Class 12th प्रारंभिक व्यष्टि अर्थशास्त्र (Introductory Microeconomics)
Chapter 3
उत्पादन तथा लागत
(Production and Cost)
- उत्पादन (Production): उत्पादन वह प्रकिया है जिसके द्वारा आगतों (Inputs) को निर्गत (Output) में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरणार्थ, एक दर्जी एक सिलाई मशीन, कपड़ा, धागा और अपने स्वंय के श्रम को कमीजें बनाने के लिए उपयोग करता है।
- उत्पादन लागत (Cost of Production) : आगतों को प्राप्त करने के लिये एक फर्म को उनके लिए कुछ देना पड़ता है। इसे उत्पादन लागत कहते हैं।
- एक बार जब ‘निर्गत’ उत्पन्न हो जाता है, फर्म उसे बाज़ार में बेच देती है और उसके बदले आगम (Revenue) प्राप्त करती है। ‘आगम’ तथा ‘लागत’ के बीच के अंतर को ‘फर्म का लाभ’ कहते हैं। हम यह मानते हैं कि एक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है।
- उत्पादन फलन (Production Function) :
- एक फर्म का उत्पादन फलन उपयोग में लाए गए आगतों तथा फर्म द्वारा उत्पादित निर्गतों के मध्य का संबंध दर्शाता है। अन्य शब्दों में, उपयोग में लाए गये आगतों की विभिन्न मात्राओं के लिए यह निर्गत की अधिकतम मात्रा प्रदान करता है, जिसका उत्पादन किया जा सकता है। सामान्यत: उत्पादन फलन को निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है:
Qx = f(L,K)
यह समीकरण बताता है कि Qx (वस्तु X का उत्पादन), L (श्रम) तथा K (पूँजी) का फलन है। यहाँ Qx वह अधिकतम उत्पादन है जो L श्रम तथा K पूँजी से उत्पन्न किया जा सकता है|
- एक उत्पादन फलन को दी हुई प्रौद्योगिकी के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो आगतों के विभिन्न संयोगो द्वारा उत्पादन की अधिकतम संभव मात्रा को दर्शाता है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है, तो विभिन्न आगत संयोगों से प्राप्त होने वाले निर्गत के स्तरों में भी वृद्धि होती है। तब हमें एक नवीन उत्पादन फलन प्राप्त होता है।
- उत्पादन के कारक (Factors of Production) :-
- उत्पादन प्रक्रिया में फर्म जिन आगतों का उपयोग करती है, वे उत्पादन के कारक कहलाते हैं। निर्गत के उत्पादन के क्रम में एक फर्म कितने ही विभिन्न आगतों का प्रयोग कर सकती है। अवधारणा को समझने में सरलता के लिए हम एक ऐसी फर्म पर विचार करेंगे जो केवल उत्पादन के दो कारकों- श्रम एवं पूँजी का प्रयोग करती है।
- उत्पादन के कारकों का वर्गीकरण निम्न रूप से किया जा सकता है:-
- स्थिर कारक (Fixed Factors) : स्थित कारकों का सीधा सम्बन्ध अल्पकाल की अवधारणा से है| अल्पकाल (Short Run) में कम से कम एक कारक, श्रम अथवा पूँजी में परितर्वन नहीं किया जा सकता है। अतः वह स्थिर रहता है। इस प्रकार स्थिर कारक वे कारक हैं, जिनका प्रयोग उत्पादन में परिवर्तन होने से परिवर्तित नहीं होता है। इसकी मात्रा समान रहती है, चाहे उत्पादन का स्तर कम या शून्य हो। भवन, भूमि, मशीनरी, संयंत्र और शीर्ष प्रबंधन सामान्यतः किसी फर्म में स्थिर कारकों के सामान्य उदाहरण माने जाते हैं, क्योंकि आम तौर पर इन्हें काफी समय के बाद ही बदला जाता है।
- परिवर्ती कारक (Variable Factors) : परिवर्ती कारक वे कारक हैं जिनका प्रयोग उत्पादन में परिवर्तन होने से परिवर्तित होता है। सामान्यतः ‘श्रम’ परिवर्ती कारक माना जाता है। अन्य बातें समान रहने पर, एक वस्तु की अधिक इकाइयों का उत्पादन करने के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होगी। परिवर्ती कारक तब शून्य होता है जब उत्पादन का स्तर शून्य होता है।
- अल्पकाल (Short Run) में कम से कम एक कारक, श्रम अथवा पूँजी में परितर्वन नहीं किया जा सकता है। अतः वह स्थिर रहता है। निर्गत स्तर में परिवर्तन लाने के लिये, फर्म केवल दूसरे कारक में ही परिवर्तन कर सकती है, जो कारक परिवर्ती कारक कहलाता है। सामान्यतः एक फर्म, अल्पकाल में श्रम की विभिन्न मात्राएँ उपयोग में लाकर उत्पादन स्तर में परिवर्तन कर सकती है।
- दीर्घकाल (Long Run) में उत्पादन के सभी कारकों में परिवर्तन लाया जा सकता है। एक फर्म निर्गत के विभिन्न स्तरों का उत्पादन करने के लिए, दीर्घकाल में दोनों कारकों में साथ-साथ परिवर्तन ला सकती है। अतः दीर्घकाल में कोई भी स्थिर कारक नहीं होता है। किसी भी विशेष उत्पादन प्रक्रम में दीर्घकाल साधारणतः अल्पकाल की तुलना में एक दीर्घ समय अंतराल को प्रकट करता है। विभिन्न उत्पादन प्रक्रमों के लिए दीर्घकाल कालावधि भिन्न हो सकती है।
- कुल उत्पाद (Total Product), औसत उत्पाद (Average Product) तथा सीमांत उत्पाद (Marginal Product) :
- कुल उत्पाद (TP): एक निश्चित समयावधि में उत्पादन के साधनों की किसी विशेष मात्रा से फर्म द्वारा उत्पादित उत्पादन का कुल जोड़ कुल उत्पाद कहलाता है।
- औसत उत्पाद (AP): औसत उत्पाद को निर्गत की प्रति इकाई परिवर्ती आगत के रूप में परिभाषित किया जाता है। हम इसकी गणना इस प्रकार करते हैंः

