घरेलू सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य है। इसका अनुमान चालू वर्ष की कीमतों का प्रयोग करके लगाया जाता है। चालू वर्ष की कीमतों से अभिप्राय आकलन वाले वर्ष में प्रचलित कीमतों से है। अत:

मौद्रिक GDP = Q x P

यहाँ Q= एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा

P= लेखा वर्ष के दौरान प्रचलित कीमत

  1. मौद्रिक GDP में वृद्धि तब हो सकती है जब या तो Q में या P में वृद्धि हो।
  1. यदि GDP में वृद्धि Q में वृद्धि के कारण होती है P के स्थिर रहने पर तो यह उत्पादन में वृद्धि के कारण मौद्रिक GDP में वृद्धि को प्रकट करता है।
  1. दूसरी ओर, यदि GDP में वृद्धि P में वृद्धि के कारण होती है Q के स्थिर रहने पर तो यह सामान्य कीमत स्तर में वृद्धि के कारण मौद्रिक GDP में वृद्धि प्रकट करता है। यह GDP में केवल एक मौद्रिक वृद्धि है इसलिए इसका महत्त्व कम है। इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में कोई वृद्धि नहीं होती।
  • वास्तविक GDP (Real GDP):-
  1. इससे अभिप्राय स्थिर कीमतों पर GDP से है। यह एक लेखा वर्ष के दौरान एक देश की घरेलु सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य है| इसका अनुमान आधार वर्ष की कीमतों का प्रयोग करके लगाया जाता है। आधार वर्ष तुलना का वर्ष है। यह वह वर्ष है जब विश्वास किया जाता है कि समष्टि चर (जैसे-उत्पादन तथा सामान्य कीमत स्तरों) अपनी सामान्य सीमा के इर्द-गिर्द घूमते (Hovering) रहते हैं। अत:

वास्तविक GDP = Q x P*

यहाँ, Q= एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं को मात्रा

       P*= आधार वर्ष के दौरान प्रचलित कीमतें

  1. वास्तविक GDP में वृद्धि केवल तभी हो सकती है जब Q में वृद्धि होती है क्योकि P* स्थिर रहता है। इस कारण जब भी वास्तविक GDP में वृद्धि होती है तो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि होती है।
  1. अन्य बातें स्थिर रहने पर, वास्तविक GDP का स्तर जितना ऊँचा होगा देश के निवासियों को वस्तुओं तथा सेवाओं की उतनी ही अधिक मात्रा उपलब्ध होगी। इसका निहितार्थ यह है कि जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) सुधरनी चाहिए।
  • मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में परिवर्तन (Conversion of Nominal GDP into Real GDP):-
  • GDP तथा कल्याण (GDP and Welfare)
  1. कल्याण (Welfare) : इसका तात्पर्य लोगों के भौतिक सुख-सुविधाओं से है। यह अनेक आर्थिक एवं गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। आर्थिक कारक जैसे राष्ट्रीय आय, उपभोग का स्तर आदि और गैर-आर्थिक कारक जैसे पर्यावरण प्रदूषण, कानून व्यवस्था, सामाजिक अशांति आदि। वह कल्याण जो आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे आर्थिक कल्याण तथा जो गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे गैर आर्थिक कल्याण कहा जाता है। दोनों के योग को सामाजिक कल्याण कहा जाता है।
  1. सामान्यतः सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध होता है। उच्चतर GDP का अर्थ है वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिक उत्पादन का होना। इसका तात्पर्य है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक उपलब्धता। परन्तु इसका अर्थ यह निकालना कि लोगों का कल्याण पहले से अच्छा है, आवश्यक नहीं है। दूसरे शब्दों में, उच्चतर GDP का तात्पर्य लोगों के कल्याण में वृद्धि का होना, आवश्यक नहीं है।
  • सीमाएँ (Limitations):-
  1. आय का वितरण (Distribution of Income): यदि आय का वितरण असमान होता है तो GDP में वृद्धि के कारण सामाजिक कल्याण में वृद्धि नहीं होती। वर्तमान में भारत इस स्थिति से गुजर रहा है। प्रति व्यक्ति GDP में वृद्धि हो रही है, परंतु भुखमरी शीर्षक समाचार-पत्रों में इससे पहले कभी नहीं छपे हैं। इसका कारण आय के वितरण की असमानता में वृद्धि है।
  1. GDP की रचना (Composition of GDP): GDP के स्तर में वृद्धि की स्थिति में भी GDP की रचना कल्याण अभिमुखी (Welfare-oriented) नहीं हो सकती। उदाहरण सुरक्षा वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि के कारण जनसमूह के कल्याण में प्रत्यक्ष वृद्धि नहीं होती। बेशक इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि सशक्त सुरक्षा समस्त उत्पादन क्रिया के लिए एक शांतिपूर्ण परिस्थिति प्रस्तुत करती है। परंतु अर्थव्यवस्था में कल्याण के स्तर में यह अप्रत्यक्ष योगदान देती है।
  1. गैर-मौद्रिक विनिमय (Non-monetary Exchanges): भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं में वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी गैर-मौद्रिक लेन-देन होते है जहाँ कृषि-श्रम को भुगतान नकद दिए जाने की बजाय वस्तु में ही दिए जाते है। परंतु ऐसे लेन-देन रिकॉर्ड में नहीं आते क्योंकि ये विनिमय की मौद्रिक प्रणाली से बाहर है जिस सीमा तक GDP बिना अनुमान किए रह जाता है, यह कल्याण का एक अनुचित सूचकांक होता है।
  1. बाह्यताएँ (Externalities): इससे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई उन क्रियाओं से है जिनका बुरा (या अच्छा) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके लिए उन्हें दण्डित (लाभान्वित) नहीं किया जाता। उदाहरण- कारखानों का धुआं (नकारात्मक बाह्यता तथा फ्लाईओवर का निर्माण (सकारात्मक बाह्यताएँ)।