यहाँ L श्रम को निरूपित करता है| अतः APLऔसतन प्रति इकाई श्रम के लिए उत्पादन को दर्शाता है|
- सीमांत उत्पाद (MP): सीमांत उत्पाद से अभिप्राय कुल उत्पाद में परिवर्तन से है जब परिवर्ती कारक की एक अधिक इकाई का प्रयोग किया जाता है (स्थिर कारक समान रहता है)। जब पूँजी को स्थिर रखा जाता है, तो श्रम का सीमांत उत्पाद होता है-
MPL= TPL-TPL-1
यहाँ MPL श्रम की अगली इकाई के प्रयोग से उत्पादन में होने वाले अंतर को दर्शाता है|


जहाँ ∆ (डेल्टा) परिवर्त में परिवर्तन का सूचक है।
- AP, MP तथा TP का आँकलन:

- ऊपर दी गई तालिका द्वारा AP, MP तथा TP का ग्राफीय चित्रण:

- ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम (The Law of Diminishing Marginal Product) तथा परिवर्ती अनुपात नियम (The Law of Variable Proportions):
- ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम के अनुसार, अन्य साधनों का प्रयोग स्थिर रहने पर यदि एक परिवर्ती कारक के प्रयोग में वृद्धि की जाती है तो एक स्तर के बाद सीमांत उत्पाद घटने लगता है।
- परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, यदि अन्य कारक का प्रयोग स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाई जाती है, तो कुल उत्पाद -
- प्रथम अवस्था में बढ़ती दर से बढ़ता है (वृद्धिमान प्रतिफल)
- दूसरी अवस्था में घटती दर से बढ़ता है (ह्रासमान प्रतिफल) और
- तीसरी अवस्था में घटने लगता है (ऋणात्मक प्रतिफल)।
अन्य शब्दों में, यदि अन्य साधनों का प्रयोग स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं तो सीमांत उत्पाद प्रथम अवस्था में बढ़ता है, दूसरी अवस्था में सीमांत उत्पाद घटता है परंतु धनात्मक रहता है और तीसरी अवस्था में सीमांत उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है।

- परिवर्ती अनुपात नियम का कारण:-
कारक अनुपात (Factor Proportions) उस अनुपात को बताता है जिसमें निर्गत उत्पन्न करने के लिये दो कारको को संयोजित किया जाता है। जब हम एक कारक आगत को स्थिर रखते हैं तथा दूसरे में निरंतर वृद्धि करते हैं, तो कारक अनुपातों में परिवर्तन आता जाता है।
- प्रारंभ में उत्पादन के स्थिर कारक का अल्प प्रयोग होता है इसीलिए जैसे-जैसे हम परिवर्ती कारक की मात्रा में वृद्धि करते हैं तब स्थिर तथा परिवर्ती कारक की समन्वयता (Coordination) में सुधार आता है और कारक अनुपात उत्पादन के लिए अधिकाधिक उपयुक्त होता जाता है तथा सीमांत उत्पाद में वृद्धि होती जाती है।
- परंतु अनुपात के एक विशेष स्तर के पश्चात् उत्पादन प्रक्रम परिवर्ती आगत के साथ अत्यंत अस्त-व्यस्त (too crowded) हो जाता है। स्थिर कारक की तुलना में परिवर्ती कारक बहुत ज्यादा हो जाता है और उत्पादन के लिए सर्वोत्तम अनुपात बिगड़ता जाता है| इस कारण से सीमांत उत्पाद गिरना शुरू हो जाता है।
- कुल उत्पाद, सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद वक्र की आकृतियाँ:
- कुल उत्पाद (TP) वक्र की आकृति :-
- अन्य आगतों को स्थिर रखते हुए, एक आगत की मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप सामान्यतः प्रारम्भ में निर्गत में वृद्धि होती है। आगत-निर्गत समतल में कुल उत्पाद वक्र प्रारम्भ में निश्चित ही धनात्मक प्रवणता वाला वक्र (Positively Sloped Curve) होता है। हम श्रम की इकाइयाँ समस्तरीय अक्ष (Horizontal Axis) पर तथा निर्गत ऊर्ध्वस्तर अक्ष (Vertical Axis) पर मापते हैं। श्रम की L इकाइयों के साथ फर्म निर्गत की अधिक-से-अधिक q1 इकाइयों का उत्पादन कर सकती है।

- परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, यदि अन्य साधनों का प्रयोग स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाई जाती है, तो कुल उत्पाद प्रथम अवस्था में बढ़ती दर से बढ़ता है, दूसरी अवस्था में घटती दर से बढ़ता है और तीसरी अवस्था में घटने लगता है। यह उस बिंदु तक एक S-आकार देता है जहाँ TP अपनी अधिकतम सीमा तक पहुँचता है।
- सीमांत उत्पाद (MP) वक्र की आकृति :-
परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, एक आगत के सीमांत उत्पाद में आरंभ में वृद्धि होती है| इसके पश्चात् प्रयोग के एक विशेष स्तर पर पहुँचकर इसमें गिरावट प्रारंभ हो जाती है। अतः सीमांत उत्पाद वक्र एक उल्टे ‘U’ वक्र की आकृति के रूप में दिखता है।
- औसत उत्पाद (AP) वक्र की आकृति एवं औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद में संबंध :-
- परिवर्ती आगत की पहली इकाई के लिए सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद समान होते हैं। अतः दोनों एक ही बिंदु से आरंभ होते हैं।
- जैसे-जैसे हम आगत की मात्रा में वृद्धि करते जाते हैं, सीमांत उत्पाद में वृद्धि होती जाती है। औसत उत्पाद में भी वृद्धि होती है, परंतु सीमांत उत्पाद की तुलना में कम वृद्धि होती है। एक बिंदु के पश्चात् सीमांत उत्पाद में गिरावट आनी आरंभ हो जाती है।
- जब तक सीमांत उत्पाद का मूल्य प्रचलित औसत उत्पाद के मूल्य की तुलना में अधिक रहता है (MP>AP), औसत उत्पाद में वृद्धि होती रहती है। एक बार सीमांत उत्पाद में पर्याप्त रूप से गिरावट आ जाने पर, इसका मूल्य प्रचलित औसत उत्पाद की तुलना में कम हो जाता है (MP<AP) तब औसत उत्पाद में गिरावट आरंभ हो जाती है। अतः औसत उत्पाद वक्र भी उल्टे ‘U’ की आकृति का होता है।
- जब सीमांत उत्पाद औसत उत्पाद की तुलना में अधिक होता है, तब औसत उत्पाद में वृद्धि होती रहती है, अन्यथा, औसत उत्पाद में वृद्धि नहीं हो सकती है। समान रूप से, जब औसत उत्पाद में गिरावट आती है, सीमांत उत्पाद को औसत उत्पाद की तुलना में आवश्यक रूप से कम होना चाहिए। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सीमांत उत्पाद वक्र औसत उत्पाद वक्र को अधिकतम औसत उत्पाद के बिंदु पर काटता है।

- पैमाने का प्रतिफल (Returns to Scale) :-
दीर्घकाल में दोनों कारकों को किसी भी अनुपात में बढ़ाया/घटाया जा सकता है| कारकों को समान अनुपात में बढ़ाने को ‘स्केल अप’ तथा कारकों को समान अनुपात में घटाने को ‘स्केल डाउन’ कहा जाता है।
- जब सभी आगतों में समानुपातिक वृद्धि, निर्गत में उसी अनुपात में वृद्धि उत्पन्न करती है तो उत्पादन फलन पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant Returns to Scale) को दर्शाता है।
- जब सभी आगतों में समानुपातिक वृद्धि, निर्गत में अनुपात से अधिक वृद्धि उत्पन्न करती है, तो उत्पादन फलन पैमाने के वृद्धिमान उत्पादन फलन (Increasing Returns to Scale) को दर्शाता है।
- जब सभी आगतों की समानुपातिक वृद्धि की तुलना में, निर्गत में समानुपातिक वृद्धि कम होती है तो यह पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल (Decreasing Returns to Scale) को दर्शाता है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए एक उत्पादन प्रक्रम में सभी आगत दोगुने हो जाते हैं। परिणामस्वरूप:
- यदि निर्गत दोगुना हो जाता है, उत्पादन फलन स्थिर अनुमापी प्रतिफल को प्रदर्शित करता है।
- यदि निर्गत दोगुने की तुलना में कम है तो ह्रासमान अनुमापी प्रतिफल लागू होता है।
- यदि यह दोगुना से अधिक है तो वृद्धिमान अनुमापी प्रतिफल लागू होता है।
- लागत (Costs) :- आगतों को प्राप्त करने के लिये एक फर्म को उनके लिए कुछ देना पड़ता है। इसे उत्पादन लागत (Cost of Production) कहते हैं।
- अल्पकालीन लागत (Short Run Costs) : अल्पकाल में उत्पादन के कुछ कारकों में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, अतः वे स्थिर रहते हैं।
- कुल स्थिर लागत (TFC): कुल स्थिर लागत वह लागत है जो उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर स्थिर रहती है।
- कुल परिवर्ती लागत (TVC): यह उन कारकों की लागत का योग है जो उत्पादन की मात्रा बदलने पर बदलते रहते हैं।
- कुल लागत (TC): स्थिर तथा परिवर्ती लागतों को मिलाकर हमें एक फर्म की कुल लागत प्राप्त होती है।
कुल लागत (TC) = कुल परिवर्ती लागत (TVC) + कुल स्थिर लागत (TFC)
- औसत स्थिर लागत (AFC): यह प्रति इकाई उत्पादन की स्थिर लागत है। कुल स्थिर लागत को उत्पादन की कुल मात्रा (q) से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है।


- औसत परिवर्ती लागत (AVC): औसत परिवर्ती लागत को कुल परिवर्ती लागत की प्रति इकाई निर्गत के रूप में परिभाषित किया जाता है। हम इसकी गणना इस प्रकार करते हैं:


- अल्पकालीन औसत लागत (SAC) को निर्गत की प्रति इकाई मूल्य की कुल लागत के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसकी गणना हम इस प्रकार करते हैं:


- अल्पकालीन सीमांत लागत (SMC) कुल लागत में परिवर्तन प्रति इकाई निर्गत में परिवर्तन के रूप में परिभाषित की जाती है।


MCn=TCn-TCn-1
जहाँ ∆ (डेल्टा) चर के मूल्य में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है।
TFC, TVC, TC, AC, AVC, AFC, MC का आँकलन:-

- अल्पकालीन लागत वक्रों की आकृति:-
- कुल स्थिर लागत (TFC) वक्र की आकृति :-
कुल स्थिर लागत निर्गत में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होती। अतः यह एक समस्तरीय सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) है जो नीचे दिए गए चित्र में लागत अक्ष को बिंदु F पर काटती है।

- कुल परिवर्ती लागत (TVC) वक्र की आकृति :-
- उत्पादन के परिवर्ती कारकों पर लगने वाली लागत को कुल परिवर्ती लागत (TVC) कहा जाता है। ये लागत उत्पादन के स्तर के साथ बदलती है। इस प्रकार, जब उत्पादन स्तर शून्य होता है तो TVC भी शून्य होता है। इस प्रकार TVC वक्र O से शुरू होता है।
- यह एक उल्टे S के आकार के जैसा दिखाई पड़ता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि-
- परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार अन्य साधनों का प्रयोग स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं तो सीमांत उत्पाद शुरुआत में बढ़ता है, इसीलिए पहले चरण में TVC बढ़ता तो है, लेकिन कम दर पर।
- परंतु एक स्तर के बाद सीमांत उत्पाद घटने लगता है| इसीलिए बाद में TVC बढ़ता है लेकिन अब बढ़ती दर पर। इस प्रकार TVC वक्र को एक उल्टे-S जैसा आकार मिलता है।

3. कुल लागत (TC) वक्र की आकृति :-
- स्थिर तथा परिवर्ती लागतों को सम्मिलित करते हुए हमें एक फर्म की कुल लागत प्राप्त होती है।
- TFC वक्र क्षैतिज अक्ष के समानांतर है जबकि TVC वक्र उल्टे-S आकार का है। इस प्रकार TC वक्र, TVC के जैसे आकार और आकृति का है लेकिन O के बजाय TFC के बिंदु से शुरू होता है।
- TC वक्र भी एक उल्टे-S के आकार जैसा होता है इसका कारण भी परिवर्ती अनुपात का नियम है। चूंकि TFC वक्र क्षैतिज अक्ष के समानांतर है , TC और TVC वक्र के बीच का अंतर निर्गत के प्रत्येक स्तर पर समान है और TFC के बराबर है।

4. औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र की आकृति:
- यह प्रति इकाई उत्पादन की स्थिर लागत है। कुल स्थिर लागत को उत्पादन की कुल मात्रा (q) से भाग देने पर औसत स्थिर लागत प्राप्त होती है।
- जैसे-जैसे q में वृद्धि होती है, औसत स्थिर लागत घटती जाती है।
- जब निर्गत शून्य के अत्यधिक निकट होता है, औसत स्थिर लागत मनमाने ढंग से बड़ा होता है (arbitrarily large) तथा
- निर्गत जैसे-जैसे अनंत की ओर बढ़ता है, औसत स्थिर लागत शून्य की ओर बढ़ती है।
- औसत स्थिर लागत वक्र वास्तव में एक आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) है। यदि हम निर्गत के किसी भी मूल्य (q) को उससे संबंधित औसत स्थिर लागत से गुणा करते हैं, तब हम सदैव कुल स्थिर लागत प्राप्त करते हैं।

- ऊपर दिया गया चित्र औसत स्थिर लागत वक्र का है जो कि एक आयताकार अतिपरवलय है। आयत OFCq1 हमें कुल स्थिर लागत का क्षेत्रफल देता है।
5. अल्पकालीन सीमांत लागत (SMC) वक्र की आकृति:-
- अल्पकालीन सीमांत लागत (SMC) कुल लागत में परिवर्तन प्रति इकाई निर्गत में परिवर्तन के रूप में परिभाषित की जाती है।
- परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, दिए गए कारक मूल्य के साथ आरंभ में अल्पकालीन सीमांत लागत में गिरावट आती है तथा उसके बाद एक विशेष बिंदु पर पहुँचकर इसमें वृद्धि होने लगती है। अतः अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का होता है।

6. औसत परिवर्ती लागत (AVC) वक्र की आकृति एवं अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र के साथ संबंध:-
- निर्गत की प्रथम इकाई के लिए अल्पकालीन सीमांत लागत तथा औसत परिवर्ती लागत एक ही हैं। अतः दोनों अल्पकालीन सीमांत लागत तथा औसत परिवर्ती लागत वक्र एक ही बिंदु से शुरू होते हैं।
- जैसे-जैसे निर्गत में वृद्धि होती जाती है, अल्पकालीन सीमांत लागत में गिरावट आती है। औसत परिवर्ती लागत में भी गिरावट आने लगती है परंतु अल्पकालीन सीमांत लागत की तुलना में कम गिरावट आती है। एक बिंदु के बाद अल्पकालीन सीमांत लागत में वृद्धि होने लगती है।
- जब तक अल्पकालीन सीमांत लागत का मूल्य प्रचलित औसत परिवर्ती लागत के मूल्य की तुलना में कम रहता है (SMC<AVC) औसत परिवर्ती लागत में निंरतर गिरावट आती है ।
- एक बार जब अल्पकालीन सीमांत लागत में पर्याप्त रूप से वृद्धि हो जाती है, इसका मूल्य औसत परितवर्ती लागत के मूल्य की तुलना में अधिक हो जाता है (SMC>AVC) तब औसत परिवर्ती लागत में वृद्धि आनी आरंभ हो जाती है। अतः औसत परिवर्ती लागत वक्र ‘U’ आकार का होती है।
- जब तक औसत परिवर्ती लागत में गिरावट आती रहती है, अल्पकालीन सीमांत लागत को औसत परिवर्ती लागत की तुलना में आवश्यक रूप से कम होना ही चाहिए तथा जैसे-जैसे औसत परिवर्ती लागत में वृद्धि होती है, अल्पकालीन सीमांत लागत को औसत परिवर्ती लागत की तुलना में आवश्यक रूप से अधिक होना ही चाहिए। अतः अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र को नीचे से औसत परिवर्ती लागत के न्यूनतम बिंदु पर काटता है।

दिए गए चित्र में औसत परिवर्ती लागत वक्र से कुल परिवर्ती लागत निकालने हेतु:
निर्गत स्तर q0 पर आयत OVBq0 का क्षेत्रफल = कुल परिवर्ती लागत
( कुल परिवर्ती लागत = औसत परिवर्ती लागत × मात्रा
= OV × Oq0
= आयत OVBq0 का क्षेत्रफल)
7. अल्पकालीन औसत लागत वक्र (SAC) की आकृति:-
- अल्पकालीन औसत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत का जोड़ है।
- आरंभ में, दोनों औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत में गिरावट आती है जैसे-जैसे निर्गत में वृद्धि होती है। अतः अल्पकालीन औसत लागत में आरंभ में गिरावट आती है।
- फिर AVC में एक स्तर तक गिरावट होने के बाद AVC बढ़ने लगती है लेकिन AFC लगातार गिरती रहती है। प्रारंभ में AFC में गिरावट, AVC में वृद्धि की अपेक्षा अधिक होती है। अतः SAC अभी भी गिर रही होती है।
- परन्तु उत्पादन के एक स्तर के पश्चात AVC में वृद्धि, AFC की गिरावट की अपेक्षा अधिक हो जाती है। इस बिन्दु के बाद से SAC बढ़ने लगता है। SAC वक्र इसलिए ‘U’ आकार का होता है।
- यह औसत परिवर्ती अल्पकालीन लागत वक्र के ऊपर ऊर्ध्वस्तर भिन्नता (vertical difference) के साथ स्थित होता है, जो औसत स्थिर लागत के मूल्य के समान है।
- अल्पकालीन औसत लागत वक्र का न्यूनतम बिंदु दाहिनी ओर स्थित है, औसत परिवर्ती लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु से।
- जब तक अल्पकालीन औसत लागत में गिरावट आती है तब अल्पकालीन औसत लागत की तुलना में अल्पकालीन सीमांत लागत कम होती है (SMC<AC) तथा जब अल्पकालीन औसत लागत में वृद्धि होती है तब अल्पकालीन औसत लागत की तुलना में अल्पकालीन सीमांत लागत अधिक होती है (SMC>AC)। अत: अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र को अल्पकालीन औसत लागत के न्यूनतम बिंदु पर नीचे से काटता है।

- दीर्घकालीन लागत (Long Run Cost) : दीर्घकाल में सभी आगत परिवर्त होते हैं। कोई स्थिर लागतें नहीं होती। अतः कुल लागत तथा कुल परिवर्ती लागत दीर्घकाल में एक ही समय में घटित होते हैं।
- दीर्घकालीन औसत लागत : दीर्घकालीन औसत लागत को निर्गत की प्रति इकाई मूल्य की कुल लागत के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसकी गणना हम इस प्रकार करते हैं।

- दीर्घकालीन सीमांत लागत: दीर्घकालीन सीमांत लागत कुल लागत में परिवर्तन, प्रति इकाई निर्गत में परिवर्तन के रूप में परिभाषित की जाती है।

जहाँ ∆ (डेल्टा) चर के मूल्य में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है।
MCn=TCn-TCn-1
- दीर्घकालीन लागत वक्रों का आकार:
- दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की आकृति :
- वृद्धिमान पैमाने के प्रतिफल से अभिप्राय है कि निर्गत में एक विशेष अनुपात की वृद्धि करने के लिए आगतों में उस अनुपात की तुलना में कम वृद्धि करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए हम निर्गत को दोगुना करने के इच्छुक हैं। ऐसा करने के लिए आगतों में दोगुना से कम वृद्धि की आवश्यकता है। जब तक वृद्धिमान पैमाना का प्रतिफल कार्य करेगा। जैसे-जैसे फर्म निर्गत में वृद्धि करती रहेगी, औसत लागत गिरता रहेगा।
- स्थिर पैमाने के प्रतिफल के अनुसार यदि उत्पादन के कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाये तो उत्पादन भी उसी निश्चित अनुपात से बढ़ता है। अतः औसत लागत तब तक स्थिर रहता है, जब तक स्थिर पैमाना का प्रतिफल कार्य करता है।
- ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल से अभिप्राय है कि यदि हम निर्गत में वृद्धि एक विशेष अनुपात से करने के इच्छुक हैं तो आगतों में उस अनुपात की तुलना में अधिक वृद्धि करने की आवश्यकता है। परिणामस्वरूप, लागत में भी वृद्धि उस अनुपात की तुलना में अधिक होती है। अतः जब तक ह्रासमान पैमाना का प्रतिफल कार्य करता है, औसत लागत में वृद्धि होती है जब भी फर्म निर्गत में वृद्धि करती है।
- ऐसा तर्क दिया जाता है कि एक विशिष्ट फर्म वृद्धिमान पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन के आरंभिक स्तर पर दिखलाई पड़ता है। इसका अनुसरण स्थिर पैमाना का प्रतिफल द्वारा तथा फिर ह्रासमान पैमाना का प्रतिफल द्वारा होता है। इसके अनुसार दीर्घकालीन औसत लागत वक्र एक 'U' आकार का वक्र होता है।
2. दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र की आकृति और दीर्घकालीन सीमांत लागत और दीर्घकालीन
औसत लागत में संबंध:-
- निर्गत की प्रथम इकाई के लिए दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा दीर्घकालीन औसत लागत समान होता है।
- जब निर्गत में वृद्धि की जाती है, तो दीर्घकालीन औसत लागत में आरंभ में गिरावट आती है और तदुपरांत एक विशेष बिंदु के पश्चात इसमें वृद्धि होने लगती है।
- जब तक औसत लागत में गिरावट आती है, सीमांत लागत आवश्यक रूप से औसत लागत की तुलना में कम (MC<AC) होनी चाहिए। जब औसत लागत में वृद्धि हो रही हो, सीमांत लागत औसत लागत की तुलना में अधिक (MC>AC) होगी। अतः दीर्घकालीन औसत लागत वक्र एक 'U' आकार का वक्र है। यह दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को नीचे से दीर्घकालीन औसत लागत के न्यूनतम बिंदु पर काटता है।
